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मुस्लिम वोटों के लिए हिन्दुओं से सेकुलर तालिबानी प्रतिशोधजवानों के हाथों से छिनी राखी-प्रतिनिधिवाघा सीमा पर सैनिकों को राखी बांधती हुईं पूर्व भाजपा विधायक श्रीमती लक्ष्मीकान्ता चावला (फाइल चित्र)देश के रक्षक कहे जाने वाले भारतीय सेना के जवान और अधिकारी इस बार राखी बंधवाने में हिचकिचाते दिखे। कारण? सरकारी आदेश कि “सेना की छवि सेकुलर बनाने के लिए धार्मिक प्रतीक चिन्ह न पहने जाएं” की कहीं तौहीन न हो जाए, कहीं नौकरी पर आंच न आ जाए। 2 सितम्बर के टाइम्स आफ इण्डिया के अंतरताना संस्करण की रपट के अनुसार कड़ी वर्दी संहिता और सेकुलर छवि बनाए रखने के सरकारी फरमान ने राखी का आनंद समाप्त कर दिया। राखी के धागों के रंग सेना की हरी वर्दी के साथ मेल खाते नहीं दिखे। एक मेजर स्तर के अधिकारी ने तब तक राखी नहीं बंधवाई जब तक कि उसने अपनी वर्दी बदलकर साधारण कपड़े नहीं पहन लिए। उसका कहना था, सेना मुख्यालय से प्राप्त निर्देश में कहा गया था कि कोई भी धार्मिक सूत्र न पहना जाए।सेना की ओर से कुछ समय पहले जारी हुए आदेश में सेना की सेकुलर छवि को बनाए रखने के लिए जवानों/अधिकारियों को किसी भी तरह के धार्मिक प्रतीक चिन्ह, कंगन, नग की अंगूठी, तिलक आदि धारण करने की मनाही की गई है। इस बार राखी आई तो सैनिक कुछ चौकन्ने से दिखे, हालांकि कलाई पर राखी बांधे जाने से किसी पंथ विशेष की ओर संकेत नहीं होता। परन्तु कुछ का तर्क था कि सैनिक अनुशासन सबसे ऊपर होता है और उसका हर कीमत पर पालन जरूरी है।एक कर्नल का कहना था कि हालांकि इस रक्षा बंधन उत्सव को न मनाने के विशेष निर्देश तो नहीं थे, पर एक सैन्यकर्मी से सेकुलर परम्पराओं पर चलने की अपेक्षा होती ही है। उसका कहना था,” चाहे जो हो, अपनी कलाई पर राखी बांधकर अपने वरिष्ठ अधिकारी को सलामी देना कुछ अटपटा-सा लगता है।” कुछ इकाइयों में तो राखी पहनें या न पहनें, इसका फैसला सैनिकों पर ही छोड़ दिया गया था। परन्तु अगले दिन मंगलवार (31 अगस्त) की सुबह देखा गया कि जवानों के हाथों से राखियां गायब थीं। पश्चिमी कमांड अस्पताल के कमाण्डेंट मेजर जनरल एस.के.कौल ने बताया कि अस्पताल के कर्मचारियों को यह निर्देश दे दिया गया था कि त्योहार बीत जाने के बाद राखी न बांधे रखें।सेना के कुछ अधिकारियों ने राखियां इस वजह से बंधवाईं, क्योंकि उनकी राखियां ज्यादा चमकदार और रंग-बिरंगी नहीं थीं, बल्कि साधारण धागे थे जो संहिता के उल्लंघन के बिना त्योहार के उल्लास को बरकरार रखे हुए थे।केन्द्र सरकार के इसी तरह के फैसले से मेल खाता हुआ फैसला है रेल मंत्री लालू यादव का। बिहार में आसन्न विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट पाने की ललक उनमें इस हद तक व्यापी हुई है कि उन्होंने गोधरा काण्ड की दूसरी जांच के लिए एक नई समिति गठित की है। सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति यू.सी. बनर्जी की अध्यक्षता वाली यह एक सदस्यीय समिति जिन कारणों की जांच करेगी, वे भी श्री लालू यादव द्वारा तय किए जा चुके हैं और टेलीविजन चैनलों के सामने लालू यादव ने जिस तरह के बयान दिए हैं, उनसे साफ जाहिर है कि वे किस तरह का निष्कर्ष चाहते हैं।11
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