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उत्तर-पूर्व

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Aug 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Aug 2004 00:00:00

स्वाध्याय परिवार का अनूठा प्रयोगयोगेश्वर-कृषि!!एक खेत बना ग्राम विकास का आधार-उर्वा अध्वर्युयोगेश्वर के भक्त, योगेश्वर की खेतीयोगेश्वर कृषि के लिए निर्धारित खेत में पूजन से श्रीगणेश”हमारी ठाकोर जाति में महिला घर की दहलीज कभी पार नहीं करती। वह सारा दिन घर के अंदर ही घूंघट ओढ़े कामकाज में बिताती है। इसी वजह से इस जाति की महिलाएं पढ़ी-लिखी भी नहीं हैं। किन्तु पूजनीय दादाजी की प्रेरणा से आज इस समाज की महिलाएं न केवल अपने गांव में बल्कि, आस-पास के गांवों में भी जाकर भक्तिफेरी करती हैं। रात उसी गांव में ठहरती हैं और गांव की महिलाओं के साथ मिलकर प्रभुनाम स्मरण करती हैं। आज हम संस्कृत के श्लोक भी एकदम शुद्ध उच्चारण के साथ बोल सकते हैं। यह सब पूजनीय दादाजी के आशीर्वाद एवं स्वाध्याय परिवार के कर्मयोगी भाई-बहनों की भावना का परिणाम है।” ये शब्द हैं अमदाबाद जिले के रींछोली नीमुवाडी गांव की रेवाबेन ठाकोर के। 12 जुलाई, 2004 को इस गांव में योगेश्वर कृषि के प्रयोग का भूमिपूजन समारोह सम्पन्न हुआ। उसी अवसर पर उन्होंने अपनी भावपूर्ण शैली में और पूरी तरह मर्यादा में रहकर घूंघट की ओट से यह बात कही थी…। हाथ में माइक लिए 800 लोगों की उपस्थिति में अपनी बात कहते समय रेवाबेन ने लंबा घूंघट किया हुआ था क्योंकि उनके सामने बैठे लोगों में उनके सम्बंधी बुजुर्ग भी थे। रेवाबेन ने उपस्थित जनसमुदाय के समक्ष त्रिकाल संध्या के श्लोकों का उच्चारण शुरू किया तो उनके साथ-साथ बाकी लोग भी श्लोकों का उच्चारण करने लगे। इस अवसर पर शहर से आमंत्रित अतिथिगण यह दृश्य देखकर दंग रह गए, क्योंकि जिन महिलाओं ने कभी अपने घर की दहलीज नहीं लांघी थी वे आज गांव के बुजुर्गों के सामने संस्कृत श्लोक शुद्ध स्वर में गा रही थीं। क्षत्रिय समाज के लोग जो आपसी झगड़ों एवं मान-मर्यादाओं के लिए विख्यात हैं, उनका आपस में मिल-बैठकर कीर्तन करना और एक ही खेत में हल-बैल लेकर कृतिशील बनना, यह वास्तव में बहुत बड़ी सामाजिक क्रांति है, जो स्वाध्याय प्रवृत्ति के नाम से श्री पांडुरंग शास्त्री आठवले ने भारत समेत अनेक देशों में प्रारंभ की है।अमदाबाद जिले की दसक्रोई तहसील का छोटा-सा गांव है रींछोली नीमुवाडी। वहां 80 घरों में 800 लोगों की आबादी है। शत-प्रतिशत ठाकोर समाज की इस बस्ती में किसी के पास न तो पक्का मकान है और न ही किसी के पास कोई दो पहिया वाहन। पूरा गांव सड़क मार्ग से बिल्कुल कटा हुआ है। वर्षा के मौसम में तो इस गांव का आस-पास के गांवों से भी संपर्क कट जाता है। आर्थिक रूप से कमजोर इन लोगों के ह्मदय की विशालता तब देखने को मिली जब इसी गांव के एक युवक ने बताया कि, “कोई रिश्तेदार के साथ भागीदारी करता है तो कोई अपने मित्र या अन्य सम्बंधी के साथ। परंतु मैंने तो अपना खेत योगेश्वर कृषि प्रयोग के लिए देकर सीधे ऊपर वाले (ईश्वर) के साथ भागीदारी की है। सीधा प्रभु के साथ सम्बंध जोड़ लिया है।” उनके रिश्तेदारों ने भी अपने-अपने गांव में बिना एक भी पैसा लिए अपना खेत योगेश्वर कृषि के लिए दिया है और खुशी-खुशी व्यवसाय अपनाया है। ऐसी खेती को योगेश्वर कृषि कहते हैं और ऐसे खेतों से होने वाली आय गांव के विकास में उपयोग होती है। गांव के एक अन्य युवक अश्विन ठाकोर ने बताया, “स्वाध्याय परिवार में जाने से पहले हम तम्बाकू-गुटका आदि व्यसनों में लिप्त थे। घण्टों तक पान की दुकानों पर गप्पें मारते रहते थे। पर स्वाध्याय परिवार से जुड़ने के बाद हमारी सारी गलत आदतें छूट गर्इं। गांव की युवा शक्ति पहले गलत रास्ते पर थी, अब वही शक्ति सकारात्मक कार्यों में लगती है और हमें उस पर बड़ा गर्व है।”समारोह में गांव के प्राय: सभी लोगों ने भाग लिया। गांव में निकाली गई शोभायात्रा का सौभाग्यवती महिलाओं एवं बालिकाओं ने सर पर जल से भरा कलश लेकर स्वागत किया। बच्चों के हाथों में “कृषि में क्रांति लानी है”, “दादाजी को तर्पण, कृषि अर्पण” जैसे वाक्य लिखे पोस्टर थे तो प्रत्येक किसान ने अपने हल-बैल को भगवान के खेत में उतारा था। प्रत्येक किसान दम्पत्ति ने भूमिपूजन कर योगेश्वर कृषि के लिए श्रमदान एवं भावनापूर्ण कृतिशीलता का संकल्प लिया।जिस गांव में 60 प्रतिशत परिवार नियमित स्वाध्याय करते हैं, उसमें एक खेत भगवान योगेश्वर के नाम रखा जाता है, जहां प्रत्येक किसान एक-एक दिन के लिए अपना श्रमदान देता है। अपने खेत में जाने से पहले वह भगवान के खेत का दर्शन करता है। वह मानता है कि “हर रोज भगवान हमारे साथ हमारे खेत में आते हैं तो एक दिन के लिए हम भी भगवान के खेत में जाएं और श्रमदान करें। भगवान (नारायण) के इस खेत से होने वाली उपज (लक्ष्मी) किसी एक व्यक्ति की नहीं होती, उस पर पूरे गांव का अधिकार रहता है। यह “नारायण” की “लक्ष्मी” है और उसका उचित उपयोग होना चाहिए, यह गांव वालों की इच्छा रहती है। साधारणत: इस आय से गांव का विकास तथा जरूरतमंद ग्रामवासी की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है।2बाढ़ लाई तबाही स्वयंसेवक लाए राहत-प्रतिनिधिबाढ़ में फंसी एक महिला अपने बच्चे के साथ सुरक्षित स्थान की ओर जाते हुएतिनसुकिया में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य सामग्री पहुंचाते हुए स्वयंसेवकउत्तर-पूर्वी राज्यों में मानसून के दौरान हर साल बाढ़ आती है और भारी तबाही होती है। हर साल राज्य और केन्द्र की ओर से उपचारात्मक कदम उठाए जाने के आश्वासन दिए जाते हैं। पर सब कोरे के कोरे।। अगर गंभीरता से सोचा गया होता तो कमजोर तटबंधों की मरम्मत हो जाती। इस वर्ष भी असम का अधिकांश भाग ब्राह्मपुत्र और अन्य नदियों में आई बाढ़ में डूब गया। किन्तु इस वर्ष की बाढ़ ने 1934 और 1988 की बाढ़ की विभिषिका को भी पीछे छोड़ दिया है। ब्राह्मपुत्र का जलस्तर खतरे के निशान से 2.60 मीटर ऊपर तक चला गया। इसके कारण राज्य के 27 में से 16 जिलों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक हो गई है। आपदा की इस घड़ी में प्रशासनिक लापरवाही और सरकारी ढुलमुल चाल के विपरीत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक दिन-रात राहत कार्यों में जुटे हुए हैं। इसी वजह से संघ ने 24-25 जुलाई को होने वाली वार्षिक प्रांतीय बैठक रद्द कर दी और सभी कार्यकर्ताओं से बचाव और राहत कार्यों में जुटने का आह्वान किया।राष्ट्र सेविका समिति की अपीलराष्ट्र सेविका समिति ने सभी नागरिकों से अपील की है कि वे असम तथा बिहार में आई भयंकर बाढ़ के कारण बेघर हुए लाखों लोगों की सहायता के लिए आगे आएं। राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सहकार्यवाहिका श्रीमती आशा शर्मा ने नई दिल्ली में जारी एक अपील में कहा है कि बाढ़ के कारण वहां न केवल जनजीवन ही संकट में है वरन् पशुधन तथा फसलों की भी भारी क्षति हुई है। इस कठिन समय में बाढ़ पीड़ितों की सहायता करना हम सभी का कर्तव्य है। सेवाभावी जन राहत कार्य हेतु सहायता निधि चैक/ बैंक ड्राफ्ट या धनादेश द्वारा निम्नलिखित पतों पर भेज सकते हैं1. आधार निधिदेवी अहिल्या मन्दिरधनतोली, नागपुरमहाराष्ट्र2. आधार निधिराष्ट्र सेविका समिति कार्यालयमहावीर मन्दिर, सत्यम सिनेमा मोड़,पटेल नगर, नई दिल्लीसहयोग दें चिकित्सकउत्तर-पूर्व के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नेशनल मेडिकल आर्गेनाइजेशन की ओर से चिकित्सकीय राहत पहुंचाने का काम बड़े पैमाने पर जारी है। चूंकि समस्या का व्याप बहुत बड़ा है अत: चिकित्सकों ओर चिकित्सकीय सहायकों की कमी महसूस की जा रही है। जो चिकित्सक और चिकित्सकीय सहायक असम व अन्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में बाढ़ प्रभावित लोगों की सहायता के इच्छुक हैं, वे निम्न पते पर संपर्क कर सकते हैं-डा. दिलीप सरकारउपाध्यक्ष – नेशनल मेडिकल आर्गेनाइजेशनदूरभाष: 0361-2544889 (राहत केन्द्र),0361-2471954 (नि.)बाढ़ की विभीषिका की पूरी जानकारी प्राप्त करने, बाढ़ पीड़ितों को तात्कालिक सहायता पहुंचाने और बाढ़ के बाद होने वाली बीमारियों से निपटने की योजना बनाने के लिए 25 जुलाई को गुवाहाटी में विभाग प्रचारकों की बैठक हुई थी। उनके द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार डिब्राूगढ़, तिनसुकिया, लखीमपुर, धेमाजी, जोरहाट के माजुली, दरंग, शोणितपुर, कामरूप, नलबाड़ी, बरपेटा, ग्वालपाड़ा, धुबरी, नगांव, मोरीगांव, सिलचर और करीमगंज जिलों की स्थिति चिंताजनक है। बाढ़ के कारण निचले और ऊपरी असम के बीच रेल और सड़क यातायात ठप्प हो गया है। मेघालय में भूस्खलन के कारण गुवाहाटी-सिलचर मार्ग 12 दिनों से बंद है। इसके कारण मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा का भी सड़क संपर्क प्रभावित हुआ है। सिलचर शहर में कमर तक पानी भर गया। नगांव के कामपुर क्षेत्र में भी चारों ओर पानी ही पानी था।संघ के स्वयंसेवकों ने प्रशासन का इंतजार किए बिना दरंग, कामपुर और राज्य के अन्य स्थानों पर नावों का प्रबंध कर लोगों को जलमग्न क्षेत्रों से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। अरुणाचल की सीमा से सटे लखीमपुर और धेमाजी जिलों के अनेक मिशिंग गांव नदी के प्रवाह में बह गए। पानी के साथ आई मिट्टी और बालू से गांवों के तालाब भर गए। इससे अधिकांश घरों को भारी नुकसान पहुंचा है।प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी स्थिति का अध्ययन करने के लिए असम गए थे।सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा बाढ़ पीड़ितों को दी जा रही राहत के समय स्वयंसेवकों ने पाया कि सरकारी राहत केवल उन व्यक्तियों को मिल रही थी जिन्होंने सड़कों के किनारे आश्रय ले रखा है। इनमें से अधिकांश अवैध बंगलादेशी घुसपैठिए हैं। दूर-दराज के गांवों के प्रभावित लोगों के पास कोई नहीं पहुंचा था। स्वयंसेवकों ने भीतरी इलाकों तक जाकर राहत पहुंचाई। संघ के स्वयंसेवकों ने सभी स्थानों पर शिशु आहार, खाद्य सामग्री, मोमबत्ती, माचिस, कपड़ा, बर्तन आदि का संग्रह कर वितरण आरंभ कर दिया है। बाढ़ की विभीषिका को भयावह बनाने में नदियों के दोनों ओर बने तटबंधों ने प्रमुख भूमिका निभाई। करीब 50 साल पुराने तटबंधों की मरम्मत की ओर किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। इसके कारण, सरकारी सूचना के अनुसार, 87 स्थानों पर बांध टूट गए। टूटे हुए स्थानों से बाढ़ का पानी इतने वेग से गांवों में घुसा कि लोगों को अपने घरों व जानवरों की रक्षा करने का मौका ही नहीं मिल पाया।एक ओर तो संघ के आह्वान पर स्वयंसेवक राहत में जुटे हैं लेकिन दूसरी ओर सेकुलर राजनीति भी जारी है। हुआ यूं कि करीमगंज जिले के उपायुक्त ने स्वयंसेवकों द्वारा किए जा रहे राहत कार्यों के लिए उनकी प्रशंसा की। राहत कार्य संबंधी योजना पर बातचीत हेतु उन्होंने स्वयंसेवकों से सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी कार्यालय में आने को कहा। संघ के स्वयंसेवक जब उक्त कार्यालय में पहुंचे तो उन्हें वहां एक अन्य अधिकारी ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से निर्देश मिला है कि राहत कार्य में संघ के स्वयंसेवकों को न लगाया जाए। लेकिन ओछी राजनीति से परे संघ के स्वयंसेवक राहत कार्य में अपने संसाधनों के बल पर डटे हुए हैं।बाढ़ के बाद होने वाली बीमारियों से निपटने के लिए संघ ने गुजरात, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के संघ कार्यकर्ताओं से दवाइयां भेजने की अपील की है। राहत कार्य “सेवा भारती-पूर्वांचल”केशवधाम, के.बी. रोड, पल्टन बाजार, गुवाहाटी-781008 के तत्वावधान में चल रहा है। इस मानवीय कार्य में सहयोग देने के इच्छुक व्यक्ति उक्त पते पर सहायता भेज सकते हैं। (हिन्दुस्थान समाचार)3

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