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न कुछ मांगा देश से सिर्फ देना सीखासरस्वती शिशु मंदिर, माणिक बाग मार्ग, इन्दौर की पूर्व प्राचार्या, ख्यातिलब्ध सामाजिक कार्यकत्र्री श्रीमती स्नेहलता रानडे उपाख्य मालू ताई अब नहीं रहीं। इन्दौर में गत 16 अक्तूबर को 73 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया। अत्यन्त सरल व मृदु व्यवहार, साधारण परिवेश वाली मालू ताई का सम्पूर्ण जीवन देश और समाज की सेवा करते बीता। वे मूलत: महाराष्ट्र के ठाणे की रहने वाली थीं। 16 अप्रैल, 1932 को मालू ताई का जन्म एक गरीब किन्तु अत्यन्त संस्कारित व परंपरावादी ब्राह्मण परिवार में हुआ। माता-पिता ने प्रेम से नाम रखा मालती और फिर यही नाम आगे चलकर मालू ताई बन गया।देशभक्ति और हिन्दुत्व के प्रति अनुराग उनके मन में बचपन से ही था। अपने पिता की प्रेरणा से उन्हांेने सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया। समाज में फैली छूत-अछूत, जात-पात की भावना उनके मन को सदैव कचोटती थी। चूंकि उनका अध्ययन अत्यन्त कठिनाइयों से सम्पन्न हुआ, इसलिए उन्होंने बालिका शिक्षा, सामाजिक समरसता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। देश विभाजन के समय शरणार्थी हिन्दुओं की सहायता के लिए भी मालू ताई ने अथक परिश्रम किया।23 वर्ष की आयु में मालू ताई का विवाह रायगढ़ निवासी श्री कृष्ण रानडे के साथ हुआ और उन्हें लोग स्नेहलता के नाम से जानने लगे। ससुराल में भी उन्होंने महिला मण्डल की स्थापना कर गृहस्थी के साथ सामाजिक जागरण का कार्य भी किया। सन् 1956 में अपने पति के साथ वे इन्दौर आईं तो फिर इन्दौर की ही होकर रह गईं। सन् 1966 में इन्दौर में जब सरस्वती शिशु मंदिर की नींव पड़ी तब मालू ताई की इस कार्य में अग्रणी भूमिका थी।उनके पति की असामयिक मृत्यु हुई तब उन्हें पति के स्थान पर सरकारी नौकरी कर सकने का सुअवसर भी प्राप्त था। पर धन्य है उनकी ध्येयनिष्ठा, उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर के कार्य में ही रमे रहना श्रेयस्कर माना। मालू ताई द्वारा गढ़े गए कितने ही रत्न आज सुविख्यात संस्थानों, उद्योगों आदि में अपनी प्रतिभा के बल पर शीर्ष स्थानों पर हैं।ऐसी महान आत्मा को पाञ्चजन्य परिवार की भावपूर्ण श्रद्धांजलि।NEWS
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