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स्त्री

by
Nov 12, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Nov 2005 00:00:00

हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भतेजस्विनीअनीताकितनी ही तेज समय की आंधी आई, लेकिन न उनका संकल्प डगमगाया, न उनके कदम रुके। आपके आसपास भी ऐसी महिलाएं होंगी, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, साहस, बुद्धि कौशल तथा प्रतिभा के बल पर समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत किया और लोगों के लिए प्रेरणा बन गईं। क्या आपका परिचय ऐसी किसी महिला से हुआ है? यदि हां, तो उनके और उनके कार्य के बारे में 250 शब्दों में सचित्र जानकारी हमें लिख भेजें। प्रकाशन हेतु चुनी गईं श्रेष्ठ प्रविष्टि पर 500 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।बदलते समय की आहटप्रतिनिधिअपने पति राजीव के साथ अनीताकहावत पुरानी है कि, “नींद न जाने टूटी खाट, प्रेम न जाने जात व पांत” लेकिन अगर किसी सवर्ण वर्ग की लड़की और वंचित समाज के लड़के के मध्य प्रेम पल्लवित होने लगे तो यह प्रेम भाई-बंधु, माता-पिता, परिवार, कुनबा, समाज सभी की आंखों में चुभ जाता है, और कभी-कभी ऐसे प्रेम का परिणाम भी अत्यंत भयावह होता है। सामाजिक श्रेष्ठता के झूठे अभिमान तले या तो लड़की के परिजन हिंसा पर उतारू हो जाते हैं, या इस ओर कदम बढ़ाने वाले युवक-युवतियों को अपने जीवन को ही समाप्त करने को मजबूर होना पड़ता है।यह कथा है बरेली की रहने वाली अनीता की। उसके जीवन में भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ। कायस्थ परिवार की अनीता के पिता बिजली विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत थे। सन् 1991 में अनीता जब दसवीं कक्षा की छात्रा थी, उसकी मुलाकात राजीव से हुई। आरम्भिक पहचान के बाद दोनों में निकटता बढ़ने लगी। राजीव पढ़ने-लिखने में बहुत मेधावी था, उसके पिता ने भी परिश्रमपूर्वक अपने बेटे की शिक्षा-दीक्षा में कोई कमी नहीं रखी। धन-सम्पदा, सामाजिक मान-प्रतिष्ठा भी अच्छी थी ही, किन्तु यह सब होते हुए भी राजीव और अनीता के जीवन भर के सम्बंधों के समक्ष जात-पांत की दीवार समस्या बनकर खड़ी थी। परास्नातक कक्षा में अध्ययन के दौरान राजीव ने अनीता को बताया कि वह वंचित वर्ग से है, क्या तब भी वह उसे स्वीकार करेगी? अनीता ने परिजनों को इससे अवगत कराया, साथ ही राजीव से विवाह करने की इच्छा भी प्रकट की। घर के लोगों पर मानो पहाड़ टूट पड़ा। उन्हें लगा कि इससे उनकी सारी मान-मर्यादा ही मिट्टी में मिल जाएगी। अनीता के घरवालों ने आनन-फानन में अनीता की शादी एक स्वजातीय परिवार में तय कर दी, लेकिन अनीता ने उनकी एक न मानी। सामाजिक बन्धनों को ठुकराते हुए उसने राजीव के साथ न्यायालय में जाकर विवाह कर लिया। परिस्थिति विकट होने पर राजीव के घर वाले, जो पहले इस शादी के सन्दर्भ में अनिर्णय की स्थिति में थे, खुलकर सामने आ गए। अनीता को घर की बहू स्वीकार करते हुए राजीव के पिता ने वैदिक रीति-रिवाज से पुन: बेटे की शादी की। राजीव के मित्र संजय आहूजा के परिवार वालों ने अनीता को बेटी बनाकर उसके कन्यादान का दायित्व अपने ऊपर लिया। हालांकि अनीता के परिजन विवाह समारोह में सम्मिलित नहीं हुए।”स्त्री” स्तम्भ के लिए सामग्री, टिप्पणियांइस पते पर भेजें-“स्त्री” स्तम्भ द्वारा,सम्पादक, पाञ्चजन्य,संस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-55ससुराल में अनीता को अपने जेठ-जेठानी, सास-ससुर ने जिस प्रेम से रखा, उससे वह अभिभूत है। सास-ससुर ने उसे अपनी पढ़ाई जारी रखने की सहूलियत दी, परिणामत: अनीता ने विधि स्नातक की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की। उसने एक महिला अधिवक्ता श्रीमती गायत्री देवी के निर्देशन में वकालत भी शुरू की और धीरे-धीरे आज वह उदीयमान वकीलों की श्रेणी में गिनी जाने लगी है।यद्यपि अनीता का वैवाहिक जीवन अब खुशियों से भरपूर है किन्तु उसके मन में इस बात का दु:ख भी है कि मात्र वंचित समाज से जुड़े एक लड़के से विवाह कर लेने के कारण उसके माता-पिता, परिजनों ने उससे नाता तोड़ लिया। अनीता हिन्दू समाज में आज भी व्याप्त जातिगत अस्पृश्यता के विरुद्ध मुखर है। अपने इसी संकल्प के कारण उसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा संचालित सेवा भारती के कार्यकर्ताओं को उनके कार्यों में सहयोग देना प्रारम्भ किया है।कभी भगवान राम से जब शबरी ने कहा था,”अधम ते अधम अधम अति नारी, तिन्ह महं मैं मति मंद अघारी।” और तब प्रभु श्रीराम ने उत्तर दिया,कह रघुपति सुन भामिनी बाता, मानउं एक भगति कर नाता।जाति-पांति कुल धर्म बड़ाई, धन बल परिजन गुन चतुराईभगति हीन नर सोहइ कैसा, बिनु जल बारिद देखिअ जैसा।।श्रीराम चरित मानस की इन्हीं पंक्तियों को अपना आदर्श मानने वाली अनीता का जीवन सचमुच आदर्श बन गया है। जात-पांत, कुल आदि से बड़ा है भक्ति का नाता और यह भक्ति, समर्पण, प्रेम जिसके प्रति पनप जाए, उसमें डूब जाने वाले को ही ईश्वर का वास्तविक नेह मिलता है।प्रतिनिधिNEWS

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