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दिल्ली में सरसंघचालक श्री कुप्. सी. सुदर्शन ने कहा-

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Nov 7, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Nov 2004 00:00:00

दिल्ली में सरसंघचालक श्री कुप्. सी. सुदर्शन ने कहा-

संस्कृति के भगवा रंग पर

कम्युनिस्ट आघात का विरोध करें

समारोह में प्रार्थना करते हुए श्री कुप्. सी सुदर्शन एवं श्री विजय कपूर

(छाया: पाञ्चन्जय/हेमराज गुप्ता)

प्रशिक्षण वर्ग के समापन समारोह में उपस्थित स्वयंसेवक

-प्रतिनिधि

वामपंथी दल इस सरकार के माध्यम से भारतीय अस्मिता और राष्ट्रीय स्वाभिमान को नष्ट करने में जुटे हैं और वे देश में पश्चिम की जिस अपसंस्कृति का प्रसार करना चाहते हैं, उससे अपने देश को बचाने की आवश्यकता है। यह चेतावनी नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीस दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग के समापन अवसर पर सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन दी।

श्री सुदर्शन ने कहा कि देश के समग्र विकास के लिए अपने स्व की पहचान बहुत जरूरी है। इसके बिना पराक्रम नहीं जागता और देश के विकास का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। उन्होंने कहा कि वामपंथियों द्वारा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) की पाठ्यपुस्तकों को बदलने का घृणित प्रयास वास्तव में इस देश के स्वाभिमान को जगाने वाली बातों को समाप्त करने और राष्ट्र की संस्कृति को बदनाम करने का कुत्सित प्रयास है।

श्री सुदर्शन ने कहा कि पिछली सरकार के कार्यकाल में एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा लगभग चार वर्षों के शोध के बाद जो पुस्तकें लिखी गई थीं, वामपंथी उनको बदलने की मुहिम में जुटे हैं। चूंकि वर्तमान सरकार वामपंथियों के सहयोग पर टिकी है, इसलिए उसने इन पुस्तकों को बदलने की उनकी मुहिम स्वीकार की है। कहा जा रहा है कि पिछली सरकार ने पाठ्यपुस्तकों का भगवाकरण कर दिया था, जिसे अब समाप्त किया जाना है। श्री सुदर्शन ने कहा कि सच तो यह है कि भगवा रंग देश की संस्कृति, त्याग, बलिदान और प्रगति का प्रतीक है। वामपंथी इस देश को लाल रंग में रंग देना चाहते हैं। उन्होंने प्रश्न किया कि वामपंथियों की विचारधारा और कार्यप्रणाली यदि सही है तो पिछले 27 वर्षों में पश्चिम बंगाल भुखमरी के कगार पर क्यों पहुंच गया?

श्री सुदर्शन ने आरोप लगाया कि वामपंथी दल हिंसा और तोड़-फोड़ में विश्वास करते हैं। वे जिस-जिस देश में सत्तारूढ़ रहे, वहां के राजनीतिक जीवन में उन्होंने घृणा पैदा की और अपनी इसी मनोवृत्ति के कारण वे पाठ्यपुस्तकों को भी बदलना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार द्वारा पढ़ाई जा रही पाठ्यपुस्तकों में विदेशी आक्रमणकारियों के इतिहास को महिमामंडित करके पढ़ाया जा रहा है और दक्षिण भारत के विजयनगर व चोल जैसे गौरवशाली साम्राज्यों की उपेक्षा की गई है। उन्होंने प्रश्न किया कि भारत पर विदेशी शासकों के शासन के बारे में पढ़ाकर हम अपने बच्चों में कौन-सा गौरव जगा पाएंगे? उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी भगवाकरण के आरोप को निराधार बताया था, परन्तु इन्हें सर्वोच्च न्यायालय से भी कोई मतलब नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जब तक राष्ट्रीय गौरव नहीं जागेगा तब तक युवा पीढ़ी को न तो वर्तमान की चिंता होगी और न ही भविष्य की।

श्री सुदर्शन ने कहा कि भारतीय समाज को अपनी मूल जड़ों से काटने का जो काम 1835 में मैकाले ने किया था, वही काम अब वामपंथी कर रहे हैं। जिसका दुष्परिणाम है कि आज का युवक पश्चिम की संस्कृति को श्रेष्ठ समझता है और अपनी संस्कृति को हेय। उन्होंने कहा कि भारतीयों में हर प्रकार का सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्य करने की क्षमता है, आवश्यकता इस बात की है कि उनका स्वाभिमान जगाया जाए।

इस अवसर पर दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल श्री विजय कपूर ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में भारत की सांस्कृतिक परम्परा और दुनिया पर उसकी छाप का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार से दबाव डालकर परिवर्तन करने की परम्परा भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं रही। जीवन का कोई भी पहलू ऐसा नहीं है जो भारत की सांस्कृतिक परम्परा में विद्यमान न हो, यहां सभी वर्गों व समाजों को साथ लेकर चलने की सदियों पुरानी परम्परा रही है।

इस अवसर पर क्षेत्र संघचालक श्री बजरंग लाल गुप्त व प्रांत संघचालक श्री सत्यनारायण बंसल भी मंच पर उपस्थित थे। 7 जून से 27 जून तक चले इस बीस दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग में प्रथम वर्ष में 267 व द्वितीय वर्ष में 93 प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया। इस अवसर पर वर्ग कार्यवाह श्री मुकेश कुमार ने बताया कि देशभर में आयोजित प्रथम वर्ष के 45, द्वितीय वर्ष के 27 और तृतीय वर्ष के 1 प्रशिक्षण वर्ग में कुल मिलाकर 18,222 प्रशिक्षार्थियों ने भाग लिया।

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