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महेश शुक्लशत्-शत् श्रद्धा के सुमनों से,समरस होकर ही स्वजनों से,दीपक से दीपक जलता है।राष्ट्रधर्म की रक्षा का तोतुमने ही पाथेय दिया है।एक सूत्र में व्यक्ति पिरोकरविस्तृत जीवन ध्येय दिया है।पा स्पर्श मात्र ही तेरा-व्यापक अन्त:करण हो गया।एक बीज की छांव तले हीसहज-सौम्य आवरण हो गया।पग जिस पथ पर बढ़ते जातेभारत साथ-साथ चलता है।।एक भाव पुरुषार्थ समर्पणसंस्कार-संकल्पित जीवन।सरस-सरल स्पर्श मात्र मेंसंस्कृति-संरक्षण हित यौवन।लोक-शक्ति सहयोगी संबलएक भाव-भाषा उद्बोधन।स्नेहसिक्त छाया देकर केबने सभी संकल्प निवेदन।समरसता बंधुत्व भाव सेसंघ कार्य प्रतिपल बढ़ता है।।पंथ दिया, आदर्श दिया हैजीवन लक्ष्य महान दिया है।ध्येय नया, दायित्व नया देजीवन को उद्देश्य दिया है।कोई नहीं पड़ाव पथ परचाहें हो विस्तृत बाधाएं।पथ-दर्शक, नव तंत्र-प्रणेताकरें जाग्रत नव आशाएं।शब्द-शब्द मंत्रोच्चारण सेरोज नया भारत बनता है।।NEWS
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