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पाठकीय

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Jun 3, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Jun 2005 00:00:00

अंक-संदर्भ , 6 फरवरी, 2005पञ्चांगसंवत् 2061 वि. वार ई. सन् 2005 फाल्गुन कृष्ण 11 रवि 6 मार्च ,, ,, 12 सोम 7 मार्च ,, ,, 13 मंगल 8 मार्च (महाशिवरात्रि व्रत) ,, ,, 14 बुध 9 मार्च अमावस्या गुरु 10 मार्च फाल्गुन शुक्ल 1 शुक्र 11 मार्च ,, ,, 2 शनि 12 मार्च बिहारकब तक रहेगा अभिशप्त?आवरण कथा “सोनिया की लालू सरकार” के अन्तर्गत संजीव कुमार, कुमार हर्ष और कल्याणी की रपटों से बिहार विधानसभा चुनावों के सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी मिली। अपने स्तम्भ में श्री टी.वी.आर. शेनाय ने सही लिखा कि “दस साल में जिन पत्रकारों ने माना था कि सबसे खराब प्रशासन बिहार में है, आज वे मानते हैं कि वहां किसी भी प्रकार का प्रशासन नहीं है।” कभी देश को दिशा-निर्देश देने वाला बिहार आज बुरी तरह से बेबस है। बंटा हुआ विपक्ष लालू-राबड़ी के कुशासन को उखाड़ फेंकने में सफल होगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा। पर फिलहाल दु:ख तो इस बात का है कि इस कुशासन को कांग्रेस की बैसाखी का सहारा है। यह कुशासन तभी समाप्त होगा, जब जयप्रकाश नारायण की तरह जनता के सामने एक वैसा ही नेतृत्व उभरे।-सुरेन्द्र शर्मा70, सदर बाजार, नसीराबाद (राजस्थान)पुरस्कृत पत्रमुकदमा करोड़ों कापंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल और उनके पुत्र के विरुद्ध आय से अधिक सम्पत्ति रखने के आरोप में जो मुकदमा किया है, उसकी पैरवी के लिए वे अब तक डेढ़ करोड़ रुपए खर्च कर चुके हैं। जानकारी के अनुसार इस मुकदमे के लिए वकीलों का एक दल दिल्ली से सरकारी खर्चे पर बुलाया जाता है और प्रत्येक पेशी के लिए हर वकील को 5-5 लाख रुपए दिए जाते हैं। यह मुकदमा निकट भविष्य में समाप्त होने वाला है, ऐसा भी नहीं है। यानी सरकार इस एक मुकदमे के पीछे करोड़ों रुपए खर्च कर देगी। पता यह भी चला है कि पंजाब के लगभग एक दर्जन विधायकों को विदेशों की सैर कराने के लिए लगभग 88 लाख रुपए की राशि स्वीकृत की गई है। मुकदमे लड़ने और सैर करने के लिए पंजाब सरकार के पास जब इतने पैसे हैं तो जनता जानना चाहती है कि हजारों बेसहारा बुजुर्गों को दी जा रही पेन्शन बन्द क्यों कर दी गई? सरकारी विद्यालयों में 30 हजार से अधिक पद खाली क्यों हैं? अन्यान्य नियुक्तियां बन्द क्यों कर दी गई हैं? अस्पतालों में रोगियों को दवाइयां और अन्य सुविधाएं क्यों नहीं मिलतीं? “होम गाड्र्स” के जवानों को मात्र 90 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से वेतन क्यों मिलता है? उनका वेतन क्यों नहीं बढ़ाया जाता?-प्रो. लक्ष्मीकान्ता चावलाउपाध्यक्ष, पंजाब प्रदेश,भाजपा, अमृतसर (पंजाब)——————————————————————————–हर सप्ताह एक चुटीले, स्रदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.बिहार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में जहां विपक्षी दलों ने अपने-अपने घोषणा-पत्रों में राज्य की कानून-व्यवस्था को ठीक करने की बात कही है, वहीं लालू यादव भी वहां कानून-व्यवस्था चाक-चौबंद करने की बात कर रहे हैं। यह हास्यास्पद ही लगता है। आखिर जो बिहार गत पन्द्रह वर्षों में पिछड़ेपन की सीमा पार कर गया हो, जहां की अराजक स्थिति पर उच्च न्यायालय तक टिप्पणी कर चुका हो, जहां आम से लेकर खास लोगों के अपहरण व हत्याओं की घटनाओं पर अब आश्चर्य नहीं होता, लोग बदहवास होकर पलायन कर रहे हों, मजदूर तबका काम व उचित मजदूरी के अभाव में अन्य प्रदेशों की खाक छानने को विवश हो, उस राज्य का “वास्तविक मुख्यमंत्री” कानून-व्यवस्था, विकास व रोजगार देने जैसे मुद्दों पर वोट मांगे तो राज्य की जनता के साथ इससे ज्यादा भद्दा मजाक और क्या हो सकता है। लालू यादव से कोई यह क्यों नहीं पूछता कि गत 15 सालों में आपने बिहार को कहां पहुंचा दिया है?-संजीव विनौदिया216-सी, गढ़ी कैन्ट, देहरादून (उत्तराञ्चल)जिस बिहार के लालों ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिए, उसी बिहार में आज हिन्दुत्व विरोधी लालू-राबड़ी की सेकुलर सत्ता है। इसके लिए बहुत हद तक भाजपा भी जिम्मेदार है। इसके नेता गांव से नाता तोड़कर अधिकांश समय शहर में क्यों रहने लगे, ग्रामीण स्तर पर भाजपा अपनी शक्ति क्यों नहीं बढ़ा पाई? इन प्रश्नों पर भाजपा को विचार करना चाहिए।-वीर बहादुर सिंहमटिऔर, मोहिउद्दीन नगर, समस्तीपुर (बिहार)बिहार प्राचीनकाल से शिक्षा, संस्कृति और ज्ञान का केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन एवं जयप्रकाश नारायण की क्रांति का बिहार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पर अब हत्या, आतंक, अपहरण, असुरक्षा, अराजकता के ज्वालामुखी में बिहार धधक रहा है। लालू सर्वशक्तिमान नहीं हैं। जनता अपने कर्तव्यों और अधिकारों को समझे। सहने की भी एक सीमा होती है। बिहार में बहार चाहते हैं तो लालू को सत्ता से बाहर करना ही होगा। बहुत नौटंकी देख ली। उनकी सेकुलर करतूतों से कांग्रेस भी परेशान है, फिर भी खुलकर कुछ बोलती नहीं है।-डा. युवराज सिंह जावलबुलंदशहर (उ.प्र.)बिहार के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों में गुजरात दंगों से सम्बंधित पोस्टर चिपकाकर सेकुलरों द्वारा वोट लेने का प्रयास किया जा रहा है। परन्तु दंगे क्यों हुए, इसकी चर्चा नहीं होती। जनसामान्य को चाहिए कि सिर्फ दंगों की चर्चा करने वाले नेताओं से उपरोक्त प्रश्न का जवाब मांगे। अगर गोधरा कांड न होता तो दंगे भी नहीं होते लेकिन गोधरा कांड की चर्चा भी कोई नेता नहीं करता। क्या गोधरा में 59 रामभक्तों को दिन-दहाड़े जिन्दा जला देना एक सामान्य-सी बात है, जिसका कोई महत्व नहीं? अफसोस, यही वर्तमान पंथनिरपेक्ष सोच है!-आनन्द कुमार भारतीयहोम्योपैथिक मेडिकल कालेज, मोतिहारी (बिहार)जागे लोकशक्तिसम्पादकीय “बाजी तो पलटनी चाहिए” बिहार की वास्तविक स्थिति से परिचित कराता है। बिहार में आज पूरी तरह से जंगलराज है और इसे समाप्त करने में “लोकशक्ति” ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हत्या, लूट और अपहरण का पर्याय बन चुके बिहार में आज किसी भी पंथ, समाज, वर्ग का व्यक्ति सुरक्षित नहीं है। यहां तक कि बच्चे भी इस तानाशाही राज के शिकार हो रहे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद विपक्ष बिखरा हुआ है।-दीपक नाईक”वैभवी विहार”, 14, विद्युत नगर,हरनियाखेड़ी, इन्दौर (म.प्र.)स्वागतयोग्य पहलश्री प्रदीप कुमार की रपट “हिन्दू ऐक्य की अनूठी पहल” पढ़कर प्रसन्नता हुई। केरल में लगातार सत्ता में रहीं ईसाई व मुस्लिम वर्चस्व वाली सरकारों ने सदैव हिन्दुओं के हितों पर कुठाराघात कर लाभ उठाया है। रपट में एस.एन.डी.पी. योगम् के महासचिव श्री नतेशन की टिप्पणी केरल की स्थिति पर आंख खोलने वाली है कि अब राज्य में बहुसंख्यक समुदाय के सामने इससे बचने के लिए केवल दो मार्ग बचे हैं-या तो वे अपना मतान्तरण कर लें या फिर आत्महत्या। नायर और इड्ज्वा समुदायों की यह पहल भारत के इस सर्वाधिक शिक्षित प्रान्त केरल को एक नई पहचान देगी।-रामचन्द बाबानीस्टेशन मार्ग, नसीराबाद (राजस्थान)कीमत कम करेंमैं पाञ्चजन्य का वर्षों पुराना पाठक हूं। हमें इस बात की चुभन होती है कि पाञ्चजन्य केवल वर्ग विशेष का पत्र बनकर क्यों रह गया है? यह आम पाठकों के लिए सुलभ क्यों नहीं है? मेरे विचार से इसके अधिक प्रसार में इसकी कीमत बाधक है। क्यों न आप इसका मूल्य 5 रुपए कर दें?-वेद प्रकाश विभीषणस्वामी विवेकानन्द मार्ग, घुघरीटांड़, गया (बिहार)एक षड्यंत्र ऐसा भीगत 9 जनवरी को श्रीनगर स्थित आयकर कार्यालय में दो आतंकवादी घुस गए। उन्हें निकालने के लिए की गई कार्रवाई में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के 4 जवान और 2 अधिकारी शहीद हो गए। पता चला है कि इन दोनों आतंकवादियों को जान-बूझकर वहां घुसाया गया था, क्योंकि यह कार्यालय जम्मू-कश्मीर के भ्रष्ट व्यापारियों, कर्मचारियों एवं नेताओं की आंखों की किरकिरी बना हुआ था। आयकर अधिकारी ऐसे लोगों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई न कर पाएं, उनसे डर कर रहें, इसी कारण यह षड्यंत्र रचा गया था।-रतन लाल वैश्यजम्मू (जम्मू एवं कश्मीर)प्रगति का मूल-मंत्रचौड़ा सीना चाहिए, दिल में हो कुछ आगतभी जगेंगे समझ लो, इस बिहार के भाग।इस बिहार के भाग, जब तलक लालू-राबड़ीका शासन है, तब तक रहेगी जनता पिछड़ी।कह “प्रशांत” मोदी ने आकर के समझायागुजराती प्रगति का मूल-मंत्र बतलाया।।-प्रशांतसूक्ष्मिकाबेचाराबेचारा अधिकारीबाबू के सामनेनाक रगड़ता हैक्योंकिघूसखोरी का हिसाब-किताबबाबू के पास हीरहता है।-कुमुद कुमारए-5, आदर्श नगर,नजीबाबाद, बिजनौर (उ.प्र.)मैकाले पुत्र ध्यान दें!पिछले दिनों मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल गौर ने प्रशासनिक अकादमी, भोपाल में भाषण देते हुए प्रदेश के पशु चिकित्सकों को सलाह दी कि वे जब कभी गांव में जाएं तो धोती-कुर्ते में जाएं। कुछ अंग्रेजी- भक्तों ने इस सलाह की आलोचना की है और कहा है कि श्री गौर अनावश्यक रूप से देशभक्ति दिखा रहे हैं। आलोचकों ने यह भी कहा है कि समय की मांग है कि अंग्रेजी भाषा सीखनी चाहिए, क्योंकि वह देश की सम्पर्क भाषा है।जहां तक वेश का प्रश्न है, धोती-कुर्ते के बारे में आलोचना करके हम एक तरह से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री की ही आलोचना करते हैं। सभी को मालूम है कि वे दोनों जब विदेश (इंग्लैंड) जाते थे तो महात्मा गांधी केवल धोती और ऊपरी शरीर को ढंकने के लिए एक चद्दर लपेटते थे और लालबहादुर शास्त्री धोती और कुर्ता पहनते थे। उन दोनों विभूतियों ने परिवार वालों तथा मित्रों के आग्रह के बाद भी पैंट और कोट (फुल सूट) पहनने से इंकार कर दिया और उन्होंने कहा कि जिस देश के हम प्रतिनिधि बन कर इंग्लैंड जा रहे हैं उस देश का वेश ही हमारा वेश होना चाहिए।जहां तक अंग्रेजी भाषा के सम्पर्क भाषा होने की है तो इसकी वकालत करने वाले लोगों को संविधान की धारा 343 तथा 346 पढ़नी चाहिए, जिसमें लिखा गया है कि केन्द्र की भाषा हिन्दी है, जो देवनागरी लिपि में रहेगी। केवल 15 वर्ष के लिए अंग्रेजी भाषा सम्पर्क भाषा रहेगी ताकि हिन्दी न जानने वाले लोग उस समय तक हिन्दी सीख लें। पर दु:ख का विषय यह है कि अंग्रेजी भक्तों ने अभी तक अंग्रेजी भाषा को जीवित रखा हुआ है और हिन्दी को कोई महत्व ही नहीं दिया। यदि पिछले 58 वर्षों में हमने हिन्दी और संस्कृत सीखने का ईमानदारी से प्रयास किया होता तो हम इस देश की संस्कृति और इसकी महानता को अच्छी तरह समझ पाते, जो किसी भी देशभक्त के लिए आवश्यक है। अंग्रेजी भाषा के भक्त स्वाभिमानशून्य जीवन जी रहे हैं और उसी में उनको आनंद आता है।-उत्तमचन्द ईसराणी20, सिंधी कालोनी, बैरसिया मार्ग, भोपाल (म.प्र.)NEWS

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