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उपचार नहीं है!-सीताराम गुप्तवही हिमालय उन्नत मस्तक,गंगा की जलधार वही है,नैया और खिवैया बदले,लक्ष्य दूर, मझधार वही है!पर्वत लांघे, किन्तु परस्परमतभेदों की हैं दीवारें,सत्ता-सुख के स्वप्न संजोएराज पथों पर खड़ीं कतारें!जाने कौन, भाग्य का किसकेकहां कौन-सा छींका टूटे?हर चौराहे गुटबन्दी काचलता कारोबार वही है!कई पुरानी सूरत वालेनए मुखौटे लगा चले हैं।हर सिद्धांत खूबसूरत परमंसूबे बदले -बदले हैं!अलग-अलग सबकी गतिविधियां,गतिविधि का आधार वही है!शोर दबा-सा है नारों मेंआंसू, दर्द, चीत्कारों का।नहीं किसी को भी अंदाजास्वार्थ-नाग की फुंकारों का!सर्प-दंश के विष का कोईदीख रहा उपचार नहीं है!25
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