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Oct 4, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Oct 2005 00:00:00

सवालसाबिर हुसैनहबीब ठिठुरन से सिकुड़ा लेटा है लेकिन उसके अंतर में झंझावात चल रहा है। जब से उसने बहुमंजिली इमारत पर आतंकी हमले का समाचार टी.वी. पर देखा है, उसके अंतर में उथल-पुथल मची हुई है। हजारों इंसानों की मौत ने उसे उद्वेलित कर दिया है। वह जानता है, इन मौतों के बाद कितने ही लोग लाशों में परिवर्तित होकर रह जाएंगे। कितने ही घायल घिसट-घिसट कर मरने को विवश होंगे। वह पूछना चाहता है कि इन मारे गए हजारों लोगों का गुनाह क्या था? उसकी समझ में नहीं आता, जो लोग हथियारों और बारूद के लिए अपने खजाने खोल देते हैं, वे भूख-बीमारी से मरते लोगों की ओर नजर क्यों नहीं डालते, एक बार उसने अखबार में पढ़ा था कि किसी देश में अकाल पड़ा था। भूख ने लोगों को कंकाल बना दिया था। तब पता नहीं क्यों लोगों ने भूख से मरते अपने भाइयों की मदद नहीं की थी। लोग भूख से मरते रहे, बूंद-बूंद दूध के लिए तरस कर मरना बच्चों की नियति बन गई थी। उसकी समझ में नहीं आता कि जब वह सब पर रहमत बरसाने वाला है तो कौन लोग हैं जो उसकी रहमत पाने वालों में बंटवारा कर देते हैं? ठिठुरन के कारण हबीब कुछ और सिमट गया। चारों ओर व्याप्त गहन सन्नाटे से उसे भय-सा महसूस होने लगा। पूरा गांव ही सन्नाटे में डूबा हुआ है। दिन में लोग निकलते हैं। मुर्दो ंजैसे चेहरे देखकर किसी को भी सिहरन हो सकती है। हबीब ने किसी अस्पताल का मुर्दाघर तो नहीं देखा लेकिन वह कल्पना करता है कि कुछ ऐसा ही होगा। लड़कियों के खिलखिलाकर हंसने पर पाबंदी भले ही अब लगी हो, लेकिन लड़कियों ने खिलखिला कर हंसना कब का बंद कर दिया है। लगता है लड़कियां हंसना ही भूल गई हैं। लाशों के बीच हंसने वाले कोई और होंगे यहां तो दूसरों की मौत पर भी आंसू बहाते हैं। कभी फूलों की मुस्कराती वादी थी, आज फूलों की खुशबू की जगह बारूद की गंध फैली है।उस दिन हबीब बाजार से आ रहा था। साथ चल रहे बूढ़े गुल मोहम्मद ने कहा, “पता नहीं किस खबीस की नजर हमारी वादी को लग गई है। सारा अमन-चैन लुट गया। हम लोग वादी से बाहर निकल जाते, सर्दियों ऊन, कंबल, शालें बेचते घूमते थे। घर की फिक्र करने की कभी जरूरत ही नहीं समझी। अब तो पड़ोस के शहर तक जाओ तो घर की फिक्र लगी रहती है और घर वालों को हमारी।”गुल मोहम्मद सच ही कहते हैं। हबीब तो बारूद की बदबू और सहमे-सहमे लोगों के बीच ही जवान हुआ है। उसने सुना जरूर है कि पहले वादी में मोहब्बत के नगमे गूंजते थे। उसने तो धमाकों और रोने-चिल्लाने की आवाजें ही सुनी हैं।सुबह जब वह फजिर की नमाज पढ़कर आ रहा था तो गुलनार दरवाजे पर खड़ी थी। उसे देखकर मुस्करा दी। गुलनार की मां ने ही हबीब की मां से कहा था कि वह गुलनार को अपनी बहू बना ले। जब हबीब को मालूम हुआ था कि गुलनार से उसका रिश्ता होने वाला है, तब उसने गुलनार की ओर ध्यान दिया था। सचमुच गुलनार बहुत खूबसूरत है। एक दिन वह घर आई थी और शब्बो से बातें करते हुए हंस रही थी। उसे ऐसा लगा था, जैसे वादी में चांदी की घंटियां बज रही हों।हवा तेज चलने लगी थी। सांय-सांय की आवाज से भी हबीब डरने लगा है। पूरा घर काटने को दौड़ता है। घर में वीरानगी-सी छाई रहती है। रेडियो, टीवी से हबीब रोज ही सुनता था कि फायरिंग या बम विस्फोट में इतने लोग मारे गए। आतंकवादी हमला करके चले जाते, उसके बाद फौजी आते। सख्ती से पूछताछ होती। उस दिन उसके मामू आए थे। उन्होंने बताया था कि चंद फौजियों ने एक बेगुनाह लड़के को आतंकवादी कहकर मार दिया। कई बार लड़कियां-औरतें उनके कुकृत्यों का शिकार हो जाती हैं।हबीब के अंतर में अब ज्वालामुखी-सा धधकता रहता है, इसीलिए वह गुलनार से बात नहीं करता।उस दिन गुलनार ने उसे समझाया था-“जो हो गया उसमें रब की मर्जी थी। खुदा का कहर पड़ेगा उन शैतानों पर।”हबीब शून्य में घूरता रहा था। वह कैसे भूल जाए कि उसका सब कुछ उजड़ चुका है। उस दिन कुछ सशस्त्र युवक घर में घुस आए थे।”आज हम लोग तुम्हारे खास मेहमान हैं।” एक युवक ने मुस्कराते हुए कहा था। हबीब या उसके मां-बाप की कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई थी। जिन आतंकवादियों की चर्चा वह सुनता रहता था, वे आज उसके मेहमान थे। उसके ही हम उम्र लड़के, बस उनके हाथों में बंदूकें थीं। हबीब को उनसे कोई भय महसूस नहीं हुआ। उसे मालूम है, कुछ लोग अक्सर लड़कों को जबरन अपने साथ ले जाकर, हथियार चलाना सिखाकर उनके मस्तिष्क को कुंद कर देते हैं, जिससे उनमें खून बहाने का जुनून सवार हो जाता है। वे एक बार खून बहाते हैं तो बहाते ही रहते हैं, जब तक उनका अपना खून नहीं बह जाता।हबीब उनसे अलग ही रहा। वह जानता था, उसके विचार उन लोगों से मेल नहीं खाते। अगर उसके मुंह से कोई ऐसी बात निकल जाती, जो उन्हें पसन्द न आती तो उन्हें गोली मारने में कोई संकोच नहीं होता।उन लोगों ने खाना खाया था। फिर उनमें से एक अब्बू से बोला- “मियां, आपके लिए खुशखबरी है कि मैं आपकी बेटी से निकाह कर रहा हूं।”उसकी बात सुनकर सभी स्तब्ध रह गए। किसी की कुछ समझ में नहीं आया। उनमें से एक मौलाना को बुला लाया। बंदूकों के साए में शब्बो का निकाह हो गया। उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। घर में बंदूकधारियों की खिलखिलाहट और मां-बहन की सिसकियां गूंज रही थीं। सुबह शब्बो उन लोगों के साथ विदा हो जाएगी, उसने सोचा था। लेकिन रात में ही शब्बो पड़ोसी के घर में विदा हो गई, जहां उसका शौहर था। रात में वे सब पड़ोसी के खास मेहमान बने। सुबह उन लोगों ने आस-पास के लोगों को इकट्ठा किया, तब उसे लगा कि अब विदाई की रस्म होगी। शब्बो ने शायद परिस्थितियों से समझौता कर लिया था। तभी शब्बो के शौहर ने उसे तलाक दे दिया। बेटी की बर्बादी ने अब्बू को अर्धविक्षिप्त बना दिया। उन्होंने शब्बो के शौहर की गर्दन पकड़ ली, तभी एक बंदूक की नाल ने आग उगली और वे तड़पते हुए गिरे थे। उनके शरीर से खून बह रहा था। वे युवक सभी को सकते में छोड़कर चले गए। शब्बो को अपनी स्थिति अपमानजनक लगी। एक रात की दुल्हन का मेहर अदा कर उसे तलाक देकर चले गए। बाहर सभी अब्बू की मौत के सदमे में थे। शब्बो की सहेली गुलनार ने जब उसे खोजना चाहा तो वह अपने कमरे में अपने ही दुपट्टे के सहारे लटकी मिली।बाद में पुलिस की खानापूरी और जलालत भी सहन की थी। सब कुछ तिनका तिनका होकर बिखर गया। आतंकवादियों ने गांव में शरण ली थी, इसलिए बाद में फौजियों ने भी परेशान किया। वे गांव के हर युवक से ऐसा व्यवहार करते, जैसे वह भी आतंकवादी हो। वे भी क्या करें, उन्हें भी तो नहीं पता, कब कौन-सा युवक आतंकवादी का रूप ले ले।आज वह कितना अकेला है। मां तो इस दोहरे सदमे से उबर ही न सकी। उसके शरीर को घुन लग गया था और एक दिन वह वादी की मिट्टी में ही दफन हो गई।हबीब को लगता है कि उसकी जिंदगी का कोई अर्थ नहीं रह गया है। शकील ने कितनी ही बार समझाया कि वह गुलनार से निकाह कर ले और जिंदगी की रवानगी में शामिल हो जाए। लेकिन वह खामोश ही रहता है। वह जानता है, किसी एक मौत के बाद अनेक मौतें होती हैं, जिन्हें कोई नहीं जानता।हबीब को लगा, कोई दरवाजे की सांकल खटखटा रहा है। पहले तो उसने इसे भ्रम ही समझा लेकिन जब दूसरी बार सांकल खटकी तो उसने उठकर दरवाजा खोल दिया।”कौन?” हबीब ने पूछा।सामने सशस्त्र युवकों को देखकर वह चुप रह गया। वे सभी अंदर आ गए। उन्हें देखकर हबीब के अंतर की ज्वाला धधक उठी।”आज हम तुम्हारे मेहमान हैं।” एक सशस्त्र युवक बोला।”घर में अब कोई नहीं है जो तुम लोगों को खाना खिला सके। सब कुछ तो तुम लोगों ने खत्म कर दिया,” हबीब बोला, उसका स्वर कुछ तीखा था।”तू तो बहुत बोल रहा है।” एक बोला।”मैं तो अपनी बर्बादी की बात कह रहा हूं। तुम लोगों को तो खून बहाने से मतलब है।” हबीब बोला।”हम जिहाद के रास्ते पर चल रहे हैं,” दूसरा गुर्राकर बोला।”यह कैसा जिहाद है, जिसमें बेगुनाहों का खून बहा रहे हो। किसी को गोली मारकर मौत की नींद सुला देना आसान है। एक साथ हजारों को मौत तो दे सकते हो लेकिन एक जिंदगी देना बहुत कठिन है। एक-एक सांस के लिए जूझना पड़ता है। रात-दिन की तीमारदारी और लाखों के खर्च के बाद भी बड़ी मुश्किल से एक जिंदगी बचती है।” हबीब तेज स्वर में कहता चला गया।उन युवकों के चेहरों से हबीब को अहसास हो गया कि उन्हें उसका बहस करना पसंद नहीं आ रहा है। “तो तुम्हें समझाना होगा”, एक युवक कुटिलता से मुस्कराते हुए बोला।हबीब कुछ न बोला। उस युवक ने अपनी रायफल सीधी कर दी। अनेक गोलियां हबीब के शरीर में धंस गईं। वह गिरा। अब वह मर चुका था। उसकी आंखें खुली हुई थीं। उसकी आंखों में अनेक सवाल थे।NEWS

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