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पश्चिम बंगालवाम मोर्चे की “बी टीम”सुब्रात मुखर्जीकोलकाता नगर निगम के महापौर सुब्रात मुखर्जी को आगे रखकर तृणमूल कांग्रेस को तोड़ने की जिस साजिश में कांग्रेस तथा माकपा जुटी थी, आखिरकार उसमें उन्हें सफलता मिल ही गयी। 26 अप्रैल को सुब्रात मुखर्जी ने तृणमूल कांग्रेस से अलग होकर “पश्चिम बंग उन्नयन कांग्रेस” नाम से नया दल गठित कर ही लिया। तृणमूल कांग्रेस को तोड़ने की साजिश तभी से चल रही थी जब पिछले आम चुनाव में ममता बनर्जी को उकसाकर तृणमूल कांग्रेस-भाजपा गठबंधन को तोड़ा गया था। इस कामयाबी के कारण कांग्रेस-माकपा आदि दल बहुत प्रसन्न थे, क्योंकि ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद देने की आशा बंधाकर कांग्रेसी मोर्चे में लाया गया था, वह विफल हो गया। ऐसा होगा ही, यह कांग्रेस का पहले से ही पता था। इससे ममता बनर्जी बहुत दु:खी हुई। इस मोर्चे में जाने के कारण से उनको न तो प्रत्याशित सीटें मिलीं और न ही मुख्यमंत्री का पद। ऊपर से लोकसभा की जो सीटें इनके पास थीं, वह भी कम हो गयीं।इस कड़वे अनुभव का अहसास कर राजग में वापस लौटी ममता अब किसी भी हालत में कांग्रेस पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में उनकी लड़ाई वाममोर्चे के साथ है और कांग्रेस किसी भी हालत में ऐसी किसी भी लड़ाई में हिस्सा नहीं ले सकती। “दिल्ली में दोस्ती तथा पश्चिमी बंगाल में कुश्ती,” यह नीति इस बात का प्रमाण है कि राज्य में कोई वाम-विरोधी न रहें, कांग्रेस इसी में लगी है। वामविरोधी शक्ति के रूप में अभी भाजपा की स्वीकार्यता नहीं हैं। लेकिन भाजपा के साथ अगर तृणमूल कांग्रेस का गठजोड़ चुनाव में उतरा तो परिणाम कुछ भी हो सकता है। यही कारण है कि वाममोर्चा तृमणूल कांग्रेस को भाजपा से अलग करना चाहता था, और इसके लिए उसने कांग्रेस को आगे किया।कोलकाता के महापौर सुब्रात मुखर्जी को इस काम के लिए इस्तेमाल किया गया। कांग्रेस के कहा कि वामविरोधी महाजोट बनाए बिना वाममोर्चा को नगर निगम के चुनावों में हराना सम्भव नहीं है। यह तर्क आम जनता को भी प्रभावित कर रहा है। लेकिन अगर इस बार भी ममता बनर्जी इस महाजोट लिए राजी हो जातीं तो उसका अर्थ होता कि भाजपा उस मोर्चे में नहीं होती। अंतत: परिणाम भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस के विरुद्ध जाता, ममता बनर्जी इस वास्तविकता को समझ रही थीं। यही कारण है कि उन्होंने सुब्रात मुखर्जी को अलग हो जाने दिया। तय है कि सुब्रात अपनी नई पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ेंगे। पर इनकी मजबूरी यह होगी कि ये वाममोर्चे के विरुद्ध तीखा हमला नहीं कर पाएंगे। अगर केन्द्र में सरकार चलाते रहना है तो कांग्रेस को नगर निगम के चुनाव “फ्रेंडली मैच” की तरह ही खेलने होंगे। इसीलिए तो ममता बनर्जी कांग्रेस को वाममोर्चे की “बी टीम” कहती हैं।कोलकाता से असीम कुमार मित्रNEWS
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