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विकास भारती और जनजातीय विकासअशोक भगतझारखण्ड की राजधानी रांची से 123 किमी. दूर बिशुनपुर नामक एक स्थान है। प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न यह क्षेत्र गुमला जिले का एक भाग है और जनजाति बहुल है। इस क्षेत्र के पाटों (पहाड़ों) पर रहने वाली असुर जनजाति वर्षों से लोहा पिघलाने का काम करती है। लेकिन जंगल के बदलते कानून के साथ उनका कारोबार भी खत्म हो रहा है। इस कारण उन लोगों के सामने बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो रही है। इसी तरह अन्य जनजातियां भी रोजगार के अभाव में बड़ी विकट स्थिति में हैं। जनजातियों की समस्याएं दूर हों तथा वे लोग स्वावलम्बी और साक्षर हो सकें, इसके लिए “विकास भारती” नामक एक स्वयंसेवी संस्था उनके बीच काम करती है। लोगों को रोजगार दिलाने के लिए तालाबों, कुंओं आदि की खुदाई चलती रहती है। बाद में ये ग्रामीण ही इनसे अपने खेतों को सिंचते हैं। इन योजनाओं से जनजातियों को दोहरा लाभ होता है। आर्थिक स्वावलम्बन के लिए इन जनजातियों को कृषि यंत्र के निर्माण का प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे सैकड़ों लोग गांव में ही उपलब्ध संसाधनों से कृषि यंत्र बनाते हैं और उन्हें बेचते हैं। इससे इन जनजातीय परिवारों में खुशहाली आई है। इनको साक्षर बनाने के लिए 400 साक्षरता केन्द्र और बच्चों के लिए 14 विद्यालय संस्था की ओर से खोले गए हैं। इन केन्द्रों से अब तक आस-पास के हजारों लोग साक्षर हो चुके हैं।”विकास भारती” के अध्यक्ष, रा.स्व.संघ के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री अशोक भगत हैं। इनके नेतृत्व में रचनात्मक एवं सृजनात्मक उत्कृष्ट कार्य के लिए विकास भारती को इन्दिरा प्रियदर्शनी वृक्षमित्र पुरस्कार, विवेकानन्द सेवा पुरस्कार एवं यशवंतराव केलकर पुरस्कार जैसे सम्मान भी मिल चुके हैं। प्रतिनिधि5
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