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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले

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Jun 2, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Jun 2005 00:00:00

वर्ष 9, अंक 34, फाल्गुन कृष्ण 9, सं. 2012 वि., 5 मार्च, 1956, मूल्य 3 आनेसम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्रप्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊश्री नेताजी “जापानी कठपुतली” थे!पाक-लेखक द्वारा भारतीय नेताओं के विरुद्ध कुप्रचारषडंत्र में इंग्लैण्ड का हाथ?(निज प्रतिनिधि द्वारा)दिल्ली: संसार की साम्राज्यवादी शक्तियों से सांठ-गांठ कर पाकिस्तान भारत के विरुद्ध किस प्रकार द्वेषपूर्ण भावना का प्रचार कर रहा है, इसका जीता-जागता उदाहरण ग्रेट ब्रिाटेन द्वारा प्रकाशित वह पुस्तक है, जिसमें भारत के नेताओं को भ्रामक और निराधार प्रचार द्वारा बदनाम करने का कुप्रयास किया गया है। सन् 1942 ई. में जब नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द सेना अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालकर स्वदेश को स्वतंत्र कराने के प्रयास में लगी हुई थी, उस समय इस पुस्तक के लेखक श्री महमूद खां दुर्रानी अंग्रेज नौकरशाही को सहायता दे रहे थे और उसके उपलक्ष्य में उन्हें ब्रिाटिश साम्राज्य का सर्वोच्च पुरस्कार “जार्ज क्रास” प्रदान किया गया था।श्री दुर्रानी को ही वीरता का सर्वोत्कृष्ट पदक पुरस्कार रूप में दिया जाना इस बात का प्रतीक है कि भारत की स्वतंत्रता के सेनानियों के विरुद्ध अंग्रेज नौकरशाही को उन्होंने सहायता दी थी। भारत के विरुद्ध मुसलमान विद्यार्थियों को पंचमांगी बनाने का कार्य जिन अंग्रेजों की दृष्टि में सबसे बड़ी वीरता का कार्य हो सकता है वही भारत के महान नेताओं के खिलाफ प्रचार करने वाले इस तथाकथित वीर की भी पीठ ठोक रहे हों तो इसमें आश्चर्य की बात ही क्या है?देश में हुई अशान्ति के लिए कांग्रेस तथा केन्द्रीय शासन उत्तरदायीपं. दीनदयाल उपाध्याय की स्पष्टोक्ति(निज प्रतिनिधि द्वारा)बम्बई : “देश में हुई अशान्ति के लिए कांग्रेस तथा केन्द्रीय शासन उत्तरदायी है। कारण कि कांग्रेस और शासन ने राज्य पुनर्गठन सम्बन्धी निर्णय अपने दल-हित को विचार में रखते हुए किए हैं। ऐसे प्रश्न पर उन्हें गोलमेज सम्मेलन बुलाना चाहिए था। क्या कांग्रेस को सुदृढ़ बनाने के लिए हर पांचवें वर्ष राज्य पुनर्गठन होगा? कांग्रेस से त्रुटि हुई है, अत: उसे साहस के साथ अपनी त्रुटि को सुधार भी लेना चाहिए।” ये शब्द अ.भा. जनसंघ के महामंत्री पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ने राज्य पुनर्गठन की समस्या पर विचार व्यक्त करते हुए स्थानीय जनसंघ कार्यकर्ताओं के समक्ष कहे। उन्होंने आपने भाषण का प्रारम्भ करते हुए कहा, “आयोग के समक्ष जनसंघ द्वारा एकात्मक शासन की मांग की गई थी। इसी के साथ राज्य पुनर्गठन के संदर्भ में कुछ सिद्धान्त भी प्रस्तुत किए गए थे। उसमें एक सिद्धान्त यह भी था कि एक भाषा-भाषी क्षेत्र दो हिस्सों में विभाजित नहीं किया जाना चाहिए, परन्तु आयोग ने विदर्भ (मराठी भाषाभाषी) रहित द्विभाषी बम्बई राज्य (महाराष्ट्र-गुजरात) की सिफारिश की। यह उसकी भूल थी। हमने साधारणत: आयोग के प्रतिवेदन का स्वागत ही किया। कई महानुभावों ने तो यहां तक कहा कि वह प्रतिवेदन तो मोटे तौर पर जनसंघ की सिफारिश के अनुसार तैयार किया गया है।”बजट पर एक नजरकेन्द्रीय वित्तमंत्री श्री चिंतामणि देशमुख द्वारा 1956-57 का अनुमानित केन्द्रीय आय-व्ययक (बजट) संसद में उपस्थित किया जा चुका है। प्रस्तुत आय-व्ययक में राजस्व से 4 अरब 93 करोड़ 60 लाख रुपए प्राप्त होने का अनुमान लगाया गया है और 5 अरब 45 करोड़ रुपए के व्यय की आशा व्यक्त की गई है। इस प्रकार आय-व्ययक में आगामी वित्तीय वर्ष में 51 करोड़ 83 लाख रु. का घाटा दिखाया गया है। इस घाटे के 34 करोड़ 15 लाख रुपए नए कर लगाकर वसूल करने की बात कही गई है और फलस्वरूप अनुमानित घाटा केवल 17 करोड़ 68 लाख रुपए का ही रह जाएगा। सिगरेट आदि जैसी विलास सामग्रियों पर कर बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। यदि उन पर कर बढ़ाकर कपड़े को अधिक कर से मुक्त कर दिया जाता तो अच्छा रहता। इसके कारण बढ़ती हुई विलासिता की गति भी कुछ अंशों में रुद्ध होती।NEWS

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