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के.जी.बी. का पैसाउजागर हुई "कांग्रेस – कम्युनिस्ट"दोस्ती की असलियत- कोलकाता से विशेष संवाददाताक्रिस्

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Feb 10, 2005, 12:00 am IST
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दिंनाक: 10 Feb 2005 00:00:00

के.जी.बी. का पैसाउजागर हुई “कांग्रेस – कम्युनिस्ट”दोस्ती की असलियत- कोलकाता से विशेष संवाददाताक्रिस्टोफर एंड्रयूसत्तर के दशक में कोलकाता की दीवारें कांग्रेस और कम्युनिस्ट एकता के नारों से पुती रहती थीं। ऐसा ही एक नारा था, ” दिल्ली थेके इलो गाय, संगे बाछुर सी.पी.आई.” अर्थात दिल्ली से गाय आई है, साथ में सी.पी.आई. रूसी बछड़ा भी है।उस समय श्रीपाद डांगे के नेतृत्व में भाकपा पूरी तरह इन्दिरा गांधी के समर्थन में थी और आपातकाल के समय भी यह समर्थन जारी रहा। साठ के दशक के अन्त में कम्युनिस्ट ही थे जिन्होंने कांग्रेस के विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मुद्दे पर खुलकर इन्दिरा गांधी का साथ दिया। भाकपा का कांग्रेस के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बंध ही सन् 1980 तक वाममोर्चा गठबंधन में भाकपा का प्रवेश न होने का एक प्रमुख कारण था और जब भाकपा ने आपातकाल में कांग्रेस को समर्थन देने के निर्णय पर माफी मांगी तब कहीं जाकर उसका वाममोर्चे में प्रवेश हो पाया।अब यह कोई छुपी बात नहीं है कि आपातकाल में कांग्रेस-भाकपा की दोस्ती के पीछे तत्कालीन सोवियत रूस की भूमिका ही प्रमुख थी। एक तरफ जहां भाकपा मास्को से प्रेरणा लेती थी वहीं बीजिंग की पकड़ माकपा पर थी। माकपा का सम्पूर्ण वैचारिक अधिष्ठान चीन पर आश्रित था। लेकिन भाकपा और कांग्रेस ने हमेशा अपने सम्बंधों के पीछे और आर्थिक स्रोतों के सन्दर्भ में के.जी.बी. की भूमिका को नकारा। अब जबकि के.जी.बी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रहस्योद्घाटन कर दिया है कि के.जी.बी. किस प्रकार से भारत में अधिकारियों, अखबारों, भाकपा और कांग्रेस पार्टी को धन-साधन मुहैया कराती थी, तो सब बातें उजागर हो गईं हैं।भाकपा के महासचिव ए.बी. वर्धन के भी नकारे जाने के बावजूद कि उनकी पार्टी ने कभी कोई सहायता के.जी.बी. या सोवियत रूस से नहीं ली, भाकपा का एक-एक कार्यकर्ता जानता है कि सत्तर के दशक में भाकपा मास्को पर अपनी वैचारिक व आर्थिक आवश्यकताओं के लिए किस कदर निर्भर थी। वास्तव में, भारतीय कम्युनिस्ट, चाहे वे माकपा के हों या भाकपा के, अभी हाल तक अपने वैचारिक और नीतिगत मामलों में मास्को व बीजिंग से ही राय लिया करते थे। यही कारण है कि दोनों ने सदैव हिन्दी प्रदेशों में माक्र्स और लेनिन को आदर्श के रूप में रखा, जाति की जगह वर्गवाद को बढ़ावा दिया, परिणामत: उनके पैर कभी इन प्रदेशों में जम नहीं पाए। वर्तमान में केन्द्र में वाममोर्चा और कांग्रेस गठजोड़ सन् साठ व सत्तर के दशक के सम्बंधों का ही विस्तार है। के.जी.बी. के पूर्व अधिकारी द्वारा किए गए इस रहस्योद्घाटन ने वस्तुत: प. बंगाल में कांग्रेस और वाममोर्चा को गहरे सदमे में डाल दिया है। जनता भी दोनों के द्वारा दिए जा रहे वक्तव्यों की असलियत को समझ चुकी है। कांग्रेस को इस पूरे प्रकरण में ज्यादा खामियाजा भुगतने की सम्भावना है क्योंकि उसकी कम्युनिस्ट विरोधी छवि पहले ही ध्वस्त हो चुकी है और तिस पर यह नया आरोप कम्युनिस्टों से उसकी पुरानी मिलीभगत को और प्रमाणित ही कर रहा है। ताजा घटनाक्रम से तृणमूल कांग्रेस की नेत्री ममता बनर्जी की तो मानो बात सच साबित हो गई है। वैसे भी वह राज्य में कांग्रेस को वाममोर्चा की “बी” टीम बताती आ रही हैं। जहां तक राज्य में भाजपा का सवाल है, उसने अपने केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा उठाए गए मुद्दे को दुहराना प्रारम्भ कर दिया है कि “कांग्रेस के हाथों में देश का भविष्य सुरक्षित नहीं है।” लन्दन में प्रकाशित इस सनसनीखेज दस्तावेजी सबूत ने एक बार फिर “कांग्रेस-कम्युनिस्ट” दोस्ती की कलई खोलकर रख दी है।NEWS

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