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ये अचानक चर्च और मस्जिदों की बाढ़ क्यों?आंध्र प्रदेश में शासकीय कर्मचारियों तथा शिक्षण संस्थाओं में मुस्लिमों को आरक्षण देने के मुद्दे के साथ ही चर्च तथा मस्जिदों की निरंतर बढ़ती संख्या भी सुर्खियों में आई। प्रदेश के राजस्व बोर्ड द्वारा 31 मार्च, 2005 तक के आंकड़ों के अनुसार, “आश्चर्यजनक रूप से मस्जिद और चर्च की कुल संख्या मंदिरों की संख्या से ज्यादा पायी गई है।” आरक्षण और मस्जिदों की बढ़ती संख्या ये दोनों चिंता का विषय हैं।आंकड़े बोलते हैंजिला मंदिरों की संख्या चर्च की संख्या मस्जिदों की संख्या आदिलाबाद 12,346 3,347 18,482 अनन्तपुर 14,008 14,008 9,328 चित्तुर 26,120 26,120 12,320 कडप्पा 22,992 7,241 14,223 पूर्वी गोदावरी 8,220 12,123 9,230 गुन्टूर 9,302 16,388 5,429 हैदराबाद 13,144 3,204 15,203 काकीनाडा 7,203 8,585 5,274 करीमनगर 4,129 1,648 9,714 खम्मम 5,210 7,203 5,922 कृष्णा 8,929 8,462 3,769 कुर्नूल 6,549 5,203 9,293 मछलीपट्टणम 5,000 8,320 6,493 महबूबनगर 3,299 3,128 7,235 मेंडक 6,302 3,203 3,234 नेल्लूर 7,993 6,782 7,323 नलगोण्डा 6,882 2,412 5,239 निजामाबाद 4,255 5,583 9,366 प्रकाशम 4,255 5,583 4,932 श्रीकाकुलम 7,339 9,879 2,140 वारंगल 1,393 6,320 1,342 पश्चिम गोदावरी 3,293 5,464 2,765 विशाखापट्टनम 6,430 3,203 4,203 विजयनगरम 3,891 3,100 3,500 कारगिल युद्ध के बाद भारत सरकार ने मस्जिदों, मदरसों की बढ़ती संख्या तथा आतंकवाद के परस्पर संबंध पता लगाने के लिए दो कार्रवाई समितियों की स्थापना की थी। इसमें एक सीमा सुरक्षा तो दूसरी आन्तरिक सुरक्षा के सन्दर्भ में गठित की गई थी। अनुभवी व्यक्तियों तथा विशेषज्ञों से चर्चा करने के बाद दोनों समितियों ने अनेक निष्कर्ष व सुझाव दिए हैं।समिति की रपट से स्पष्ट होता है कि सीमाओं पर मस्जिदों और मदरसों की बढ़ती संख्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है। कुछ गांवों और जिलों में मुसलमानों की जनसंख्या कम होते हुए भी अनुपात में मस्जिदों और मदरसों की संख्या अधिक है, जिनका उपयोग आतंकवादी गतिविधियों के लिए किए जाने का शक है। कुछ स्थानों पर मुस्लिम समाज की आर्थिक स्थिति अत्यंत निम्न होने के बावजूद वहां पर निर्मित की गईं भव्य मस्जिदों, मदरसों से पता चलता है कि इनके निर्माण में भारी मात्रा में बाहर से पैसा भेजा गया था। ये स्थानीय मुस्लिम समाज के योग-दान से बने प्रतीत नहीं होते। मुस्लिम मजहबी स्थलों के निर्माण में बढ़ती इस विदेशी मदद पर भी समिति ने चिंता जताई है।चर्चा है कि बढ़ती चर्च संख्या भी ईसाई समुदाय द्वारा आरक्षण की मांगों की पूर्व तैयारी हो सकती है। स्वयं ईसाई होते हुए भी सुप्रसिद्ध गांधीवादी अर्थशास्त्री कुमारप्पा कहते थे, “ईसाई मिशनरी साम्राज्यवादी हैं। उनके अनुसार साम्राज्य के विस्तार के लिए नौसेना, थलसेना, वायुसेना के समान चर्च भी सेना का चौथा अंग है।” अधिकांश ईसाई समुदाय चर्च को देशप्रेम से श्रेष्ठ मानते हैं। इसलिए प्रत्येक गांव में चर्च के निर्माण के लिए वे प्रयत्नशील हैं तथा इसी उद्देश्य से भारत में काम करने वाली कनाडा की संस्था “क्राइस्ट फॉर इंडिया” जैसी अन्य ईसाई संस्थाओं के क्रियाकलापों की अनदेखी करना देश के लिए अच्छा नहीं होगा। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों के अनुसार मस्जिद, मदरसे और चर्च मतांतरण के केन्द्र होते हैं। मतान्तरण के कारण ईसाई, मुसलमानों की जनसंख्या दिनों दिन स्पष्टत: बढ़ रही है। संख्या नहीं तो सत्ता नहीं, सत्ता नहीं तो वित्त नहीं, वित्त के बिना जीवन नहीं, के सूत्र के अनुसार संख्या की ताकत अर्थ को अनर्थ में बदल सकती है। वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में संख्या सत्ता परिवर्तन के शस्त्र के रूप में इस्तेमाल होती दिखाई देती है। मतान्तरण, चर्च तथा मस्जिदों के सम्बंध में स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी, डा. बाबासाहेब अम्बेडकर, संत गाडगे बाबा आदि महापुरुषों ने समय-समय पर चेतावनी दी है। आज उनका स्मरण करना परिस्थितियों को समझने में सहायक होगा।NEWS
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