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देवेन्द्र स्वरूपअमरीका में भारत विरोधी षड्यंत्र सफलभारत की बदनामी, इनकी खुशीयह अच्छा ही हुआ कि अमरीकी सरकार ने गुजरात के निर्वाचित मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने देश में नहीं आने दिया। अमरीका न जाने से नरेन्द्र मोदी ने कुछ खोया नहीं, उलटे पाया ही पर, अमरीका ने बहुत कुछ खोया है। पूरा मुस्लिम जगत अमरीका से घृणा करता है, ईसाई यूरोप भी अमरीका की दादागिरी से परेशान है। पता नहीं क्यों संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र अमरीका को सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र समझकर उसे जिहाद विरोधी वैश्विक युद्ध के नेता के रूप में देखने लगा था। विशेषकर 9/11 के जिहादी हमले ने भारत के मन में अमरीका के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा कर दी थी। वह अमरीका के पिछले रिकार्ड को भूलने की कोशिश कर रहा था। अमरीका की धरती पर वहां के मूल निवासियों पर जो अत्याचार हुए, भयंकर नरसंहार हुआ, प्राचीन सभ्यता का विध्वंस रचा गया, मानव इतिहास के इस काले और रक्तरंजित पृष्ठ को भारत भूल जाना चाहता था। वहां के मूल निवासियों के सर्वनाश पर यूरोप के गोरे ईसाइयों द्वारा खड़ी की गई औद्योगिक सभ्यता का महल विश्व कल्याण का साधन बनेगा, यह विश्वास अमरीका के नीति-निर्माता लाते रहे हैं। वे मानवाधिकारों की रक्षा और लोकतंत्र का स्वयं को प्रहरी व वाहक घोषित करते रहे हैं यद्यपि उनका आज तक का आचरण इससे विपरीत रहा है। उन्होंने संसार में कहीं लोकतंत्र की रक्षा नहीं की, हमेशा तानाशाहों को संरक्षण एवं प्रोत्साहन दिया। वह चाहे चिली का अगस्तो पिनोशेर हो, चाहे क्यूबा का फुलगेन्सियो रहा हो, चाहे पाकिस्तान के जनरल मुशर्रफ हों, चाहे सऊदी अरब का शाही परिवार हो। अमरीका ने अपने स्वार्थ के लिए भीषण नरसंहार करने में कभी संकोच नहीं किया। द्वितीय विश्व युद्ध में विजय पाने के लिए उसने हिरोशिमा व नागासाकी पर पहली बार अणु बम बरसा कर हजारों-लाखों निर्दोष निरीह जापानियों का नरसंहार कर दिया और वहां की भावी पीढ़ियों को रोगग्रस्त बना दिया। अभी भी उसने जिहाद के विरुद्ध लड़ाई के नाम पर अफगानिस्तान और ईराक में जो नरसंहार किया है, पाशविक अत्याचार किए हैं, उसके बाद भी यदि अमरीका स्वयं को पांथिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का रक्षक कहे तो इससे बड़ा व्यंग्य मानवता पर क्या हो सकता है।नफरत के व्यापारीभारत के लोकतांत्रिक संविधान के अन्तर्गत एक राज्य के भारी बहुमत से निर्वाचित मुख्यमंत्री को अमरीकी नागरिकों के एक विशाल वर्ग की ओर से प्राप्त निमंत्रण का अनादर करते हुए और विदेशी धन पर पलने वाले कुछ मुट्ठीभर जनाधारशून्य षडन्त्रकारियों के प्रचार से भ्रमित होकर अमरीकी सरकार ने आनन-फानन में गोपनीयता के आवरण में प्रवेशपत्र से वंचित किया। इससे प्रगट होता है कि अमरीकी सरकार जमीनी हकीकत का पता लगाने के बजाय केवल कागजी प्रचार की आंधी में बह सकती है। अमरीका में भारतीय मूल के निवासियों की संख्या इस समय लगभग 20 लाख है। उनमें 40 प्रतिशत अर्थात् सर्वाधिक संख्या गुजरात के लोगों की है। गुजराती समाज अपनी धार्मिकता, उदारता एवं सेवा भावना के लिए प्रसिद्ध है। अमरीका की आर्थिक सम्पन्नता में उनका भारी योगदान है। स्वाध्याय और स्वामिनारायण सम्प्रदाय जैसे विशाल कार्य अमरीका में आध्यात्मिकता और नैतिकता के शक्तिपुंज माने जाते हैं। यह विशाल गुजराती समाज गुजरात के निर्वाचित मुख्यमंत्री के प्रति सहज आत्मीयता एवं सम्मान की भावना रखता है। नरेन्द्र मोदी को अमरीका आने का निमंत्रण देने में इस समाज की मुख्य भूमिका थी। पर सभी राज्यों से गए भारतीयों का उसमें समर्थन एवं सहयोग था। एसोसिएशन आफ इंडियन अमरीकन्स आफ नार्थ अमरीका नामक प्रतिनिधि संगठन के निमंत्रण पर मोदी को 20 मार्च को भाषण देना था। कैलीफोर्निया स्टेट यूनीवर्सिटी के एशियन-अमरीकन स्टडीज विभाग में यदुनन्दन सेन्टर फार इंडिया स्टडीज का उन्हें लांगबीच पर 22 मार्च को उद्घाटन करना था। यदुनन्दन सेंटर की स्थापना के लिए सोलंकी नामक गुजराती उद्योगपति ने, जिन्हें इस वर्ष भारत सरकार ने प्रवासी भारतीय सम्मान से विभूषित किया है, भारी धनराशि दान की है। 24 से 26 मार्च तक फ्लोरिडा राज्य के फोर्ट लाडरडेल में एशियन अमरीकन होटल एसोसिएशन के वार्षिक सम्मेलन में नरेन्द्र मोदी को मुख्य अतिथि के नाते आमंत्रित किया गया था। इस अवसर पर एम.एस.एन.बी.सी. नामक टेलीविजन चैनल के लोकप्रिय कार्यक्रम हार्डबाल के संयोजक क्रिस मैथ्यू को कार्यक्रम प्रस्तुत करना था। इस विशाल समारोह को अमरीकन एक्सप्रेस का आतिथ्य प्राप्त हुआ था। इन सब कार्यक्रमों में भाग लेकर नरेन्द्र मोदी भारतीय मूल के विशाल समाज को भारत का सन्देश पहुंचाते। भारत के, विशेषकर गुजरात के विकास में उनके योगदान को आमंत्रित करते, जिससे गुजरात का और भारत का भला होता।किन्तु कुछ मुट्ठीभर नफरत के व्यापारियों ने भारत और अमरीका के बीच सद्भावना के इस पुल को न बनने देने के लिए एक महीने के भीतर ही प्रचार की ऐसी आंधी खड़ी कर दी कि अमरीकी सरकार के कर्ताधर्ता उस कृत्रिम प्रचार की आंधी में बह गए। अब गर्वोक्ति की जा रही है कि नरेन्द्र मोदी की मार्च में होने वाली यात्रा को रोकने के लिए एक महीना पहले फरवरी 2005 में “कोलीशन अगेन्स्ट जिनोसाईड” (नरसंहार के विरुद्ध गठबंधन) नाम से एक कागजी संस्था खड़ी की गई जिसने ई-मेल, फोन और फैक्स का सहारा लेकर नरेन्द्र मोदी के सभी निमंत्रकों, अमरीकी सांसदों एवं विदेश विभाग के अधिकारियों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। फ्लोरिडा कार्यक्रम के पोषक अमरीकन एक्सप्रेस पर दबाव डाला गया कि वे अपना सहयोग वापस ले। क्रिस मैथ्यू को घेरा गया कि वे होटल एसोसिएशन के कार्यक्रम में न जाएं। कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षाविदों को संयुक्त प्रतिवेदन भेजा गया कि वे नरेन्द्र मोदी को यदुनन्दन सेंटर का उद्घाटन न करने दें। कैलीफोर्निया इंस्टीटूट आफ इन्टीग्रल स्टडीज में एन्थ्रापालोजी की लेक्चरर अंगना चटर्जी इस “कोलीशन अगेन्स्ट जिनोसाईड” की मुख्य कार्यकर्ता है। उसने एशियन एज (21 मार्च) में एक लम्बा लेख प्रकाशित किया है, जिसमें गर्वोक्ति की गई है कि हमने कैसे मोदी को अमरीका नहीं आने दिया। उस लेख में दावा किया गया है कि इस गठबंधन में 38 संस्थाएं और 10 सहायक गुट सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त कुछ व्यक्ति भी इस गठबंधन के सदस्य हैं। यह पता लगाना आवश्यक है कि इन संस्थाओं के नाम क्या हैं, उनकी सदस्य संख्या कितनी है, उनकी आयु कितनी है, उनका अस्तित्व केवल कागज पर है या जमीन पर भी है। खोज करने पर पता चलेगा कि मुट्ठी भर भारतीय वामपंथी अपनी बौद्धिक शक्ति के बल पर यह सब कर रहे हैं। भारतीय वामपंथियों का आजकल एक सूत्री कार्यक्रम हिन्दुत्व की विचारधारा और उसके प्रतिनिधि के नाते संघ विचार परिवार का विरोध करना है। किन्तु वे अमरीका के भी उतने ही कटु आलोचक हैं। वे अमरीकी पैसे और सुविधाओं को तो पसन्द करते हैं। अमरीका में नौकरी का सुख भोगना चाहते हैं किन्तु अमरीका में अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का लाभ उठाकर, अमरीका को गालियां देकर अपनी बहादुरी का प्रदर्शन भी करते रहते हैं। यह विचित्र संयोग है कि नरेन्द्र मोदी की अमरीका यात्रा के प्रश्न पर अमरीकी सरकार और भारतीय वामपंथी एक शिविर में खड़े दिखाई दे रहे हैं।भारत के चर्चकिन्तु अमरीकी सरकार के निर्णय को प्रभावित करने में वामपंथियों से अधिक भारतीय चर्च का योगदान लगता है। अमरीकी समाज पर चर्च की पकड़ ज्यों-ज्यों ढीली हो रही है, बड़े-बड़े ईसाई मत प्रचारकों के यौनाचार की कथाएं अमरीकी मीडिया पर छाई हुई हैं, गोरे अमरीकियों की नई पीढ़ी आध्यात्मिक शान्ति की खोज में भारतीय सन्तों एवं उपदेशकों की ओर आकर्षित हो रही है, त्यों-त्यों अमरीका के चर्च संगठन अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए चिन्तित हो उठे हैं और वे आक्रामक रणनीति अपना रहे हैं। इस रणनीति के अन्तर्गत योजनापूर्वक अमरीकी सरकार पर प्रभाव स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा था। इन्हीं तत्वों की पहल पर 1998 में अमरीकी सरकार के अन्तर्गत “यू.एस. इन्टरनेशनल कमीशन फार रिलीजस फ्रीडम” नामक रचना खड़ी की गई, जिसने स्वयं को विश्वभर में पांथिक स्वतंत्रता का ठेकेदार घोषित कर दिया और विभिन्न देशों की पांथिक स्थिति पर वार्षिक रपट प्रकाशित करना आरंभ कर दिया। अमरीकी चर्च संगठनों की इस सक्रियता का लाभ भारत के चर्च संगठनों ने उठाने का निश्चय किया और समान चर्च हितों के नाम पर उनसे घनिष्ठ मैत्री सम्बन्ध स्थापित कर लिए।यह कितनी विचित्र स्थिति है कि अमरीका पर 11 सितम्बर 2000 के जिहादी हमले के बाद पूरे विश्व के ईसाई देश और समाज जिहाद के विरुद्ध वैश्विक युद्ध की बात कर रहे हैं और अमरीका के चर्च संगठन इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। पर भारत में विभिन्न चर्चों की मिशनरी संस्थाएं हिन्दू समाज के दुर्बल और अशिक्षित वर्गों के मतान्तरण के सपने पाल रही हैं। मतान्तरण में बाधक बन रहे हिन्दू संगठनों को अपना शत्रु मान रही हैं और इन संगठनों के विरुद्ध कट्टरपंथी जिहादी तत्वों के साथ भी हाथ मिलाने को तैयार हैं। इतना ही नहीं तो ये मिशनरी संस्था स्वयं को नास्तिक कहने वाले धर्म विरोधी कम्युनिस्टों के हिन्दुत्व विरोधी प्रचार का मोहरा बनने को भी तैयार हैं। भारत की वोट बैंक राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक सबसे बड़ा होने के कारण इन तीनों- कम्युनिस्ट, जिहादी और चर्च-ने मिलकर गोधरा में 58 हिन्दुओं के नरमेध पर पर्दा डालने और उसकी स्वयंस्फूर्त तात्कालिक प्रतिक्रिया को भाजपा सरकार द्वारा योजित और संचालित सिद्ध करने में अपना पूरा बुद्धिबल और प्रचार सामथ्र्य लगा दिया है। नरेन्द्र मोदी को राक्षसी छवि देकर उन्होंने भाजपा, संघ विचार परिवार और पूरे हिन्दू समाज को दुनिया के सामने कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है।विशाल सूचनातंत्र से सम्पन्न अमरीकी सरकार को भारतीय राजनीति के इस चरित्र की जानकारी न होगी, यह विश्वास करना कठिन है। तब भी उसके पांथिक स्वतंत्रता अन्तरराष्ट्रीय आयोग ने भारत की पांथिक स्थिति पर साक्ष्य देने के लिए कुख्यात तीस्ता-जावेद (सीतलवाड), अमदाबाद स्थित पादरी सेड्रिक प्रकाश और जे.एन.यू. के कम्युनिस्ट प्रोफेसर कमल मित्र चेनाय को ही बुलाना क्यों उचित समझा? इस सेड्रिक प्रकाश ने ही तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त लिंगदोह को भी गुमराह किया था। गुजरात के दंगों पर सभी एकपक्षीय रपटों को तैयार करने में उसकी, जान दयाल और कमल मिश्र चेनाय का मुख्य योगदान रहा है। गुजरात पर सिटीजेन्स रपट एवं अमरीका की आई.डी.आर.एफ. नामक एक प्रवासी भारतीय संस्था के विरुद्ध रपट को मीडिया के सामने लाने के कार्यक्रम माकपा की संस्था सहमत द्वारा आयोजित किए गए थे और उन दोनों अवसरों पर जान दयाल, सेड्रिक प्रकाश एवं तीस्ता जावेद उपस्थित थे।अदूरदर्शी अमरीकी सरकारअमरीका सरकार द्वारा नरेन्द्र मोदी को कूटनयिक वीसा न देने एवं उन्हें 1998 में प्रदत्त पर्यटक व व्यवसायी वीसा के रद्द करने के निर्णय का स्वागत करते हुए अखिल भारतीय ईसाई परिषद् ने दावा किया अमरीका सरकार को इस फैसले के लिए उसने ही प्रेरित किया। उसकी पहल पर ही अमरीकी संसद में यह मामला उठाया गया और विदेश मंत्री कोण्डालिसा राइस को पत्र लिखा गया व अमरीकी संसद में यह विषय उठाया गया। पांचजन्य को प्राप्त पुख्ता सूचनाओं के अनुसार फेडरेशन आफ इंडियन अमरीकन क्रिश्चियन आर्गेनाईजेशन्स आफ नार्थ अमरीका के माध्यम से एक भारतीय ईसाई जान प्रभुदास ने इस दिशा में सक्रियता दिखाई। 16 मार्च को इस संस्था ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करके मोदी की अमरीका यात्रा का विरोध किया और दो अमरीकी सांसदों जॉन कोनेर्स (ड्रेमोक्रेट-मिशिगन) व जोसेफ पिट्स (रिपब्लिकन पेन्सिलवेनिया) के द्वारा अमरीकी कांग्रेस में नरेन्द्र मोदी की निन्दा का प्रस्ताव रखवाया। किन्तु प्रश्न यह है कि भारत के साथ मित्रता की इतनी अधिक उत्सुकता दिखाने वाली अमरीकी सरकार कुछ भारतीय ईसाइयों से प्रभावित क्यों हो गई? क्या इसका कारण यह है कि जार्ज बुश चुनाव में अपनी सफलता का पूरा श्रेय मतान्तरणवादी चर्च संगठनों को देते हैं और उनकी सरकार भी हिन्दुओं के मतान्तरण की किसी विशाल योजना में इन चर्च संगठनों के पीछे खड़ी है? एक साल पहले फरवरी, 2004 में हमने अमरीकी सरकार समर्थित इस योजना की रूपरेखा पाञ्चजन्य में प्रस्तुत की थी।नरेन्द्र मोदी वीसा प्रकरण ने भारतीय राष्ट्रवादियों को यथार्थ के अनेक चेहरों का एक साथ साक्षात्कार कराया है। एक ओर वे चेहरे बेनकाब हुए हैं जो राष्ट्रवाद के प्रति गहरी घृणा से भरकर विश्व में भारत की छवि को खराब कर रहे हैं और परदे के पीछे षडंत्र करके हमारे राष्ट्रीय हितों को क्षति पहुंचा रहे हैं। दूसरी ओर भारतीय चर्च की जिहादियों के साथ गठबंधन और हिन्दू-द्रोह की नीति बेनकाब हुई है। तीसरे, अमरीकी सरकार की अदूरदर्शी, स्वार्थी और अपरिपक्व निर्णय पद्धति का पता चला है किन्तु इसके साथ ही भारत सरकार के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय ने अमरीकी सरकार की नीति का विरोध करके राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं संप्रभुता को पुष्ट किया है। लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अमरीका के निर्णय की निन्दा करके अपूर्व राष्ट्रीय एकता का परिचय दिया है। भारतीय राष्ट्रवाद इस समय जिन चतुर्दिक खतरों से घिरा हुआ है उनसे राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं एकता की दृढ़ भावना ही हमें बचा सकती है।(23-3-05)NEWS
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