डा. नताशा अरोड़ा

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दिंनाक: 12 Nov 2005 00:00:00

झर-झर अश्रुजल सिंचित तट,स्मृति मधुर, कसक हृदय घट,छल-छल छलके पीड़ा मोती है,अपने ही तट पर बैठी कालिन्दी रोती है।बिसरे पल छिन, लीला कुंजन,वो दूर कहीं पंछी गुंजन,कान्हा की बंसी अब किस तट बजती है,पूछ स्वयं से बार-बार कालिन्दी रोती है।मानव सर्जित अपशिष्ट भीषण,विस्तृत चहुंदिश घृणित प्रदूषण,विपथी, विध्वंसी संतानों का मैला धोती है,आज वही मां! कालिन्दी झार-झार रोती है!अम्लक्षार जल पूरित सरिता,प्राणवायु बिन जीवन घटता,कल-कल ध्वनि, पल-पल घटती है,म्लान हृदय, सुर पूजित, कालिन्दी रोती है।चुंदरी, टिकुली, झांझर भूषण,है कैसा ये यमुना अर्चन?गृहमंदिर पूजन सामग्री, विष्टा संग बहती है,देख स्वजल दुर्गति दिन-दिन, कालिन्दी रोती है!धिक् मानव! निर्लज्ज, पापी-डर,सुन महाकाल हुंकार द्वार-डर,यम भगिनी है वो जो, तेरा मैला ढोती है,अपने ही तट पर बैठी कालिन्दी रोती है!तलपटश्रीनगर से प्रकाशित दैनिक “वादी की आवाज” में छपी एक रपट के अनुसार कश्मीर घाटी में पिछले 15 वर्षों में हिंसा की घटनाओं में 655 विद्यालय भवनों समेत 1,823 सरकारी भवन जलाए गए और 340 पुल तबाह कर दिए गए। इस हिंसा में 186 पूजा स्थलों को भी नुकसान पहुंचा और 11,175 निजी मकानों को जलाया गया।NEWS

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