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शिक्षा क्रांति के लिए “ई-क्लास” का सहाराडा.रवीन्द्र अग्रवालमध्य प्रदेश के गांवों के बच्चों के लिए पढ़ना अब दिवास्वप्न नहीं रहेगा। गांव में स्कूल हो या न हो, इसका पढ़ाई पर कोई असर नहीं होगा। शिक्षक कक्षा में आएं या न आएं, इसकी चिंता भी अब बच्चों को नहीं करनी होगी। मौसम खराब होने के कारण सड़कें टूटने और नदियों में बाढ़ आने का असर भी अब पढ़ाई-लिखाई पर नहीं पड़ेगा।शिक्षा क्षेत्र में यह क्रांति आएगी मध्य प्रदेश के भोज मुक्त विश्वविद्यालय की एक महत्वाकांक्षी योजना से। इस योजना के अन्तर्गत विश्वविद्यालय प्रदेश में “ई-क्लास” प्रारम्भ करेगा। टेलीविजन के माध्यम से प्रारम्भ होने वाली “ई-क्लास” में दूरदराज के क्षेत्रों में बच्चे टेलीविजन के पर्दे पर अपना पाठ पढ़ सकेंगे, अपनी शंकाओं का समाधान कर सकेंगे और परीक्षा भी दे सकेंगे। अर्थात् इन बच्चों को पढ़ने के लिए गांव से बाहर जाने की जरूरत नहीं है।भोज विश्वविद्यालय ने स्पेस रिसर्च सेन्टर (बंगलौर) के माध्यम से उपग्रह पर स्थान सुरक्षित कराया है। इस उपग्रह के माध्यम से दूरदराज के इलाकों में “ई-क्लास” संचालित की जाएगी। इनका संचालन विश्वविद्यालय के केन्द्र द्वारा किया जाएगा। इस केन्द्र से पाठ्य सामग्री का प्रेषण किया जाएगा, जो उपग्रह के माध्यम से दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित “ई-क्लासों” को भेजा जाएगा। इस शिक्षा की गुणवत्ता उच्चस्तरीय होगी और शिक्षा में समरूपता भी रहेगी।इस नई तकनीक से गांवों के ज्यादा से ज्यादा बच्चे लाभान्वित हों, इसके लिए यह आवश्यक है कि गांव-गांव तक “ई-क्लास” का विस्तार हो। “ई-क्लास” के लिए उपलब्ध कराए गए इलेक्ट्रानिक उपकरणों के रखरखाव पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होगी। कहीं ऐसा न हो कि दूरदराज के गांवों की “ई-क्लास” इसलिए नाकारा सिद्ध हो जाए कि इलेक्ट्रानिक उपकरण एक बार खराब हुआ तो किसी ने उसकी मरम्मत की सुध ही नहीं ली। अगर ऐसा हुआ तो पूरी शिक्षा व्यवस्था पर से ही लोगों का विश्वास उठ जाएगा। यह आशंका निराधार नहीं है। ग्रामीण पेयजल योजना के साथ ऐसा हो चुका है। गांवों में लगाए गए अधिकांश “हैंड पम्प” इसलिए बेकार हो गए क्योंकि इनकी मरम्मत करने की समुचित व्यवस्था नहीं थी।12
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