मेरी नजर में आत्म-दीप

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दिंनाक: 11 Jun 2005 00:00:00

झुग्गी-झोपड़ी में स्वावलम्बन अभियान के अग्रदूत- कुंदन व्याससम्पादक, दैनिक मातृभूमि, मुम्बईमेरे एक मित्र हैं मुम्बई के सुविख्यात प्रामाणिक एवं ईमानदार लेखाकार (चार्टर्ड एकाउंटेंट) श्री रश्मिन भाई संघवी। उनकी सोच थी कि जैसे गांधी जी ने सत्य के प्रयोग किए थे, वैसे ही वे धर्म के प्रयोग करेंगे। उनकी दृष्टि में मानव सेवा ही धर्म है। मानव सेवा के विभिन्न कार्यों में से उन्होंने लक्ष्य तय किया कि वे मुम्बई के फुटपाथों पर रहने वालों को उनके पैरों पर खड़ा करेंगे, स्वावलम्बी बनाएंगे, पढ़ने-लिखने या व्यवसाय स्थापित करने में उनकी मदद करेंगे। वे प्रत्येक रविवार एवं इसके अलावा अन्य अवकाश के दिनों में झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में जाते हैं। वहां लोगों का मार्गदर्शन करते हैं, उन्हें अपना काम स्थापित करने के बारे में सुझाव देते हैं और आवश्यकतानुसार मदद भी देते हैं। इस काम में उनके साथ उनके कुछ मित्र भी जुट गए। धीरे-धीरे उनके प्रयत्नों से 1000 से अधिक परिवार स्वावलम्बी बन गए हैं। इस कार्य के लिए न उन्होंने कोई संस्था बनाई न ही किसी से धन एकत्रित किया। बस कुछ मित्रों के साथ जुटे हैं, बिना किसी प्रचार के, बिना किसी स्वार्थ के।पूरे देश में व्याप्त निराशा के वातावरण, नकारात्मक सोच, राजनेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार व अविश्वास के इस दौर में भी इन सबसे प्रभावित हुए बिना नि:स्वार्थ भाव से समाज सेवा में जुटे लोग कितने होंगे, कहा नहीं जा सकता। लेकिन मीडिया और समाचार-पत्रों की भूमिका इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है कि वे ऐसे लोगों को सामने लाएं, क्योंकि एक दिया भी अंधकार को कुछ मात्रा में दूर कर सकता है। हजारों लोग ऐसे हैं जो स्वयं को जलाकर समाज को प्रकाश दे रहे हैं। यही वे नींव की ईंटें हैं जिन पर हमारा समाज टिका है। मैंने तो केवल एक ही नाम लिया, पर मुम्बई में ही ऐसे हजारों लोग हैं जो अपने व्यक्तिगत प्रयत्नों से और सैकड़ों संस्थाओं के माध्यम से इस काम में जुटे हुए हैं। मैंने गुजरात में भी देखा जहां अनेक संस्थाएं हैं, जिनका न कोई नाम है, न पंजीकरण, न उनकी कोई सदस्यता सूची है और न ही सदस्यता शुल्क-पर प्रत्येक रविवार को कुछ लोग एकत्र हो जाते हैं और स्वयं द्वारा लाए गए सामान से सामूहिक रूप से भोजन बनाते हैं। फिर उनमें से कुछ गरीब बस्तियों में जाते हैं, कुछ अस्पतालों में और वह भोजन बांटकर आते हैं। ऐसे लोगों के बल पर ही तो यह टिका है समाज। मीडिया की यह जिम्मेदारी है कि वह केवल राजनीतिक उठापटक, हिंसा, अपराध की नकारात्मक खबरों पर ही अधिक ध्यान न दे बल्कि ऐसे लोगों और संस्थाओं के कार्यों को भी प्रमुखता से प्रकाशित करे जिससे दूसरे लोगों को प्रेरणा और प्रोत्साहन मिले। इससे स्वयं को भी संतोष मिलेगा कि हम भी कुछ सकारात्मक कार्य कर रहे हैं।NEWS

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