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ध्वनि विज्ञान पर आयोजित कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने कहा-देवनागरी का वैज्ञानिक रूप पाणिनी की ही अनूठी देनमहर्षि पाणिनीदोहजार साल पहले महर्षि पाणिनी ने देवनागरी लिपि के अक्षर गढ़कर अनूठा शोध किया था, जो ध्वनि विज्ञान के लिए वरदान साबित हुआ है। सुविख्यात व्याकरणशास्त्री पाणिनी के योगदान की चर्चा करते हुए हैदराबाद विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. बी.एस.रामकृष्ण ने कहा कि पाणिनी ने देवनागरी लिपि के अक्षरों को बहुत वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया। प्रो. रामकृष्ण ने “वाक् शक्ति का ध्वनि विज्ञान” विषय पर आयोजित कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए यह विचार व्यक्त किए। गत 19 अगस्त को मैसूर (कर्नाटक) में आयोजित इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि देवनागरी लिपि के शब्दों की बनावट उनके ध्वनि उच्चारण के अनुसार ही है और वैज्ञानिक कसौटी पर पूरी तरह खरी उतरती है।अखिल भारतीय वाक् एवं श्रवण संस्थान के महर्षि पाणिनी वाक् भाषा विज्ञान विभाग एवं केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान द्वारा आयोजित इस कार्यशाला का उद्देश्य वाणी चिकित्सकों और भाषा वैज्ञानिकों को वाणी के ध्वनि विश्लेषण की नई तकनीकों से परिचित कराना था। अपने वक्तव्य में प्रो. रामकृष्ण ने पाणिनी को ध्वनि विज्ञान के क्षेत्र में गहन शोध करने वाला पहली व्यक्ति बताया। आंख और कान के बीच संबंध की व्याख्या करते हुए उन्होंने दो उदाहरणों के माध्यम से “मैकगर्क प्रभाव” का विश्लेषण किया। उन्होंने शोधकर्ताओं को “मैकगर्क” प्रभाव और “काक्टेल पार्टी” प्रभाव पर काम करने के लिए कहा। अध्यक्षीय उद्बोधन में अखिल भारतीय वाणी एवं श्रवण संस्थान के निदेशक श्री एम. जयराम ने कहा कि वाणी चिकित्सकों का यह दायित्व है कि ध्वनियों के विश्लेषण से प्राप्त जानकारी का प्रयोग बोल सकने में अक्षम बच्चों के लिए करें। वाणी के ध्वनि विश्लेषण का प्रयोग स्वत: ही वाणी प्रसार तंत्र में होता है। इसका उपयोग संभाषण और संगीत में भी उपयोगी होता है। दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों सहित शिलांग, असम, चंडीगढ़ और मुम्बई से आए लगभग 100 प्रतिनिधियों ने इस कार्यशाला में भाग लिया। कार्यशाला में सहभागियों को ध्वनि विश्लेषण की विधियों का प्रशिक्षण दिया गया, जो ध्वनि विज्ञान के सिद्धांत को और भी गहराई से समझने में सहायक होगा। प्रतिनिधि14
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