टिहरी बांध और गंगा रोकने के विरोध में उतरीं मेनका गांधी
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टिहरी बांध और गंगा रोकने के विरोध में उतरीं मेनका गांधी

by
Nov 12, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Nov 2005 00:00:00

टिहरी बांध से कोई फायदा नहींगंगा को अवरुद्ध किए जाने पर पाञ्चजन्य के अभियान की ताजा कड़ी में प्रस्तुत है भाजपा की सांसद, सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं जीव प्रेमी श्रीमती मेनका गांधी से विशेष साक्षात्कार के मुख्य अंश — जितेन्द्र तिवारीटिहरी बांध के बनने से किसको और कितना फायदा होगा?टिहरी बांध के आयाम बहुत अधिक संदेहास्पद हैं। इस बांध की योजना एकाएक ही बनी थी। हुआ यूं था कि अविभाजित सोवियत संघ के राष्ट्रपति ब्राझनेव भारत आ रहे थे। उन्हें यहां कुछ पैसा अनुदान में देना था। रातों-रात यहां के नौकरशाहों को कहा गया कि कुछ रुसी तौर-तरीकों वाली बड़ी सी योजना बनाओ जिसके लिए यह पैसा लिया जा सके। इस कारण से यह टिहरी बांध अस्तित्व में आया। इसकी न कोई जरूरत थी, न इसके पानी का और न ही बिजली का फायदा होगा।जब मैं मंत्री बनी थी तभी मैंने इस बांध की परियोजना को बंद कराने की बहुत कोशिश की थी, क्योंकि मुझे पता चला कि यह बांध भूकम्प प्रभावित क्षेत्र में बनाया जा रहा है। इस देश में बांध के जो इंजीनियर हैं उन्हें दो पैसे की अक्ल नहीं है। इसीलिए हमारे देश में जितने भी बांध हैं वे बहुत बुरी स्थिति में हैं। लगभग 90 प्रतिशत बांध अपनी क्षमता से आधी या उससे भी कम बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि हमारे अधिकांश बांधों में “सिल्ट” (गाद) जमा हो गया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बड़े-बड़े बांध बनाते समय हमारे इंजीनियरों ने झूठ बोला था। यह बांध विशेषज्ञों और इंजीनियरों की जिम्मेदारी है कि बांध की योजना बनाते समय ही बताएं कि यह कितने वर्षों में मिट्टी, रेत एवं पत्थरों अर्थात गाद (सिल्ट) आदि से भर जाएगा। हमारे देश के सभी बांधों को बनाते समय जो घोषणाएं की गई थीं उनको देख लें तो असलियत समझ में आ जाएगी। भाखड़ा नंगल बांध की आयु के बारे में विशेषज्ञों ने कहा 200 साल, किसी के लिए कहा-80 साल और किसी के लिए 30 साल। पर ये भर जाते है 8 साल, 10 साल या अधिक से अधिक 20 साल में। क्योंकि हमारे पास बांधों को “डी-सिल्ट” (गाद की सफाई) करने का कोई तरीका नहीं है। इसीलिए भाखड़ा नांगल बांध भी तबाह हो गया। इस प्रकार करोड़ों-करोड़ रुपए बर्बाद हो रहे हैं। और उसे बचाने के लिए उसके पीछे तीन बांध और बनाए जा रहे हैं ताकि सिल्ट वहां गिरे।यही हालत टिहरी बांध की भी होगी। सोचा ही नहीं गया कि यह बांध जहां बनाया जा रहा है वहां भूमि पहले से ही दबी है और जहां किसी भी समय अधिक तीव्रता का भूकम्प आ सकता है। भूकम्प के पूर्वानुमान का एक तरीका है “आर.आई.एस. फैक्टर” (रेसिवायर इनडूड साईसमेसिटी)। इस पर मैंने 1990 में काम किया था, जब मैं केन्द्र में मंत्री थी। इस पर विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित कर की गई थी। आर.आई.एस. का अर्थ है कि अगर भूकम्प क्षेत्र में यदि कोई भूकम्प न भी आने वाला हो तो बांध के दबाव में तो वह आएगा ही आएगा। बांध बनाते समय इंजीनियरों ने झूठ बोला था कि यहां भूकम्प के लायक “फाल्ट” (दरारें) नहीं हैं। जबकि पूरे अध्ययन और शोध के बाद पता चला कि यहां 7 से 8 रिक्टर स्केल की तीव्रता का भूकम्प आ सकता है।कोई भी व्यवसायी जब कोई चीज बनाता और बेचता है तो उसकी लागत से कुछ ज्यादा लाभ हो तभी व्यवसाय करता है। पर अगर 10 रुपए की चीज बेचने के लिए 50 रुपए खर्च करता है तो वह बर्बाद होगा ही। सरकार में यही हो रहा है कि हम 2 रुपए कमाने के लिए 2000 रुपए खर्च कर रहे हैं। बांधों के निर्माण में तो यही सोच बन गई है।यानी यह बांध खतरनाक तो है ही, इससे जितना लाभ मिलना चाहिए, वह भी नहीं मिलेगा?जितनी इस बांध से उत्तरांचल को बिजली मिलेगी उतनी बिजली तो बहुत आराम से सौर ऊर्जा के माध्यम से विकेन्द्रित व्यवस्था करके पाई जा सकती थी। इससे प्रत्येक गांव भी खुशहाल होता और बार-बार खम्भे गिरने से, बिजली जाने की समस्या से भी लोगों को निजात मिल जाती। अभी तक हम जिस बिजली का प्रयोग कर रहे हैं वो “ग्रिड” प्रक्रिया से आती है जो बहुत बेवकूफी भरी है। इस प्रक्रिया से दुर्गम क्षेत्रों में बिजली पहुंचने में बहुत कठिनाई होती है और जितना इसकी संरचना तैयार करने और इसके रखरखाव में खर्च होता है उससे कहीं कम में हम ऊर्जा के विकेन्द्रीकरण पर ध्यान दें तो गांव-गांव तक बिजली पहुंचा सकते हैं। बांधों पर बांध और फिर उन बांधों पर बांध यह केवल ठेकेदारों और बांध निर्माताओं के निजी लाभ के लिए ही हो रहा है।बांध विशेषज्ञों और इंजीनियरों ने झूठ क्यों बोला, उन्हें पैसा मिला या उन पर कोई दबाव था?बांध के निर्माण का जो बजट बनाते हैं वे सब ठेकेदारों के ही इंजीनियर होते हैं, सरकार के नहीं। और नौकरशाहों को खरीदना तो बहुत आसान है। भारत के बहुत से नौकरशाहों के बच्चे विदेश में ही तो पढ़ते हैं। कहां से आता है उनके पास पैसा? ठेकेदार के कहने पर इंजीनियर ने बजट बनाया और नौकरशाह ने पास कर दिया और सबने अपना-अपना हिस्सा खा लिया, बस यही हो रहा है।अब टिहरी बांध को लेकर बहुत विरोध हो रहा है। गंगा को रोके जाने पर भावात्मक आधार पर आन्दोलन चलाने की घोषणाएं हो रही हैं। क्या इसका कुछ प्रभाव पड़ेगा?यह विरोध शुरू से ही नाकामयाब था और मुझे लगता है कि आगे भी नाकामयाब होगा। टिहरी बांध का शुरू से विरोध करने वाले जो नेता थे वे कभी अपने गांव या टिहरी शहर में ही 20 हजार तक लोग नहीं इकट्ठा कर पाए। अगर टिहरी में रहने वालों ने ही पुरजोर विरोध किया होता तो यह बांध कभी बनता ही नहीं। पर वहां भी विरोध करने वाले 150-200 लोग ही निकलते थे। सुन्दर लाल बहुगुणा इस लड़ाई को शुरू से लड़ते रहे पर उन पर ही पचासियों तरह के आरोप लगाए गए। लोगों के एकमत न होने, आपसी फूट और नेता बनने की चाहत के कारण ही यह बांध बना है। अगर वहां एक प्रचण्ड और उग्र विरोध होता तो यह बांध कभी नहीं बन सकता था।वस्तुत: यह बांध बनाकर जनता पर अन्याय किया गया है। क्या ऐसा सम्भव था कि आधी दिल्ली को डुबो कर बाकी बची दिल्ली को बिजली दी जाती। या चण्डीगढ़ को डुबो दें और दिल्ली को बिजली दे दें। पर टिहरी जैसे एक जीते जागते शहर को डूबो दिया गया उसके साथ डूबो दी गई उसका इतिहास और लोगों की स्मृतियां भी। और वह भी सिर्फ 1000 मेगावाट बिजली के लिए और जो 1000 मेगावाट कभी पूरा मिलेगा भी नहीं। हिन्दुस्थान में कौन सा ऐसा बांध है जो अपनी पूरी क्षमता से विद्युत उत्पादन कर रहा है? अच्छा तो यह होता कि जितने बांध हैं उनकी साफ-सफाई करके, “सिल्ट” निकालकर तथा सुचारु संचालन के द्वारा उनसे पूरा उत्पादन लिया जाता। तब एक नए बांध की जरूरत ही न पड़ती। पर यह सब ठेकेदारों, इंजीनियरों और नौकरशाहों की मिलीभगत से होता जा रहा है। गोदावरी पर बनने वाले बांध में 280 गांव डूबेंगे। और नर्मदा में तो सैकड़ों गांव डूब ही गए। दरअसल कोई सोच ही नहीं है। ठेकेदारों के इशारे पर इंजीनियर, नौकरशाह और सरकार के लोग भी नाच रहे हैं और यह सब काम हो रहा है “अंडर द टेबुल” लेन-देन से। 28 साल हो गए टिहरी बांध को बनते हुए और अभी कई साल बाद बिजली मिलेगी, क्या इस बीच में उत्तरांचल के लोग बिना बिजली के पंगु हो गए। अगर इतने सालों में उत्तरांचल को कोई बहुत फायदा नहीं हुआ तो इस बांध के बनने से भी कोई फायदा नहीं होगा। और यह कहना गलत होगा कि इससे उत्तरांचल को बहुत बिजली मिलेगी। अब तक अनुभव से मैं यह कह सकती हूं कि यह बांध न कभी अपनी पूरी क्षमता से काम कर पाएगा और न ही यह उत्तरांचल के लिए बहुत लाभकारी होगा। इस बांध से विकास कम होगा पर विनाश की संभावना ज्यादा है।NEWS

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