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भारतीय संविधान में राम और कृष्ण?दीनानाथ मिश्रकम मिलते हैं मगर अभी भी मिलते हैं, जिन्हें हस्ताक्षर करने को कहिए तो अपना अंगूठा बढ़ा देते हैं। अंगूठे के निशान हर व्यक्ति के अलग-अलग होते हैं। किन्हीं भी दो व्यक्ति के अंगूठे के निशान समान नहीं होते। इसलिए वह उस व्यक्ति विशेष की पहचान भी होते हैं। अंगूठे के निशान से अपराधियों की खोज भी आसान हो जाती है। पक्की पहचान होती हैं न, इसलिए। नाम और हस्ताक्षर भी पहचान ही होते हैं। नाम भी हर आदमी का अलग होता है। लेकिन कई बार एक ही नाम के कुछ लोग मिल जाते हैं। हस्ताक्षर में बड़ी ताकत होती है। बैंक में हस्ताक्षर के प्रामाणिक होने के कारण अरबों-खरबों रुपए बैंक से निकाले जाते हैं। बैंक के लोग हस्ताक्षर विशेषज्ञ होते हैं। जाली हस्ताक्षरों से रकम निकालने वाले इसीलिए पकड़े जाते हैं। मगर कुछ ऐसे कलाकार होते हैं जो हस्ताक्षरों की हू-ब-हू नकल कर लेते हैं। ऐसी नकल कि उनके पास वह हस्ताक्षर जांच के लिए लाया जाए तो व्यक्ति संशय में पड़ जाता है कि हो न हो यह हस्ताक्षर मेरा ही है।अपने यहां जो लोग इतनी अंग्रेजी जान लेते हैं कि अंग्रेजी में हस्ताक्षर कर सकें, वह आजीवन अंग्रेजी में ही हस्ताक्षर करते हैं। भले ही हस्ताक्षर के सिवाय अंग्रेजी में कुछ भी न लिख सकते हों। जो लोग अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं वे इण्डिया के हो जाते हैं। उन्हें भारतीय होने का गुमान नहीं होता। असल में वे हिन्दी या अपनी मातृभाषा को हीन और अंग्रेजी को श्रेष्ठ मानते हैं। अंग्रेजी में हस्ताक्षर करने वाले लोगों से आप पूछ लीजिए, वे भारत की उम्र 55 साल बताएंगे। मैं आम लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। बड़े-बड़े अखबारों ने कुछ वर्ष पहले राष्ट्र की 50वीं वर्षगांठ मनाई थी। पिछले चालीस-पचास वर्षों से जो इतिहास पढ़ाया गया, उसमें प्रभाव यह छोड़ने की कोशिश हुई कि भारत का इतिहास तो मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले से प्रारम्भ हुआ है, उसके पहले तो अंधा युग था। जहां दिखता ही नहीं कि इतिहास कहां हैं। जैसा इतिहास 1930 और 40 के दशक में पढ़ाया जाता था अब तो वैसा भी नहीं पढ़ाया जाता। इस राष्ट्र-राज्य को संविधान ने बनाया है। आप पूछ लीजिए संविधानविदों से कि राम और कृष्ण, बुद्ध और महावीर, शिवाजी और गुरुगोविंद सिंह जैसे राष्ट्र पुरुषों का संविधान में कहीं उल्लेख है? संविधानवेत्ता बताएगा, बिलकुल नहीं, हरगिज नहीं। हमारा संविधान और राष्ट्र तो सेकुलर है। धर्म और राजनीति को मिलाने की कोई गुंजाइश नहीं है। मिलाना खतरनाक है। ज्यादा तर संविधानवेत्ता यही कहेंगे, और अगर आप उनसे ये कहें कि संविधान में इन सबका उल्लेख है तो ऐसे विद्वान आपको पागल या मूर्ख समझेंगे।आप मानें या न मानें, संविधान निर्माताओं ने सनातन भारतीय राष्ट्र को परिभाषित किया है। संविधान सभा ने संविधान का जो अंतिम मसौदा पास किया, उसे कलात्मक ढंग से लिखकर सभा के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर हुए। संविधान के मूल पाठों के बीच-बीच में कुल मिलाकर 22 रेखाचित्र प्रकाशित किए गए हैं। उसमें पहला चित्र है, मोहन जोदड़ो की एक मुहर का। हमारे इतिहास की सम्पूर्ण काल गणना को इसमें विभाजित किया गया है। फिर वैदिक युग, फिर महाकाव्य काल, महाजनपद और नन्दकाल, मौर्यकाल, गुप्तकाल, मध्ययुग, मुस्लिमकाल, ब्रिटिशकाल, स्वतंत्रता संग्राम काल और स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी आंदोलन काल। संविधान में सुगुंफित यह काल-विभाजन सनातन भारत के इतिहास का क्रमबद्ध ब्यौरा है। इस संविधान में कहीं आपको वैदिक काल के आश्रम और गुरुकुल के रेखाचित्र मिलेंगे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की लंका पर विजय और सीता की वापसी का दृश्य मिलेगा। कहीं कृष्ण गीता का उपदेश देते नजर आएंगे। कहीं भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के इतिहास के पन्ने दिख जाएंगे। कहीं नटराज की मूर्ति, कहीं उड़ीसा की कलाकृति, कहीं अशोक का धर्मचक्र वगैरह के दर्शन होंगे।मुस्लिम काल का प्रतिनिधित्व बड़ा उद्देश्यपरक है। इस काल के बीच में तीन महापुरुषों के रेखाचित्र हैं, अकबर, शिवाजी और गुरुगोविन्द सिंह। निश्चय ही इसके पीछे एक दृष्टि रही है। अकबर सहिष्णु था। इस्लामीक कट्टरतावाद का कायल नहीं था। हिदू विचार के बहुत करीब था। शिवाजी और गुरुगोविन्द सिंह इस्लामीक कट्टरतावाद से हिन्दू संघर्ष के सातत्य प्रतीक थे। ब्रिटिशकाल का प्रतिनिधित्व किया उनसे टकराने वाले टीपू सुल्तान, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के रेखाचित्रों ने। स्वतंत्रता संग्राम का प्रतिनिधित्व गांधी के रेखाचित्र से किया गया और क्रांतिकारी आंदोलन का प्रतिनिधित्व सुभाषचन्द्र बोस के चित्र से। और यह सब संविधान के मूल पाठ के अंदर। संविधान निर्माताओं ने भारत की सनातनता का रेखांकन- उद्घोष संविधान में ही कर दिया है। संविधान की जो प्रति बाजार और पुस्तकालयों में मिलती है, उसमें संविधान का केवल पाठ ही प्रकाशित करने का चलन है। इसमें संविधान में दर्ज दिल नहीं धड़कता। हिन्दू भारत की आत्मा के जो दर्शन संविधान की मूल प्रति में होता है, वह इसमें से गायब पाया जाता है।NEWS
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