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प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से पाञ्चजन्य का साक्षात्कारशक्तिशाली और समृद्ध भारत का निर्माण ही हम

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Feb 5, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Feb 2004 00:00:00

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से पाञ्चजन्य का साक्षात्कारशक्तिशाली और समृद्ध भारत का निर्माण ही हमारी विचारधारा का आधार”देश नाजुक मोड़ पर””महान शक्तिशाली भारत के लिए हमें बहुमत दें,मातम के मसीहाओं को परास्त करें”स्वातंत्र्योत्तर भारत पहली बार एक अपूर्व आशा और विश्वास के साथ आगे बढ़ता दिख रहा है। हमारे अटल जी की गणना विश्व के महान नेताओं में हो रही है। दुनिया में सदियों के बाद भारतीय उन्नत मस्तक के साथ अभूतपूर्व प्रतिष्ठा और सम्मान पा रहे हैं। ऐसे समय में हो रहे चुनाव ऐतिहासिक तथा निर्णायक सिद्ध होंगे। व्यस्तता में भी अपार सहजता और चुनावी सरगर्मियों के बीच भी अपूर्व शान्ति के साथ कठिन विषयों पर बात करना अटल जी का स्वभाव है। लखनऊ के चुनावी दौरे पर जाने से पहले चुनाव, उससे जुड़े मुद्दों तथा भारत के संबंध में भविष्य-दृष्टि पर अटल जी से जो बातचीत हुई उसमें उन्होंने एक महान शक्तिशाली भारत के निर्माण के लिए उन्हें पूर्ण बहुमत देने तथा कांग्रेस जैसे “मातम के मसीहा” दलों को परास्त करने का आह्वान किया। इस बातचीत के संपादित अंश प्रस्तुत हैं।-तरुण विजयआज विश्व के महान नेताओं में आपकी गणना होती है तथा भारत को विश्वस्तर पर जो प्रतिष्ठा मिल रही है, वह असाधारण है। यह स्थिति लाने में किन महत्वपूर्ण बातों का योगदान रहा?हमारा प्रारंभ से ही यह विश्वास रहा है कि भारत में अपरिमित संभावनाएं हैं। इसके साथ हमारा यह भी कहना रहा है कि उन संभावनाओं के आधार पर ठीक प्रकार से विकास नहीं हुआ। इसके कई कारण रहे, जिनमें केन्द्र का शासन भी जिम्मेदार रहा।यानी कि पिछली केन्द्र सरकारें?हां! उन्होंने ठीक से संभावनाओं का उपयोग नहीं किया। लेकिन देश समय-समय पर इन संभावनाओं को मूर्त रूप देने की अपनी इच्छा व्यक्त करता रहा। ये संभावनाएं प्रकट होती रहीं और बढ़ती रहीं। हमारी सरकार आने के बाद आगे बढ़ने के मार्ग पर जो मानसिक बंधन था, वह जब एक बार दूर हो गया तो मुक्त मार्ग पर देश आगे बढ़ने लगा। सभी क्षेत्रों में उसकी अभिव्यक्ति होने लगी।मानसिक बंधनों से आपका संकेत आर्थिक सुधारों से पहले की स्थिति की ओर है?जी हां।तो आर्थिक सुधारों के कारण ये मानसिक बंधन हटे?सिर्फ आर्थिक सुधारों के कारण नहीं। हां, आर्थिक सुधार उन कारणों में एक रहे।हम जनसंघ के समय से कहते आ रहे थे कि कोटा-परमिट राज नहीं होना चाहिए। हमारी दृष्टि में सदैव यह बात रही कि उत्तम खेती मध्यम बान, निषिध चाकरी भीख निदान।लेकिन समाजवाद के नाम पर एक ऐसी विचारधारा फैली जिससे सब लोग प्रभावित हुए और हम भी अछूते नहीं रहे, क्योंकि उसमें समानता का जो भाव था, वह हमें पसंद था। शोषणरहित समाज की कल्पना में हमारा विश्वास था। पर ऐसा लगता है कि उस समय लोगों ने इस बात का विचार नहीं किया कि आर्थिक शोषण खत्म हो जाए और राजनीतिक गुलामी बनी रहे तो क्या करेंगे?वामपंथी प्रभाव ने हर क्षेत्र में बहुत गलत परिणाम दिए। पं. नेहरू के समय समाजवादी नीतियां प्रारंभ हुईं, उन के कारण प्रगति धीमी हुई।राजनीतिक दृष्टि से गुलामी का अर्थ?राजनीतिक गुलामी का अर्थ है कि जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न हो, आलोचना का अधिकार खत्म कर दिया जाए, नियमों में बंधा हुआ संवेदनहीन तंत्र।आप कम्युनिस्टों के समाजवाद की बात कर रहे हैं, यानी वामपंथी प्रभाव वाला समाजवाद?हां! वामपंथी प्रभाव ने हर क्षेत्र में बहुत गलत परिणाम दिए।यानी कि आप मानते हैं कि पं. नेहरू के समय जब समाजवादी नीतियां प्रारंभ हुईं, उनसे प्रगति की धारा में अवरोध पैदा हुए?उन नीतियों के कारण प्रगति धीमी हुई।अटल जी इसके साथ यह भी बताइये कि उस समय से आर्थिक नीतियों एवं शिक्षा के क्षेत्र पर वामपंथियों का जो कब्जा रहा, उससे किस प्रकार की क्षति हुई?उसने हमारी मेधा को कुण्ठित किया। मुझे याद है श्रीमती गांधी के मंत्रिमंडल में वामपंथी झुकाव के श्री कुमारमंगलम मंत्री थे। एक बार सदन के बाहर उनसे चर्चा हुई, तब वे इस्पात उद्योग का राष्ट्रीयकरण कर रहे थे। मैंने उनसे कहा कि इस प्रकार राष्ट्रीयकरण करने से क्या लाभ होगा। क्या इस्पात उद्योग में जैसा प्रबंध चाहिए, हम वैसा कर सकेंगे? तो उनका उत्तर था कि सवाल यह नहीं है कि हम वैसा प्रबंध कर सकेंगे या नहीं। इस्पात उद्योग का इतना बड़ा मंत्रालय है, इतने अधिक लोग उसमें काम करते हैं, ये सब लोग हमारे इशारे पर काम करेंगे, यह महत्वपूर्ण है। इससे समाजवाद लाने में मदद मिलेगी।यानी सत्ता का नियंत्रण पूरी तरह अपने हाथ में रहे, यह उनके लिए गुणवत्ता से ज्यादा महत्वपूर्ण था।अच्छा अटल जी, एक बात साफ-साफ बताइये। परवेज मुशर्रफ पर भरोसा कितना करते हैं?मैं भारत की शक्ति में भरोसा करता हूं। बस!आजादी मिलने के बाद वे कौन-से कारण रहे, जिनकी वजह से हम उन छोटे-छोटे देशों की तरह भी प्रगति नहीं कर सके जो हमारे साथ ही आजाद हुए थे?अधिक से अधिक बंधन लगाने की मानसिकता ने बहुत नुकसान पहुंचाया। इसका और व्यक्तिगत स्वातंत्र्य को कम से कम करने की कोशिशों का भी हमने विरोध किया। जैसे, उन दिनों कोआपरेटिव फार्मिंग यानी सामूहिक खेती की बड़े जोर-शोर से बात उछाली गई। इतनी तीव्रता से इसका प्रचार किया गया कि उसके सामने खड़ा होना कठिन हो गया। जो भी उसका विरोध करता था, उसके बारे में कहा जाता था कि वह दकियानूसी है या पूंजीवाद का समर्थक है। पर हम इसके विरोध में डटकर खड़े रहे। बाद में उसके समर्थकों को भी यह समझ में आया कि यह रास्ता उचित नहीं है। सोचिये, अगर उस समय सामूहिक खेती का वह विचार क्रियान्वित कर दिया जाता तो आज क्या हाल होता? रूस में सामूहिक खेती को पूरी तरह बंद कर दिया गया है। अगर भारत में भी वामपंथियों के प्रभाव से सामूहिक खेती चलाई जाती तो हरित क्रांति नहीं हो सकती थी।विचारधारा की दृष्टि से हमलोग निकट हैं। आखिरकार भारत महासंघ बनाने की बात और डा. लोहिया के इस बारे में विचार से हम पहले से सहमत रहे हैं। यह वैचारिक तागा तो पहले से ही जुड़ा हुआ है।विचारधारा के आधार पर जिन मुद्दों को लेकर जनसंघ और भाजपा चले, उनमें से कितने मुद्दों पर हमें सफलता मिली है और कितने मुद्दे छोड़ने पड़े?हम काफी हद तक आगे बढ़े हैं, पर अभी रास्ता तय करना शेष है।वर्तमान स्थिति तक पहुंचते हुए जनसंघ की विरासत का किस हद तक पालन कर सके? उसे हम कहां तक आगे ले जाने की इच्छा रखते हैं?उस विरासत का सबसे बड़ा संदेश और लक्ष्य यही था कि भारत को शक्तिशाली और समृद्ध बनाया जाए। और वही हो रहा है। हर क्षेत्र में भारत का आगे बढ़ना हमारी परमवैभव की कल्पना के अनुरूप ही है।कहा जाता है कि आप हिन्दुत्व से अलग हट रहे हैं?गलत कहा जाता है। भारत का शक्तिशाली और समृद्ध होना ही हमारी मूल विचारधारा है। यही भारतीयता है। भारतीयता कहिये भारतीयता, तब बात समझ में आएगी।सुरक्षा की दृष्टि से हमने एक ऐसा राष्ट्र बनाया है जो किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने में पूरी तरह समर्थ है। हम ऐसा देश बनाना चाहते हैं जो अविजेय हो। यह हमारी पहले से ही मूल प्रेरणा रही है। पिछली सरकारों के समय तीन लड़ाइयां हुईं और तीनों में हमने चोट खाई। पर हमने कारगिल में ऐसा नहीं होने दिया। उस समय पाकिस्तान के जो प्रधानमंत्री थे, श्री नवाज शरीफ, उन्होंने इस लड़ाई में पाकिस्तान की फौजों ने हमारे हाथों कैसे मार खाई, इसका वर्णन किया है। फिर उनको तब अमरीका ने रातों रात वाशिंगटन बुलवा लिया था। वे गए। पर हमने जाने से मना कर दिया। श्री नवाज शरीफ ने उस साक्षात्कार में कहा है कि Ïक्लटन ने वाजपेयी को बुलाया लेकिन वाजपेयी ने मना कर दिया। तो यह स्थिति कैसे आई कि अमरीका बुला रहा है और हम मना कर रहे हैं? हम अपनी ताकत पर डटे रहे और दुनिया ने माना। यही है हमारी भारतीयता, यही है हमारी राष्ट्रीयता।यह हमारी राष्ट्रीयता का ही अंग है कि हम एक ऐसा देश बनाना चाहते हैं जिसमें दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज कहूं नहीं व्यापा की बात फलीभूत हो। खाद्य के क्षेत्र में सुरक्षा भी हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि है। अब कहीं कोई भुखमरी का शिकार नहीं होता। अंत्योदय के अंतर्गत दो रुपए किलो गेहूं और तीन रुपए किलो चावल देते हैं। लेकिन अब तो हाल यह है कि लेने वाले नहीं मिलते। हालात सुधर रहे हैं।बाहर से नहीं, लेकिन “घर के भीतर की स्थिति” से कई बार मन आहत होता है। आपस में विश्वास कम हो रहा लगता है। यह विश्वास ही हमारा सबसे बड़ा सम्बल था। हमारी विचारधारा से जुड़े संगठन जब आक्षेप लगाते हैं तो मुझे लगता है कि वे हमारे प्रति अन्याय कर रहे हैं।विरोधी आरोप लगाते हैं कि योजनाएं ज्यादातर अमीरों के लिए हैं और पिछड़े वर्ग तक प्रगति का लाभ बहुत कम पहुंचा है।ऐसा ठीक नहीं है। सभी योजनाओं का मूल लाभ गरीबों और पिछड़ों तक पहुंचे, इसका प्रयास किया गया है। हां! समस्या उस आदमी के लिए जरूर है जो काम ही नहीं कर सकता। उसके लिए तो भोजन वितरण केन्द्र ही चल सकते हैं। देश में कई जगह चल रहे हैं। दक्षिण के अनेक मठ ऐसे हैं जहां जो भी जाए भोजन पा सकता है।क्या गरीबी उन्मूलन के लिए अपने अगले कार्यकाल हेतु कोई स्पष्ट लक्ष्य बता सकते हैं?गरीबी तो दूर करनी ही है, यह तो तय किया हुआ है। लेकिन समस्या है कि जो काम करना नहीं जानते, उन्हें काम कैसे सिखाया जाए। जनजातीय क्षेत्रों तथा अनुसूचित जाति के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है लेकिन और करना बाकी है। इनके लिए अनेक विशेष और बहुत अच्छी योजनाएं बनी हैं। काम बहुत अच्छे हो रहे हैं पर कम हैं। दुबारा आएं तो और बढ़ाएंगे।आप पाकिस्तान से शान्तिवार्ता कर रहे हैं और कश्मीर में आतंकवाद की समस्या के समाधान की भी कोशिशें हो रही हैं। लेकिन आज भी कश्मीर में वहां के राज्य का अलग झण्डा चल रहा है तथा धारा 370 हटाए जाने की कोई बात नहीं होती जिसके लिए डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आंदोलन किया था।उस समय जिस भावना से अलग झण्डा रखा गया था, उस भावना का विरोध हुआ था। अगर अब संविधान सभा पारित कर दे कि हर राज्य का अलग-अलग झण्डा होगा तो इसका अर्थ यह थोड़े ही हो सकता है कि सब राज्य अलग हो जाएंगे या हो गए। स्वायत्तता देना, विघटन को बढ़ावा देना नहीं है।संघ की विचारधारा से जुड़े हम सब आगे बढ़ रहे हैं। देश के विकास को सामने रखकर आगे बढ़ रहे हैं।और धारा 370?भई, अब समझना चाहिए कि इन सब समस्याओं का स्वरूप बदल गया है। (हंसते हुए) 370 नहीं होगी तो लोग 371 मांगेंगे। पिछड़े हुए राज्य अब अधिक विकेन्द्रीकरण और अधिकारों की बात कर रहे हैं। कश्मीर में भी हालात बदल रहे हैं।राजग ने अपने घोषणापत्र में तो जम्मू तथा लद्दाख के विकास तथा पहचान की रक्षा की बात की है।हमने तो की है लेकिन घाटी के लोगों की इसमें दिलचस्पी नहीं है। इसीलिए तो ये दोनों क्षेत्र अलग होना चाहते हैं।आप अपने कार्यकाल में जम्मू और लद्दाख को अलग करने की मांग पर विचार करेंगे?नहीं! लेकिन इस बात का जरूर ध्यान रखेंगे कि इन दोनों क्षेत्रों का भरपूर विकास हो। उन्हें अधिक शक्ति तथा साधन दिए जाएं। जम्मू और लद्दाख की बात ही नहीं, क्या घाटी भी बिना केन्द्रीय वित्तीय सहायता के कुछ कर सकती है?आप स्वयं को किस रूप में याद किया जाना चाहेंगे?कोई याद करे, इसकी क्या जरूरत है।अपनी सरकार के कार्यकाल में भारत को परमाणु शस्त्रों से सज्ज करना (पोकरण) सबसे तृप्तिदायक मानता हूं।पाकिस्तान से संबंध सुधारने की दिशा में आपके प्रयास सकारात्मक सिद्ध हो रहे हैं तो यह सुधार प्रक्रिया कब तक चलेगी? अंतहीन या कोई समय सीमा होगी?यह तो निरंतर चलेगी, क्योंकि संबंधों में परिवर्तन की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। परिवर्तन के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।तो फिर अटल जी, यह बताइये कि पाकिस्तान से संबंधों में सुधार के लिए क्या वर्तमान नियंत्रण रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा घोषित करने की बात भी आपके मन में है?जो बात हमारे मन में है वह आपको क्यों बताएं?ठीक है, मत बताइये…(और इस पर अटल जी जोर से हंस पड़े)यानी संसद ने जो (पाकिस्तानी कब्जे वाले)कश्मीर को वापस लेने की शपथ ली थी, उसका क्या होगा?वह अपनी जगह ठीक है। आखिर अखंड भारत की भी तो बात की जाती है। हम कहते हैं कि सब देश अपनी जगह बने रहें और आपस में सहयोग शुरू हो जाए, मित्रता हो।आपने पिछले दिनों कहा भी था कि जैसे यूरोपीय संघ बना है, हम भी इसी प्रकार इन देशों को सहयोगी एकसूत्रता में जोड़ सकते हैं।बिल्कुल जोड़ सकते हैं और हम सत्ता में आए तो सबकी सहमति से इस दिशा में आगे काम करेंगे। यूरोपीय संघ की तरह इस पूरे क्षेत्र में मुद्रा भी एक हो सकती है।अच्छा अटल जी, एक बात साफ-साफ बताइये। परवेज मुशर्रफ से बार-बार बात होती है, बार-बार गड़बड़ होती है। अंतत: आप उन पर भरोसा कितना करते हैं?मैं भारत की शक्ति में भरोसा करता हूं। बस!इधर मुस्लिम समुदाय का बड़ी संख्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ संवाद और भाजपा के साथ जुड़ाव दिखने लगा है। अभी तक राष्ट्रवादी विचारधारा के विरोधी यह कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए पर मुस्लिम समाज इस विचारधारा और इससे जुड़े संगठनों के निकट नहीं आएगा। इस बदलाव का आप क्या कारण मानते है?यह तो बदले हुए वक्त का तकाजा है। मुस्लिम समाज भी यह समझ रहा है कि उसे यहीं रहना है और यहीं अपना भविष्य बनाना है। या तो हमेशा झगड़ा करते रहें और तनाव का संबंध बना रहे। या भाई-चारे के साथ आगे बढ़ें। वे भाई-चारे के रास्ते पर बढ़ रहे हैं। यह अच्छी बात है।आप आज उत्तर प्रदेश जा रहे हैं। वहां पार्टी की क्या स्थिति है?उत्तर प्रदेश में पार्टी की संगठनात्मक स्थिति सुधर रही है। वर्तमान चुनाव की चौपड़ में भाजपा को लाभ मिलने की पूरी संभावना है।उत्तर प्रदेश में जनसंघ और भाजपा मजबूत रही है। वहां अचानक कमजोरी क्यों दिख रही है?कमजोरी नहीं, कुछ संगठनात्मक दिक्कतें थीं। अब नेतृत्व में सुधार लाया गया है।चुनाव के बाद यदि श्री मुलायम सिंह सरकार में आना चाहें तो क्या आप उन्हें लेंगे?मैं इस समय कुछ नहीं कहता हूं। पर एक बात मैंने पहले भी कही थी कि विचारधारा की दृष्टि से हमलोग निकट हैं। आखिरकार भारत महासंघ बनाने की बात और डा. लोहिया के इस बारे में विचार से हम पहले से सहमत रहे हैं। यह वैचारिक तागा तो पहले से ही जुड़ा हुआ है।अटल जी पिछले दिनों आपसे कुछ साक्षात्कारों में उत्तराधिकारी चुनने की बात भी पूछी गई। और यह छपा कि आपने कहा है कि आपने अपना उत्तराधिकारी तय कर लिया है?यह गलत है। राजनीति में उत्तराधिकारी तय नहीं किए जाते। मैंने तो यह कहा था कि उत्तराधिकारी बताने का सवाल ही नहीं उठता। जो भी तय करना होगा, पार्टी तय करेगी। मैं अपना उत्तराधिकारी कैसे तय कर सकता हूं?कई बार देखा गया है कि कुछ बातों से आप बहुत आहत होते हैं। तो वे क्या बातें हैं जिनसे आपके मन को चोट पहुंचती है?बाहर से नहीं, लेकिन “घर के भीतर की स्थिति” से कई बार ऐसा होता है। आपस में विश्वास कम हो रहा लगता है। यह विश्वास ही हमारा सबसे बड़ा सम्बल था। हमारी विचारधारा से जुड़े संगठन जब आक्षेप लगाते हैं तो मुझे लगता है कि वे हमारे प्रति अन्याय कर रहे हैं। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहता। मतभेद हो सकते हैं, मतभेद उग्र भी हो सकते हैं, लेकिन उसके बावजूद एक दूसरे की नीयत पर कभी संदेह नहीं होना चाहिए। संघ की विचारधारा से जुड़े हम सब आगे बढ़ रहे हैं। देश के विकास को सामने रखकर आगे बढ़ रहे हैं। इसमें आपस में आक्षेप लगाने का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।अपनी सरकार के कार्यकाल का कोई ऐसा क्षण बताइये जो आपको सर्वाधिक आनंद देता है।लम्बी-चौड़ी सूची है। क्या-क्या बताएं? लेकिन भारत को परमाणु शस्त्रों से सज्ज करना (पोकरण) सबसे तृप्तिदायक मानता हूं।अटल जी, हम आपकी दीर्घायु की कामना करते है, साथ ही यह जानना चाहेंगे कि आप स्वयं को किस रूप में याद किया जाना चाहेंगे?टेढ़ा सवाल है। लोग याद करेंगे भी या नहीं करेंगे, इसके बारे में मुझे संदेह है। कोई याद करे, इसकी क्या जरूरत है।अंत में एक सवाल। देश की आज की परिस्थिति के बारे में आप क्या सोचते हैं?देश एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। एक लम्बी छलांग की जरूरत है। लेकिन इसमें जो खतरे निहित हैं, उनको समझकर आगे बढ़ना जरूरी है। एक गलत कदम हमें मीलों पीछे धकेल सकता है।11

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