वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में हो रहे पांथिक जनसांख्यिक परिवर्तन के असर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
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वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में हो रहे पांथिक जनसांख्यिक परिवर्तन के असर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

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Jul 8, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jul 2005 00:00:00

जनसांख्यिक बदलाव से जनजातियों में बढ़तापहचान का संकट-प्रतिनिधिसंगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में दीप प्रज्ज्वलित करते हुए पूर्वकेन्द्रीय मंत्री श्री अरविन्द नेताम, उनके साथ हैं (बाएं से)ले.जनरल. (से.नि.) डी.बी. शेकटकर एवं श्रीजगदेव राम उरांव”मतान्तरण ने भारतीय जनजातीय समाज पर गहरे दुष्प्रभाव डाले हैं। जनजातियों को अपनी परम्परा और पहचान से काटने में ईसाई मिशनरियों की भूमिका असंदिग्ध है। आज जरूरत है एक कार्य योजना की, ताकि हम मतान्तरण के कारण जनजातियों के समक्ष पैदा हुए पहचान के संकट को खत्म कर सकें। वनवासी कल्याण आश्रम और इसके समविचारी संगठनों के कार्यकर्ताओं को आम आदमी तक मतान्तरण के विरुद्ध कार्ययोजना के क्रियान्वयन हेतु जाना होगा, तभी समस्या का समाधान सम्भव हो सकेगा।”डा.जितेन्द्र बजाजउपरोक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. सह सम्पर्क प्रमुख श्री इन्द्रेश कुमार ने व्यक्त किए। वह गत 22 से 24 जुलाई तक गाजियाबाद स्थित मेवाड़ इंस्टिटूट में आयोजित “पांथिक जनसांख्यिकी परिवर्तन का जनजातीय क्षेत्र पर प्रभाव” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। अपने सम्बोधन में हिन्दुत्व को भारतीय राष्ट्रजीवन का मुख्य प्रवाह बताते हुए श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि यह स्थापित सत्य है कि जनजातीय समाज सदा से भारतीय संस्कृति को जीता आया है। ईसाई मिशनरियों ने योजनापूर्वक जनजातीय क्षेत्रों में मतान्तरण का जाल फैलाकर देश में अलगाववाद और हिंसक आन्दोलनों को जन्म दिया है। इस षड्यंत्र के प्रतिकार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्ययोजना की नितान्त आवश्यकता है।सत्र को सम्बोधित करते हुए दिल्ली के पूर्व उप राज्यपाल श्री विजय कपूर ने कहा कि पांथिक आधार पर जनसांख्यिक बदलाव एक असामान्य बात है, इसके समाधान के लिए शासन को कोई न कोई कदम उठाना ही पड़ेगा। श्री विजय कपूर ने आई.एम.डी.टी. प्रकरण पर असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के रवैये पर चिन्ता जताते हुए कहा कि उनका रवैया उच्चतम न्यायालय के निर्णय की मूल भावना के विपरीत है।इस अवसर पर ले.जनरल (से.नि.) एन.एस. मलिक ने कहा कि सीमाओं पर जनसांख्यिक असंतुलन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा है। हमें शत्रु को अब ठीक से पहचाना होगा। उसकी ताकत और कमजोरियों का समुचित विश्लेषण कर हमें तद्नुरूप रणनीति बनानी होगी।इसके पूर्व तीन दिनों तक लगातार चली इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरूआत दिनांक 22 जुलाई को समाजनीति समीक्षण केन्द्र, चैन्ने के प्रसिद्ध जनसांख्यिकी विशेषज्ञ डा. जितेन्द्र बजाज, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री अरविन्द नेताम, सेवानिवृत्त ले. जनरल डी.बी. शेकटकर के सम्बोधनों के साथ हुई। उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में डा. जितेन्द्र बजाज ने देश के बदलते जनसांख्यिक स्वरूप, विशेषत: जनजातीय क्षेत्रों में गत् 100 वर्षों में हुए जनसंख्यात्मक परिवर्तनों पर प्रकाश डाला। ले. जनरल (से.नि.) डी.बी. शेकटकर ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि देश में अवैध घुसपैठ ने गैरकानूनी हरकतों को बढ़ावा दिया है। इसका सीधा असर स्थानीय संस्कृति, भाषा, विचार, रहन-सहन, आर्थिक स्थिति पर पड़ा है। आज देश में जनसंख्यात्मक असंतुलन के प्रति जागरूकता की बहुत जरूरत है। जन-जागरूकता ही सरकार पर समस्या के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाने का दबाव बना सकती है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री अरविन्द नेताम ने इस अवसर पर कहा कि आधुनिक जीवन पद्धति ने वनवासी युवकों को स्वधर्म, संस्कृति, परम्परा और ईमानदारी से विमुख किया है। इससे तो अच्छे हमारे निरक्षर लोग ही थे जो अनपढ़ होने के बावजूद ईमानदारीपूर्वक समस्याओं के समाधान में प्रभावी भूमिका का निर्वहन करते थे। श्री नेताम ने इस बात पर चिन्ता जताई कि पढ़े-लिखे वनवासी युवकों में स्वार्थपरता बढ़ रही है।समापन सत्र में अपने विचार रखते हुए श्री कृपा प्रसाद सिंह। मंच पर अन्य गण्यमान्यजन हैं (बाएं से) श्री राजकुमार जैन, श्री विजय कपूर, ले.जनरल (से.नि.) एन.एस. मलिक, श्री इन्द्रेश कुमार, श्री जगदेव राम उरांव एवं श्री एस.के. कौल।गोष्ठी में मतान्तरण से सम्बंधित जिन अन्य मुद्दों पर विचार हुआ उनमें “ईसाईकरण के कारण जनसांख्यिक परिवर्तन”, “विदेशी घुसपैठ एवं मुस्लिम मतांतरण” तथा “पांथिक जनसांख्यिक परिवर्तन एवं प्रसार माध्यमों की भूमिका और अनुभव” प्रमुख थे। विभिन्न सत्रों में अनेक ख्याति प्राप्त विद्वानों, अधिकारियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। इनमें दैनिक हितवाद, नागपुर के संपादक श्री विराग पाचपोर, कर्नल (से.नि.) आर.एस.जस्सल, पूर्व आई.पी.एस.अधिकारी श्री अशोक कुमार साहू, प्रज्ञा प्रवाह के श्री राजेन्द्र चड्ढा, श्री महेश कुमार (मध्य प्रदेश), श्रीमती माधवी जोशी (रायपुर), श्री एस.के.कौल (नई दिल्ली) आदि प्रमुख थे। कई वरिष्ठ पत्रकारों ने भी संगोष्ठी में हिस्सा लिया। मीडिया में जनसंख्यात्मक असंतुलन के मुद्दे को पर्याप्त महत्व न मिलने पर अनेक लेखक, पत्रकारों ने चिन्ता व्यक्त की। मीडिया की भूमिका पर आयोजित सत्र में इंडिया टुडे (हिन्दी) के सहायक सम्पादक श्री जगदीश उपासने, वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रबाल मैत्र, श्री पी.बी. दास गुप्ता (पी.टी.आई.) आदि ने प्रमुख रूप से अपने विचार व्यक्त किए।गोष्ठी में वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगदेव राम उरांव, सह संगठन मंत्री श्री गुणवन्त सिंह कोठारी, सह मंत्री श्री कृपा प्रसाद सिंह, श्री सोमैया जुलु, श्री अवध बिहारी, रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री मधु भाई कुलकर्णी, उत्तर क्षेत्र प्रचारक श्री दिनेश चन्द्र और क्षेत्र संघचालक श्री बजरंग लाल गुप्ता सहित अनेक प्रमुख अधिकारियों ने पूरे समय उपस्थित रहकर जनजातीय समुदायों में मतान्तरण के प्रभाव व रोकथाम संबंधी उपायों पर विचार-विनिमय किया।NEWS

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