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-बलवीर सिंह “करुण”
बरसों बरस खपाये
जग के दाग गिनाने में
जाने कब अपनी चादर पर
नजर फिराओगे।
आधी उम्र गुजारी तम का
साथ निभाने में
जाने कब उठकर सूरज से
आंख मिलाओगे।।
सूरज के सोने पर दीपक
सीना तान तना
और भोर तक घर-आंगन का
पहरेदार बना
गाल बजाने में नाहक
आनन्द खोजते हो
जाने कब गन्तव्य समझ, कुछ
कदम बढ़ाओगे।
टूट रहे तटबन्ध, नदी
मर्यादा लांघ गई
नाग युद्ध में रत लहरों पर
व्यर्थ लगाम रही
कुंठित है उत्साह हृदय को
किन्तु अकुंठ करो
क्षुद्र किरण भी दिखे, समर्थन
तुम तत्काल करो
तट पर बैठे रहने से
मोती न कभी मिलते
यह छोटी-सी बात ध्यान में
किस दिन लाओगे?
सिर्फ व्यवस्था को गाली
देने से क्या होगा
लफ्फाजों के सहगामी
होने से क्या होगा
इतने बड़े देश में सब कुछ
तो बेकार नहीं
एक अरब की आबादी में
सब मक्कार नहीं
निर्माणों के रथ के पथ को
कुछ तो सुगम करो
मुझको है विश्वास कि यह
कर्तव्य निभाओगे।
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