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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भचित्रकूट में ग्रामवासियों ने मिलकर कराया बसन्ती-रूद्र का विवाहगांव की बेटी गांव की इज्जत-सर्वेश कुमारविवाह मण्डप में बसन्तीचित्रकूट जनपद के जनजातीयबहुल ग्राम भरगवां की रहने वाली बसंती ने कभी स्वप्न में भी न सोचा था कि उसके हाथ पीले करने का भार एक दिन उसके गांव के लोग संभाल लेंगे। गोंड जनजाति की बसन्ती जब विवाह योग्य हुई तो उसने पाया कि उसके दुर्बल, अस्वस्थ और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत कमजोर पिता उसके विवाह के लिए चिंतित तो हैं लेकिन लाचारी और बेबसी के पहाड़ ने उनके सामने बेटी के विवाह के रूप में एक विकट समस्या पैदा कर दी है। एक पिता अपनी दीन-हीन अवस्था के कारण अपनी बेटी का विवाह कर पाने में असमर्थ है, इसकी जानकारी जब चित्रकूट में ग्रामीण विकास के लिए समर्पित संस्था दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यकर्ताओं को हुई तो संस्थान के कार्यकर्ताओं ने बसन्ती के विवाह का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया।संस्थान से जुड़े परिवार स्वावलंबन केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने स्थानीय महामंगल ग्राम विकास समिति के सदस्यों के साथ मिलकर पहले तो विवाह योग्य वर की तलाश की और फिर भरगवां ग्राम तथा आस-पास के 298 परिवारों से विवाह के लिए सहायता भी प्राप्त की। स्वाभाविक ही एक असहाय बाप का कंधा जिस जिम्मेदारी के निर्वहन में असमर्थ हो गया था उसे सहारा देने सैकड़ों लोग आ गए। और गत दिनों बसंती का रूद्र नामक युवक से विवाह धूमधाम से सम्पन्न हो गया। अपने गांव की बेटी बसंती के लिए समाज द्वारा मुक्तहस्त से किए गए इस प्रयास के बारे में जिसने भी सुना, उसी ने मुक्त कंठ से इसकी प्रशंसा की। महामंगल ग्राम विकास समिति के कार्यकर्ताओं ने भी उत्साहित होकर संकल्प लिया कि हमारे ग्रामों की बेटियां हमारी इज्जत हैं। अब किसी बेटी को बेसहारा या अन्य आर्थिक कारणों से घुट-घुट कर जीने की जरूरत नहीं होगी। उसके सपने हमारे होंगे और हम मिलकर संवारेंगे अपनी बेटियों का भविष्य।-सर्वेश कुमारNEWS
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