आत्म-दीप : आशीष गौतम "भैयाजी"
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आत्म-दीप : आशीष गौतम "भैयाजी"

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Jun 11, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Jun 2005 00:00:00

कुष्ठ रोग से जूझने और जीतने का संकल्पअजेन्द्र अजयश्री आशीष गौतम उपाख्य भैया जी ने जब कुष्ठ रोगियों के बीच कार्य शुरू किया था तो प्रारम्भ में कई बार उनका जी घबरा उठता था। यदि कभी शरीर के किसी भाग पर हल्की सी खुजली होती तो उन्हें कुष्ठ रोग की चपेट में आने की आशंका होने लगती थी। मगर कुष्ठ रोगियों की सेवा के प्रति भैया जी के दृढ़ संकल्प, उनकी निरंतर सेवा, साधना व समर्पण ने उन्हें विचलित नहीं होने दिया। इसी निरंतर सेवा, साधना व समर्पण का परिणाम आज “दिव्य प्रेम सेवा मिशन” के रूप में सामने है। भैया जी द्वारा स्थापित दिव्य प्रेम सेवा मिशन कुष्ठ रोगियों एवं वन गुर्जरों के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा और उनके स्वास्थ्य को लेकर अलख जगाने में लगा है।तीर्थ नगरी हरिद्वार में चंडीघाट पुल से गुजरते समय पुल के समीप स्थित दिव्य प्रेम सेवा मिशन पर नजर अनायास ही चली जाती है। दिव्य प्रेम सेवा मिशन वास्तव में साधना का केन्द्र है। यह बात अलग है कि यहां सेवा की साधना की जाती है और इस साधना को फलीभूत करने व आकार देने में जुटे हैं 43 वर्षीय आशीष गौतम, जिन्हें मिशन में सभी प्यार से भैया जी कहकर बुलाते हैं।मूल रूप से हमीरपुर (उ.प्र.) के रहने वाले आशीष गौतम ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर व एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा उन्हें अपने परिवार व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्राप्त हुई। वह छठी कक्षा में थे, तब पहली बार संघ की शाखा में गए थे। शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपना पूरा समय संघ को समर्पित कर दिया और वर्ष 1995 तक संघ के प्रचारक के रूप में कार्य करते रहे। धीरे-धीरे उनका रूझान आध्यात्मिक साधना की ओर होने लगा। उन्होंने काफी समय तक हरिद्वार, गंगोत्री आदि स्थानों में साधना की। फिर प्रश्न यह उठ खड़ा हुआ कि साधना में प्राप्त ऊर्जा का सदुपयोग कैसे हो? इसका उन्हें एक ही विकल्प सूझा। वह था सेवा का मार्ग।हरिद्वार में साधनारत रहने के दौरान आशीष गौतम को चण्डीघाट में कुष्ठ रोगियों की बस्ती के बारे में जानकारी मिली। उन्हें लगा कि हमारे समाज में सबसे अधिक उपेक्षित, बहिष्कृत व घृणास्पद स्थिति में कुष्ठ रोगी ही रहता है। कुष्ठ रोगी की सेवा से बेहतर कोई और सेवा नहीं हो सकती। वर्ष 1997 में उन्होंने कुष्ठ रोगियों के बीच जाकर उनकी चिकित्सा इत्यादि के बारे में प्रयास शुरू किया। बिना किसी सरकारी सहायता के उनके प्रयासों से आज मिशन के चंडीघाट स्थित परिसर में “समिधा चिकित्सालय” संचालित हो रहा है, जिसमें कुष्ठ रोगियों के अलावा झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों व वन गुर्जरों को नि:शुल्क चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध करायी जाती है। मिशन के सुश्रुत अल्सर केयर सेंटर में सेवाव्रती कार्यकर्ता नियमित रूप से कुष्ठ रोगियों की मरहम पट्टी आदि करते हैं। कुष्ठ रोगियों के बच्चों के लिए भारतीय संस्कृति पर आधारित शिक्षा व संस्कार प्रदान करने के लिए माधवराव देवले शिक्षा मंदिर की स्थापना भी की गयी है। मिशन द्वारा हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग (चीला होकर) पर वंदेमातरम् कुंज परिसर स्थापित किया गया है। यह एक आदर्श आवासीय विद्यालय है, जिसमें देश के लगभग 14 प्रांतों के कुष्ठ रोगियों के 130 बच्चे अध्ययनरत हैं। विद्यालय में छात्रों के मानसिक, शारीरिक व आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ उनके सर्वांगीण विकास की ओर ध्यान दिया जाता है।अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए समर्पित कर चुके भैया जी अपने प्रयासों से संतुष्ट हैं। हालांकि वह स्वीकारते हैं कि कोई भी कार्य करने में कठिनाईयां आती हैं किन्तु इससे संकल्प प्रभावित नहीं होना चाहिए। उनका प्रयास है कि कुष्ठ रोगियों के लिए बेहतर चिकित्सा का केन्द्र स्थापित हो और कुष्ठ रोगियों की लड़कियों के लिए एक योग्यतम छात्रावास हो। उनकी यह परिकल्पना कब तक मूर्त रूप लेगी, अभी कहना कठिन है। पर, यह सच है कि कुष्ठ रोगियों व उनके बच्चों के प्रति समाज के प्रचलित दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिए, कुष्ठ रोगियों के प्रति समाज की संवेदना जगाने और उसे अपने दायित्व के निर्वहन के लिए तैयार करने के ऐसे प्रयास अवश्य फलीभूत होंगे।अजेन्द्र अजयNEWS

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