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संतों ने राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर कहा-<p style=f

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May 12, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 May 2004 00:00:00

संतों ने राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर कहा-

यह तमिलनाडु सरकार की दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई है

अ.भा. अखाड़ा परिषद् एवं अ.भा. संत समिति द्वारा पूज्य शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी की गिरफ्तारी के विरोध में गत 22 नवम्बर को राष्ट्रपति को सौंपे गए ज्ञापन के मुख्य अंश-

“पिछले दिनों कांची कामकोटि पीठ के परमपूज्य शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी की गिरफ्तारी व उसके उपरान्त घटित हुई घटनाओं से कानून के प्रति हमारा विश्वास चूर-चूर हो गया है। हमारा विश्वास है कि स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी पूर्णतया निर्दोष हैं।

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता ने स्वामी जयेन्द्र सरस्वती को प्रताड़ित किया है और शंकराचार्य मठ को गम्भीर समस्याओं व शर्मनाक स्थिति में डाल दिया है। उनका कदम पूर्णतया पूर्वाग्रह से ग्रस्त है।

उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपनी शक्ति और पद का दुरुपयोग किया है। स्वामी जी को जिस प्रकार गिरफ्तार किया गया, वह सुश्री जयललिता की व्यक्तिगत दुर्भावना को प्रदर्शित करता है। यह तमिलनाडु में कानून व्यवस्था और लोकतंत्र के पूर्णतया ध्वस्त होने को दर्शाता है।

अदालत की कार्यवाही में भी अनावश्यक तौर पर विलम्ब किया गया। वास्तविक तौर पर कोई भी ऐसी सामग्री नहीं है जो उन्हें प्रत्यक्ष रूप से अपराध से जोड़ती हो। हमें तमिलनाडु पुलिस पर कोई विश्वास नहीं है जो कि मुख्यमंत्री के निर्देशों के अनुसार कार्य कर रही है।

परम पूज्य शंकराचार्य जी को उच्च स्तर की सरकारी सुरक्षा प्रदान की गई है। पू. शंकराचार्य जी सुरक्षा के कारण देश से बाहर नहीं जा सकते थे। किसी भी सामान्य नागरिक के लिए यह विश्वास करना अत्यन्त कठिन है कि तमिलनाडु पुलिस आन्ध्र प्रदेश सरकार की सहमति और सहयोग के बिना महबूब नगर से पू. स्वामी जी को गिरफ्तार कर सकती थी। ऐसे विशिष्ट व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले मुख्यमंत्री की अनुमति आवश्यक होती है। ऐसा लगता है कि आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार से अनुमति प्राप्त किए बिना ही गिरफ्तारी का जोखिम उठा लिया।

इस विषय में निष्पक्ष और भेद-भाव रहित न्याय के लिए इस जांच को केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) को स्थानांतरित कर दिया जाए।

अ.भा. अखाड़ा परिषद् की अनुमति के बिना किसी भी धर्माचार्य के विरुद्ध कोई कानूनी कारवाई न की जा सके ताकि भविष्य में किसी भी धर्माचार्य को राजनैतिक विद्वेष का शिकार न बनना पड़े।

संविधान के अनुच्छेद 26 के अन्तर्गत प्राप्त मंदिरों व मठों के स्वायत्त प्रबंधन की गारंटी सुनिश्चित की जाए।

संत-महात्माओं के मठ-आश्रमों एवं मंदिरों पर कर लगाने सम्बंधी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा सुझाए गए प्रस्ताव से देश के मठ और मंदिरों के सरकारीकरण तथा उनकी सम्पत्ति पर सरकारी कुदृष्टि की आशंका व्याप्त हो गई है। इस आशंका का पूर्णतया निवारण किया जाए।

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