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जम्मू-कश्मीर सरकार ने फिर ली धारा 370 की आड़, केन्द्रीय

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Nov 7, 2004, 12:00 am IST
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दिंनाक: 07 Nov 2004 00:00:00

जम्मू-कश्मीर सरकार ने फिर ली धारा 370 की आड़, केन्द्रीय कानून मानने से मना किया

न मंत्री कम करेंगे, न खर्च घटेगा

-विशेष प्रतिनिधि

देश के सभी राज्य जहां संविधान में हुए संशोधनों का पालन कर रहे हैं, वहीं जम्मू-कश्मीर सरकार अनुच्छेद 370 के अंतर्गत मिले विशेष दर्जे की दुहाई देते हुए संविधान को नजरअंदाज कर रही है। संविधान संशोधन के बाद सभी राज्यों को निर्देश दिए गए थे कि वे अपने मंत्रिमण्डलों का आकार सीमित करें। सभी राज्यों ने इसके अनुसार अपने मंत्रिमण्डलों का आकार सीमित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी। लेकिन जम्मू-कश्मीर की कांग्रेस-पीडीपी गठबंधन सरकार ने अपने मंत्रिमण्डल का आकार सीमित करने से साफ इनकार कर दिया।

जम्मू-कश्मीर विधानमंडल में सदस्यों की कुल संख्या 123 है। इनमें 87 विधायक हैं, 36 विधान परिषद् के सदस्य। दो सदस्य मनोनीत हैं। चूंकि यहां विधानसभा के दो सदन हैं, इसलिए संविधान के अनुसार जम्मू-कश्मीर में अधिक से अधिक 13 मंत्रियों का मंत्रिमण्डल हो सकता है। लेकिन अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा मिलने के कारण संसद द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय मानना या न मानना जम्मू-कश्मीर सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है।

इस समय राज्य सरकार में 37 मंत्री हैं और दो दर्जन से अधिक विधायकों को मंत्रियों का दर्जा मिला हुआ है। गठबंधन सरकार ने उन्हें विभिन्न निगमों और सार्वजनिक उपक्रमों का अध्यक्ष बनाकर मंत्रियों को मिलने वाली सभी सुविधाएं उन्हें उपलब्ध करायी हैं। वैसे भी अन्य राज्यों के मुकाबले जम्मू-कश्मीर में एक मंत्री पर खर्चा कहीं अधिक होता है। इसका एक कारण तो यह है कि राज्य की दो राजधानियां हैं। सर्दियों में जम्मू और गर्मियों में श्रीनगर में मंत्रियों को पूरे साजो-सामान वाले बंगले उपलब्ध कराये जाते हैं। इससे अन्य राज्यों के मुकाबले खर्च दोगुना हो जाता है।

दूसरा कारण है सुरक्षा। सुरक्षा की दृष्टि से न केवल मंत्रियों के दोनों बंगलों पर सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाते हैं, बल्कि उनके पैतृक निवास स्थानों पर भी पूरा सुरक्षा तंत्र तैनात रहता है। यही नहीं उनके रिश्तेदारों को भी सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध करायी जाती है। हर मंत्री को “बुलेट प्रूफ” कार तो मिली ही हुई है, इसके अलावा अनेक के पास पांच से अधिक वाहन हैं। एक रपट के अनुसार मंत्रियों के लिए 225 वाहन हैं, जिनमें ईंधन और अन्य रखरखाव पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं।

राज्य अपने कुल खर्चों का 85 प्रतिशत केन्द्र सरकार से लेता है और कर आदि से अर्जित उसकी अपनी आय मुश्किल से 1,500 करोड़ रुपए है। जबकि राज्य कर्मचारियों को 3,300 करोड़ रुपए वेतन के रूप में भुगतान किए जाते हैं। विकास कार्यों और सुरक्षा प्रबंधों के लिए भी राज्य पूरी तरह केन्द्र सरकार पर निर्भर है। राज्य की वित्तीय हालत इतनी खराब है कि कर्मचारियों को कई महीनों से नियमित रूप से वेतन और अन्य भुगतान नहीं किए गए। हजारों दिहाड़ी मजदूरों और कर्मचारियों का भी कई महीनों से कोई भुगतान नहीं किया गया है। विपक्ष के एक नेता का कहना है कि यदि एक मंत्री को हटा दिया जाए तो मात्र उसके खर्चे बंद होने से बची राशि से ऐसे एक हजार लोगों को वेतन दिया जा सकता है, जो एक तरह से भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं।

राज्य के विपक्षी दलों का कहना है कि मंत्रियों की संख्या कम न करके राज्य सरकार संविधान की तो अवमानना कर ही रही है, एक खतरनाक खेल-खेल रही है। भाजपा नेताओं का कहना है कि राज्य को अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत विशेष दर्जा अस्थायी रूप से दिया गया था लेकिन 54 साल बीत जाने के बावजूद यह प्रावधान अभी तक लागू है। यह विशेष दर्जा नागरिकों के लिए कई समस्याएं भी खड़ी कर चुका है। इसी के कारण महिलाओं के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। हजारों शरणार्थियों को, जो देश विभाजन के बाद 55 साल से राज्य में रह रहे हैं, मताधिकार का अधिकार अभी तक नहीं मिला है। यहां कई केन्द्रीय श्रम कानून लागू नहीं होते और किसानों को वे सुविधाएं नहीं मिलतीं जो अन्य राज्यों के किसानों को उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर को भरत का अभिन्न अंग बनाये रखने के लिए सुरक्षा बलों के हजारों अधिकारियों और जवानों ने अपनी जानें दीं। लेकिन जिस जमीन की रखवाली के लिए वे जान दे रहे हैं, वहां एक इंच जमीन खरीदने का भी उन्हें अधिकार नहीं है। वे यहां रह नहीं सकते, उनके बच्चे यहां शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते।

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