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15 अगस्त, 1994- आजादी के सैंतालीस साल बाद उन देशभक्तों को हुबली में सिर्फ इसलिए प्राण न्याोछावर करने पड़े क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता दिवस को रानी चेनम्मा मैदान में तिरंगा फहराया था। उसे पूरे घटनाक्रम को पाञ्चजन्य के 28 अगस्त, 1994 के अंक में विस्तार से प्रकाशित किया गया था। दस साल बाद उस घटनाक्रम को जीवंत करती उस सामग्री को सम्पादित कर यहां पुन: प्रस्तुत किया गया है-मोइली सरकार ने दीतिरंगा फहराने परसजा-ए-मौत!-प्रमुख संवाददाताहुबली: 15 अगस्त; सुबह लगभग छ: बजकर 40 मिनट पर लगभग 8-9 नवयुवक तिरंगे को अपनी बगल में छिपाए दबे कदमों से कित्तूर मैदान की ओर बढ़ रहे थे। शहर के चप्पे-चप्पे पर राज्य पुलिस, केन्द्रीय आरक्षी पुलिस बल और रेपिड एक्शन पुलिस फोर्स के जवान तैनात थे। लेकिन सबको चकमा देते हुए अनंत कुमार, जयानंद और रमेश अपने कुछ साथियों के साथ मैदान के पास तक पहुंच ही गए। लेकिन तब तक पुलिस ने उनको देख लिया था। सभी युवकों ने तय किया कि एक साथ पुलिस के हाथों पकड़े जाने से तो अच्छा है कि सब अलग-अलग दिशाओं में पुलिस को उलझा दें। और इस योजना के अनुसार अनंत, जयानंद और रमेश तीन अलग-अलग दिशाओं में तिरंगा लिए मैदान की ओर दौड़ पड़े। शेष युवक भी अलग-अलग दिशाओं में दौड़े, वे आगे-आगे और पीछे-पीछे पुलिस। अन्तत: अनंत कुमार मैदान तक पहुंच ही गया और उछल कर एक हाथ से कंटीले तारों पर झूल गया। उसके एक हाथ में तिरंगा था जो उसने झटककर मैदान में फेंका। मैदान में तिरंगा फहराते ही अनंत कुमार वहीं तार पर लटके हुए राष्ट्रगान गाने लगा। तब तक पुलिस उसे घेर चुकी थी और उसने अनंत को अंधाधुध पीटना शुरू कर दिया। लेकिन वह युवक मुस्कुराते हुए राष्ट्रगान गाता रहा। उसे तो बस एक ही बात का संतोष था कि उसने मुख्यमंत्री मोइली की एक गर्वोक्ति को कि “हुबली के मैदान में तिरंगा नहीं फहराने दिया जाएगा।” को पैंरों तले रौंद दिया था।सरकार का झूठ1 हुबली का मैदान अंजुमन-ए-इस्लाम को लीज पर दिया गया है।2 मैदान विवादास्पद है।3 मैदान पर किसका मालिकाना हक है। यह विवाद का विषय है।अदालत का सच1 मैदान लीज पर नहीं, लाइसेंस पर दिया गया था।2 मैदान सार्वजनिक है और आम जनता जात्रा और अन्य उद्देश्यों के लिए उसका इस्तेमाल कर सकती है।3 मैदान के स्वामित्व पर कोई विवाद नहीं, वह नगर पालिका की भूमि है।हुबली के तथाकथित विवादास्पद मैदान को 1921 में अंजुमन-ए-इस्लाम को लाइसेंस पर दिया गया। 1961-62 में राज्य सरकार ने अंजुमन-ए-इस्लाम को वहां निर्माण कार्य की अनुमति दे दी। बी.एस.शेट्टार तथा कुछ अन्य व्यक्तियों ने राज्य सरकार के इस निर्णय के खिलाफ हुबली के मुंसिफ की अदालत में अपील की। 1972 में मुंसिफ की अदालत ने राज्य सरकार के इस निर्णय को अवैध करार दिया। अंजुमन-ए-इस्लाम ने इस निर्णय के खिलाफ हुबली के सिविल जज की अदालत में अपील की। 12 अक्तूबर” 82 को सिविल जज की अदालत ने अंजुमन की अपील खारिज कर दी। अंजुमन मामले को कर्नाटक उच्च न्यायालय में ले गई। उच्च न्यायालय ने भी मुंसिफ की अदालत के निर्णय को सही ठहराते हुए आदेश दिया कि 15 दिन के अन्दर मैदान में निर्मित दीवार को गिरा दिया जाए। अंजुमन ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय से स्थगनादेश ले लिया। फिलहाल यह मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।शहर में यह बात आग की तरह फैल गई कि कित्तूर चेनम्मा मैदान में ध्वाजारोहण हो गया है। लगभग 12 बजे हुबली के मैदान से दो किलोमीटर दूर देशपांडे नगर में भाजपा कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों की भीड़ जुट गई थी। सभी शांतिपूर्ण ढंग से विजयोत्सव मना रहे थे। यहां सांसद उमाश्री भारती लोगों को सम्बोधित करने वाली थीं लेकिन उन्हें इससे पूर्व ही गिरफ्तार कर लिया गया। कर्नाटक प्रांत के भाजपा युवा मोर्चे के अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े ने सूचना दी कि उमाश्री भारती को गिरफ्तार कर लिया गया है और ध्वजारोहण हो चुका है। अत: लोग तितर-बितर हो गए। लगभग 40-50 लोग वहां बचे थे। अचानक तड़-तड़ की आवाज के साथ चारों तरफ से गोलियां चलने लगीं। हताश-निराश और झुंझलाई पुलिस शायद अपना गुस्सा निकाल रही थी। पुलिस के इस हमले में 20 वर्षीय साईनाथ काशीनाथ ढोंगेडे, 25 वर्षीय श्रीनिवास कट्टी, 14 वर्षीय मंजुनाथ कराड, 26 वर्षीय महादेव ढोंगड़ी और 20 वर्षीय प्रसन्ना शहीद हो गए। इसके अलावा लगभग 86 अन्य लोग घायल हुए। पुलिस का यह जूनून यहीं खत्म नहीं हुआ, 19 अगस्त को प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के एक कांस्टेबल ने फिर गोली चलाई, जिससे एक महिला वहीं घटनास्थल पर ही मारी गई।कभी ऐसा ब्रिटिश हुकूमत में हुआ करता था, जब देश गुलाम था। वन्देमातरम् का उद्घोष करना अपराध था, तो तिरंगा फहराना देशद्रोह! जो लोग तिरंगा फहराने की चेष्टा करते थे, उन्हें लाठी और गोली खानी पड़ती थी। देश आजाद हुआ तबसे हर साल 15 अगस्त के दिन देशभर में राष्ट्रध्वज फहराने की परम्परा चली आ रही है। लेकिन स्वतन्त्रता की 47वीं वर्षगांठ हुबली (कर्नाटक) में जिस मनी उसने फिर एक बार ब्रिटिश हुकुमत की याद ताजा कर दी। “राजा” राव के एक सिपहसालार “जनरल” वीरम्पा मोइली ने तिरंगा फहराने की “हिमाकत” करने पर पांच लोगों को गोलियों से भून दिया।सम्भवत: यह आजाद हिन्दुस्थान का सबसे शर्मनाक घटनाक्रम है। इससे दु:खद और शर्मनाक भला क्या हो सकता है कि एक तरफ आजादी की वर्षगांठ पर तिरंगा फहराने का संकल्प लिए लोगों पर गोलीबारी हुई, दूसरी तरफ इस घटना के एक दिन पूर्व पूरे कश्मीर में पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। घाटी को चांद-सितारे वाले हरे झंडों से पाट दिया गया। लाल चौक पर भी जहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रहती है, पाकिस्तानी झण्डा फहराया गया। लेकिन राज्य पुलिस ने न तो इस सम्बंध में कोई गिरफ्तारी की न ही उसने किसी घर से पाकिस्तानी झण्डे उतरवाए।उधर हुबली के नगर पालिका मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहर न सके इसके लिए राज्य सरकार ने 14 अगस्त को दोपहर तीन बजे से ही हुबली में 33 घंटे की कफ्र्यू लगा दिया था।राज्य सरकार ने धर-पकड़ के मामले में भी नए कीर्तिमान कायम किए। सम्भवत: आपात्काल में भी इतनी तेजी से गिरफ्तारियां नहीं हुईं, जितनी 15 अगस्त से पूर्व पांच दिनों में हुईं। 12 अगस्त तक पुलिस ने आधिकारिक तौर पर 200 लोगों को गिरफ्तार कर लिया था और इससे बड़ी विडम्बना भला क्या होगी कि स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने की योजना बना रहे 30 लोगों को गुण्जा निरोधक कानून के तहत पकड़ा गया। इसके अलावा 51 अन्य व्यक्तियों को कर्नाटक पुलिस एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया। भाजपा महासचिव बी.एस.येडुयरप्पा को 9 अगस्त को ही बीजापुर में गिरफ्तार कर लिया गया। 12 अगस्त को भाजपा सांसद घनंजय कुमार को 10 अन्य सहयोगियों के साथ हुबली में गिरफ्तार कर लिया गया। राज्यसभा में विपक्ष के नेता और भाजपा उपाध्यक्ष सिकन्दर बख्त को भी 14 अगस्त को हुबली पहुंचने से पूर्व ही बंगलौर हवाई अड्डे पर गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें केन्द्रीय कारागार में रखा गया। कुल 500 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।जो पाकिस्तानी झंडा फहराने पर दंड नहीं देते उन्होंने तिरंगा फहराने वालों को मार डाला-लालकृष्ण आडवाणीहुबली हत्याकाण्ड पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि इस घटना की जितनी निंदा की जाए कम है।दुर्भाग्यवश हुबली के साम्प्रदायिक लोगों के तुष्टीकरण के लिए राज्य सरकार यह सिद्ध करने की चेष्टा में है कि भाजपा ने जहां राष्ट्र-ध्वज फहराने का संकल्प किया, उस स्थान का स्वामित्व विवादास्पद है और मामला न्यायालय में विचाराधीन है। वास्तविक स्थिति इससे भिन्न है जिसे विकृत रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि इस भूमि का स्वामित्व कभी विवादास्पद नहीं रहा। यह भूमि हुबली नगरपालिका की है। सन् 1921 में कुछ शर्तों के साथ इसका मजहबी कार्यों के लिए और विशेषकर दो अवसरों पर प्रयोग करने के लिए अंजुमन-ए-इस्लाम को लाइसेंस दिया गया। 1962 में कर्नाटक सरकार ने एक आदेश द्वारा यहां दीवार बनाने की अनुमति दी। स्थानीय नागरिकों ने इस आदेश को हुबली के अतिरिक्त मुंसिफ की अदालत में चुनौती दी।दिसम्बर “93 में मुंसिफ अदालत ने सरकार के आदेश को अवैध करार दिया। अदालत के अनुसार-हुबली के सभी नागरिकों को जात्रा या अन्य कार्यों के लिए इस मैदान का उपयोग करने का अधिकार है; औरअंजुमन ने जो दीवार का निर्माण किया है, उसे हटा दिया जाए।अंजुमन ने मुंसिफ अदालत के फैसले के विरुद्ध हुबली के सिविल जज के यहां अपील की। सिविल जज ने अपील खारिज कर दी और मुंसिफ अदालत का फैसला बहाल रखा। अंजुमन ने तब कर्नाटक उच्च न्यायालय में अपील की। उच्च न्यायालय ने भी अपील खारिज कर दी और पहले वाले फैसलों को बहाल रखा। इसके बाद अंजुमन ने अब उच्चतम न्यायालय में अपील की हुई है। उच्चतम न्यायालय को अन्तिम निर्णय देना है। उच्चतम न्यायालय में उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन मांगा गया। उच्चतम न्यायालय ने यद्यपि मामले के निर्णय तक दीवार गिराने पर रोक लगा दी है मगर मैदान के सार्वजनिक उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। न्यायालयों से संबंधित इन तथ्यों के संदर्भ में राज्य सरकार को हुबली के नागरिकों को इस मैदान में ध्वज फहराने से रोकने का किसी तरह का अधिकार नहीं है। पिछवे वर्षों से जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी राष्ट्रध्वज को आग लगाते आ रहे हैं और उन्हें कोई दंड नहीं दिया जाता। इस अपराध के लिए एक भी व्यक्ति को भी बन्दी नहीं बनाया गया है। लेकिन जब हुबली में भाजपा कार्यकर्ता नगरपालिका मैदान में घुसकर राष्ट्रीय तिरंगा ध्वज फहराने में सफल हो गए तो सत्ता वर्ग क्रोध से उन्मत हो उठा। लगता है इसी क्रोध और क्षोभ ने उनसे यह कातिलामा हमला करवाया। जिसमें पांच निरपराध मारे गए।रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह श्री हो.वे.शेषाद्रि ने हुबली में 15 अगस्त को हुई घटना के बारे में “पांचजन्य” से एक विशेष साक्षात्कार में जो विचार व्यक्त किए, वे यहां उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत हैं।सं.कांग्रेस मुसलमानों को देशद्रोही बना रही है-हो.वे. शेषाद्रि”स्वतंत्रता दिवस के दिन हुबली में तिरंगा फहराए जाते समय जिस प्रकार राष्ट्रभक्तों का बलिदान हुआ, वह 30 अक्तूबर और 2 नवम्बर “90 को अयोध्या में जो हुआ था, उसका पुन: स्मरण कराने वाला प्रसंग है। जिस प्रकार तब अयोध्या में सरकारी नाकेबंदी और दमन के घेरे तोड़कर देशभक्तों ने अपना बलिदान देकर भी श्रीराम जन्मभूमि पर भगवा ध्वज फहराने में सफलता पायी, उसी तरह हुबली में हुआ। पुलिस, सेना, तीन-तीन स्तरों पर तारों की बाड़ेबंदी। उन सबको तोड़ हुबली के देशभक्त कार्यकर्ता रानी चेनम्मा मैदान पहुंचे। वहां तिरंगा ध्वज फहराया; जन-गन-मन गाया।”जनता कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को क्षमा नहीं करेगीवास्तव में जिस स्थान पर राष्ट्रीय ध्वज को फहराए जाने के सम्बंध में विवाद हुआ, वह ईदगाह मैदान नहीं है। वह सैकड़ों वर्षों से एक सार्वजनिक मैदान है। उसके बीच से लोगों का आना-जाना चालू ही है। सिर्फ मुसलमानों को नमाज पढ़ने के लिए अनुमति है। उन्हें और किसी प्रकार का स्वामित्व का अधिकार नहीं है। मुसलमानों ने वहां वर्ष में एक बार ईद की नमाज पढ़नी चाही थी तो उन्हें एक कोने में इसकी अनुमति दी गई। बाद में उन्होंने वहां अपनी आय बढ़ाने के लिए दुकानें बनानी शुरू कर दीं, जिसका वहां के सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठित लोगों ने विरोध किया। निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने उसे सार्वजनिक मैदान ही माना और निर्माण कार्य पर रोक लगा दी। परन्तु अब यह मामला उच्चतम न्यायालय में लम्बित है। उसका अर्थ है कि अभी वह ईदगाह मैदान नहीं हो सकता और ऐसा शब्द प्रयोग भी गलत है।इस मैदान पर सरकार प्रतिवर्ष 15 अगस्त तथा 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज फहराने के प्रयास को प्रतिबंधित करती है। इसका मतलब यह हुआ कि स्वयं सरकार और कांग्रेस पार्टी मुसलमानों को देशद्रोही बनाना चाहती है। मान लिया कि वह मैदान विवादास्पद हो सकता है। लेकिन फिर भी वह भारत की भूमि है। वहां राष्ट्र-ध्वज फहराने के लिए गठित राष्ट्र-ध्वज गौरव समिति ने कहा कि हमारा यह आग्रह नहीं है कि यहां ध्वज हम ही फहराएंगे। आप फहराइए। कोई भी फहराए। सरकार स्वयं यहां पर समारोह करे, हमें कोई आपत्ति नहीं है। सरकार ने कहा कि अगर यहां राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे तो उस कारण साम्प्रदायिक दंगे भड़क सकते हैं। अल्पसंख्यकों के मन को चोट लग सकती है। इसका मतलब क्या है? यह कि अल्पसंख्यक राष्ट्रीय तिरंगे झण्डे के खिलाफ हैं। उसे फहराने पर दंगे भड़क सकते हैं। यह सरकार द्वारा मुसलमानों पर कितना बड़ा और भयानक आरोप है। जान-बूझकर मुसलमानों में यह भावना भड़काने वाले ये छद्म सेकुलर कहते हैं कि तुम देशद्रोही हो, देशद्रोही हो।वास्तव में सरकार के इस रवैये के खिलाफ स्वयं मुसलमानों को खड़े होकर कहना चाहिए कि यह बात गलत है कि हम तिरंगे के खिलाफ हैं और सरकार चाहे कुछ भी करे, हम स्वयं इस मैदान पर तिरंगा फहराएंगे। ऐसा मुसलमानों को आगे बढ़कर बोलना चाहिए और बताना चाहिए कि कांग्रेस उन्हें बेवकूफ बना रही है। वह अपने राजनीतिक स्वार्थ और वोट हासिल करने के लिए हमें बदनाम कर रही है और हिन्दुओं के साथ हमारा झगड़ा पैदा कर रही है। इसलिए जितनी बार सरकार वहां तिरंगा फहराने पर प्रतिबंध लगाती है, उतनी ही बार वहां मुसलमानों की तरफ से तिरंगा फहराने की बात उठनी चाहिए।भारत की स्वतंत्रता के बाद अपने स्वार्थों के लिए कांग्रेस मुसलमानों को बलि का बकरा बना रही है। मुसलमान भी ऐसे स्वार्थी षडंत्र के शिकार हो रहे हैं। उन्हें समझना चाहिए कि उनका अपना हित किसमें है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अयो ध्या के बाद उत्तर प्रदेश में जो मुलायम सिंह की स्थिति हुई थी, वही स्थिति अब कर्नाटक में कांग्रेस की होगी। कर्नाटक की जनता उसे किसी भी हालत में क्षमा नहीं करेगी।मुझे बोलने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया तो भड़काया किसने?-उमाश्री भारतीहुबली में पुलिस ने बेकसूर नागरिकों पर गोली चलाई है और ऐसा पुलिस ने कुंठित होकर किया। दरअसल वह हताश हो गई थी, जिसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि पुलिस के इतने कड़े बन्दोबस्त के बावजूद सुबह 6.40 पर नगरपालिका मैदान में ध्वजारोहण हो गया। यह कुंठा बहुत तीव्र थी और इसी कुंठा में इन्होंने बेकसूर लोगों को मारा है।पुलिस की हताश का दूसरा कारण यह था कि हम लोग इनकी इतनी सतर्कता के बावजूद हुबली में प्रवेश कर गए। मैं प्रवेश कर गई, ईश्वररप्पा प्रवेश कर गए। मैंने हुबली में छिपाते-छिपाते संवाददाता सम्मेलन को भी सम्बोधित किया और ये लोग मुझे ढूंढ नहीं सके। पुलिस दावा कर रही थी कि हम उमाश्री भारती को किसी भी क्षण पकड़ने वाले हैं और मैं उसके आधे घण्टे बाद हुबली में ही संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित कर रही थी। इस कारण भी पुलिस हताश थी।यह कहा जा रहा है कि हमारे कार्यकर्ताओं ने अशांति फैलाई, पुलिस के वाहन जला दिए। ये जो कुछ भी हुआ है, वह तब हुआ है जब हमारे 4 लोगों की लाशें बिछ गईं और एक आदमी अस्पताल के परिसर में मारा गया। इसके बाद हुबली की आम जनता सड़कों पर आ गयी और फिर उसने उपद्रव करना शुरू कर दिया। लेकिन गोलीबारी के पहले तो कंकड़ भी नहीं मारा गया। किसी को गाली तक नहीं दी गई।कुछ लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि हुबली में मैंने लोगों को भड़काया, यह एकदम गलत आरोप है। वहां के पुलिस महानिदेशक श्री बर्मन ने खुद संवाददाता सम्मेलन में कहा है कि हमने उमाश्री भारती को जनता के सामने बोलने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया था। इसका मतलब मेरे भाषण से लोग भड़के; यह गलत सिद्ध हुआ। पुलिस महानिदेशक के बयान से ही इसका खण्डन हो जाता है।हुबली में पुलिस ने हत्याएं की हैंहुबली ही क्यों, देश के चप्पे-चप्पे परतिरंगा फहराने का अधिकार है मुझे-सिकंदर बख्तराज्यसभा में विपक्ष के नेता और भाजपा के उपाध्यक्ष श्री सिकन्दर बख्त को कर्नाटक पुलिस ने 13 अगस्त को ही बंगलौर में गिरफ्तार कर लिया था ताकि वे हुबली के तथाकथित विवादित मैदान में 15 अगस्त को ध्वाजारोहण के लिए न पहुंच सकें। श्री बख्त बताते हैं कि उन्होंने फरवरी “94 में ही यह तय कर लिया था कि इस वर्ष वे स्वतंत्रता दिवस पर हुबली के नगर पालिका मैदान में तिरंगा फहराएंगे। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी को भी अपनी इच्छा से अवगत करा दिया था। श्री बख्त बताते हैं कि यह निर्णय उन्होंने इसलिए लिया, क्योंकि विगत दो वर्षों से मुस्लिम भावनाओं के नाम पर वहां राज्य सरकार किसी को स्वतंत्रता दिवस मनाने नहीं दे रही थी। “मुझे लगा कि कांग्रेस इस मामले को जान-बूझकर सांप्रदायिक रंग में रंग रही है। इसलिए मैंने तय किया है कि अपने कुछ मुस्लिम भाइयों के साथ जाकर तिरंगा फहराऊंगा ताकि कोई यह न कह सके कि मुसलमान नहीं चाहते कि उस मैदान पर तिरंगा फहरे।”श्री बख्त कहते हैं, “मैं बंगलौर के लिए रवाना होने से पूर्व प्रधानमंत्री से भी मिला और उन्हें कहा कि हुबली के मैदान में ध्वजारोहण के सवाल पर हिन्दुओं और मुसलमानों में जो कशीदगी पैदा हो गई है, उसे खत्म करने के लिए मैं वहां जा रहा हूं। प्रधानमंत्री से मैंने यह भी कहा कि वे मुख्यमंत्री मोइली को बता दें कि मैं केवल कुछ मुसमलानों के साथ वहां राष्ट्रीय ध्वज फहराने जाऊंगा। परन्तु मैं जैसे ही बंगलौर पहुंचा, मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।””यह सीधे-सीधे हत्याकाण्ड है, इसकी जितनी निन्दा की जाए कम है। वीरम्पा मोहली और कांग्रेसी कहते हैं कि हुबली के मामले को भाजपा वैसे ही साम्प्रदायिक बना रही है जैसे अयोध्या को बनाया। मैं इस बात का कड़े शब्दों में खण्डन करता हूं। अयोध्या और हुबली में कोई समानता नहीं है, क्योंकि हुबली में कोई विवाद है ही नहीं। न्यायालय के अनुसार वह स्थान सार्वजनिक है और स्थानीय जनता उसका कुछ भी इस्तेमाल कर सकती है। फिर भी मैं मोइली से एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि अयोध्या और हुबली में अगर कुछ समानता है तो वह यही है कि अयोध्या में मुलायम सिंह नाम के डायर ने देशभक्तों पर गोलियां चलाईं और हुबली में मोइली नाम के डायर ने।”जब उनसे पूछा कि आखिर उन्होंने और भाजपा ने झण्डा फहराने के लिए वही मैदान क्यों चुना तो प्रश्न पर प्रतिप्रश्न दागते हुए उन्होंने कहा, “आखिर वही मैदान क्यों नहीं? राष्ट्रीय ध्वज कहीं भी फहराया जा सकता है। पूरा देश मेरा है और मैं इसके चप्पे-चप्पे पर तिरंगा फहरा सकता हूं, किसी को क्या हक है मुझे रोकने का?”सम्पादकीयउनकी सोचेंवे जो बंधी मुट्ठियां और खुले सीने लिए 15 अगस्त को हुबली में तिरंगे की शान के लिए बलिदान हुए, उनका खून भारत माता के माथे का सिंदूर है तो वही मोइली के माथे का कलंक बन गया है, जो बंगलौर में मुलायम सिंह बनकर उन देशभक्त सत्याग्रहियों के रक्त का प्यासा बन गया है, जिनकी मांग है कि देश में कोई भी स्थान ऐसा नहीं होना चाहिए जहां तिरंगे को फहराया जाना संभव न हो। 15 अगस्त को कांग्रेस की कर्नाटक सरकार ने वही किया है जो कश्मीर के आतंकवादी देशभक्त सत्याग्रहियों के प्रति कर रहे हैं। वीरप्पा मोइली ने जहां सत्ता की गुंडागर्दी के बल पर हुबली में रानी चेनम्मा मैदान में तिरंगे को रक्त-रंजित किया तो वहीं उन हिन्दुस्थानी नमक पर पले लोगों के लिए क्या कहा जाए जो वैसे तो अपनी ईदगाह या अन्य मजहबी जगहों पर इस देश की आजादी का उपहास उड़ाने वाले मातमी काले झण्डे से लेकर पाकिस्तान जैसा हरा झण्डा लगाना तो उचित समझते हैं, लेकिन तिरंगा लगाने की बात सुनते ही उनके हाथ मानो टूट जाते हैं और उन्हें मजहबी प्रतिबंधों की याद आ जाती है।जिस रानी चेनम्मा मैदान में सारे दिन बसें खड़ी रहती हों, प्रदर्शनियां लगती हों, दिनभर जानवर और फुटपाथ पर रहने वाले लोग सुबह उसे गंदा करते हों, वह अचानक इतना पवित्र, पावन कैसे हो गया कि वहां तिरंगा तक फहराने से मुसलमानों की भावनाएं आहत हो जाएंगी? क्या इसलिए कि वहां पर एक 10 फीट की छोटी सी दीवार बनी हुई है, जिसके सामने साल में सिर्फ एक बार मुसलमान आकर ईद की नमाज पढ़ते हैं? यदि इस कारण ही वह भूमि और उसकी धूल इतनी “पावन और पवित्र” है तो सालभर उसकी चिंता क्यों नहीं होती? और वह जमीन पावन, पवित्र कैसे हो सकती है, वह जमीन किसी भी प्रकार की महिमा से मंडित कैसे हो सकती है जहां इस देश की हवा, पानी और नमक पर जिंदा रहने वाले लोग इस देश के गौरव और प्राण के प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तक को न फहरा सकें? अरे, वह अपवित्र, अपावन भूमि भी पवित्र हो जाती है जहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाए! लेकिन जिसने सीखा ही हो, “जिस थाली में खाना, उसमें छेद करना” उसे देशभक्ति और राष्ट्रीयता से कोई मतलब कैसे हो सकता है।9
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