मंथन
July 14, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

मंथन

by
Jan 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 08 Jan 2004 00:00:00

देवेन्द्र स्वरूप

पश्चिमी सभ्यता की बीमारियां भारत में

आजकल भारतीय मीडिया पर दो बीमारियां छायी हुई हैं- एक है एच.आई.वी./एड्स और दूसरी है, “ओबेसिटी” यानी मोटापा। जिस देश में भूख और कुपोषण के कारण बच्चों के पेट पीठ से लगे हों, वहां मोटापे की बीमारी की चर्चा जरा हास्यास्पद लगती है। किन्तु हमारा देश विकसित देशों की पंक्ति में पहुंच रहा है, यह दिखाने के लिए अमरीका की हर बीमारी हमारे देश में न हो, यह कैसे हो सकता है? अमरीकी समाज मोटापे की बीमारी से त्रस्त है तो भारत क्यों नहीं? दूसरी बीमारी भी अमरीका में ही पैदा हुई थी। सत्तर के दशक के पहले किसी ने उसका नाम भी न सुना था। बीमारी का नाम भी अंग्रेजी में ही लम्बा-चौड़ा। एच.आई.वी. यानी ह्रूमेन इम्यूनो डेफिशियेंसी वायरस और एड्स यानी एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशियेंसी सिन्ड्रोम। दोनों का मुख्य लक्षण है मानव शरीर में रोगों की प्रतिरोधक शक्ति का अभाव। इसका मुख्य कारण बताया जा रहा है अवैध एवं अप्राकृतिक यौन सम्बंध। भौतिक समृद्धि में डूबी अमरीका की नई पीढ़ी के सामने खूब खाओ, खूब ऐश करो से ऊंचा कोई आदर्श नहीं रहा तब वह नशीली वस्तुओं के सेवन, कृत्रिम कामोत्तेजना पाकर वैवाहिक बंधनों को तोड़ अमर्यादित स्वच्छन्द यौनाचार में लिप्त हो गई। स्वाभाविक ही उसके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता शिथिल होने लगी और वे यौन रोगों से ग्रस्त हो गए, अपनी सभ्यता की इस बीमारी को उन्होंने भारी भरकम नाम दिया एच.आई.वी./एड्स। एच.आई.वी. रोग का प्रारम्भ है और एड्स यौन सम्बंध के द्वारा दूसरे के शरीर में संक्रमण का परिणाम है। एच.आई.वी. का रोगी कई वर्ष तक सामान्य दिखाई दे सकता है किन्तु एड्स का रोग असाध्य माना जाता है।

रोग का निर्यात

अमरीका में जन्मे इस रोग के लक्षण पश्चिम यूरोप के समृद्ध देशों में भी दिखाई देने लगे और फिर इस रोग का निर्यात अफ्रीका और एशिया के देशों में होना स्वाभाविक था। 1981-82 में पाश्चात्य विशेषज्ञों ने सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीका में इसका अस्तित्व खोज निकाला और 1992 से भारत में एच.आई.वी./एड्स की चर्चा शुरू हो गई। पश्चिमी देशों, विशेषकर अमरीका ने इस रोग पर नियंत्रण पाने के लिए हमें आर्थिक सहायता देनी प्रारंभ कर दी। इस आर्थिक सहायता का उपयोग करने के लिए सरकारी स्तर पर राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) जैसी संस्थाओं का निर्माण शुरू हो गया और विदेशी सहायता के बल पर जीवित रहने वाले गैर-सरकारी संगठनों (एन.जी.ओ.) की पौध खड़ी हो गई। विदेशी सहायता पाने के लिए एड्स का हौवा खड़ा करना आवश्यक था। इसलिए एक ओर एड्स नामक बीमारी की भयंकरता का प्रचार शुरू हो गया, दूसरी ओर एड्स की भारत में व्यापकता के आंकड़े गढ़े जाने लगे। ये आंकड़े प्रतिवर्ष तेजी से छलांग लगा कर आगे बढ़ रहे हैं। बताया जा रहा है कि सन् 1998 में भारत में 35 लाख एड्स के रोगी थे। 2000 में यह संख्या बढ़कर 38 लाख 6 हजार पहुंच गई। 2001 में 39 लाख 70 हजार हो गई और 2002 में 45 लाख 80 हजार को छूने लगी। और अब? अब तो 51 लाख 6000 का आंकड़ा बताया जा रहा है। दक्षिणी अफ्रीकी देश जो पहले नम्बर पर हैं, उनकी 53 लाख रोगियों की संख्या से बस कुछ ही पीछे। किन्तु भारत के पश्चिमी शुभेच्छुओं को चिंता है कि यदि इस समय विश्व भर के एच.आई.वी. रोगियों में प्रत्येक सातवां रोगी भारतीय है तो 2010 तक भारत में एड्स रोगियों की संख्या में विश्व में नम्बर एक देश हो जायेगा। चलो, ओलम्पिक के मैदान में भारत भले ही कहीं न हो किन्तु एड्स रोग के क्षेत्र में तो वह स्वर्ण पदक का अधिकारी बन ही जायेगा।

ये आंकड़े और आर्थिक सहायता

परन्तु ये आंकड़े उन्हें मिले कहां से? आप चौंकिये मत, ये आंकड़े अमरीका की खुफिया एजेंसी सी.आई.ए. ने इकट्ठे करके अपनी रपट में प्रकाशित किए हैं। 2002 में ही सी.आई.ए. ने भविष्यवाणी कर दी कि 2010 तक भारत में ढाई करोड़ एड्स रोगी हो जाएंगे। कहा जाता है कि सी.आई.ए. के लिए यह रिपोर्ट बिल एवं मिरांडा गेट्स फाउन्डेशन ने तैयार करायी थी। उसके तुरंत बाद 10 नवम्बर, 2002 को बिल गेट्स भारत के दौरे पर आए और उन्होंने एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के लिए 10 करोड़ डालर की आर्थिक सहायता देने की घोषणा करके भारत में खूब वाहवाही लूटी। एड्स की भयावहता का वर्णन करने के लिए हालीवुड अभिनेता रिचर्ड गैरे भारत पधारे। उन्होंने दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों का दौरा करके भारत को एड्स के खतरे के प्रति आगाह किया। तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा ने अमरीकी रपट के आंकड़ों को सत्य से परे बताया। उनके सामने समस्या यह थी कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के अनुसार एड्स रोगियों की अनुमानित संख्या 39 लाख 70 हजार थी लेकिन पंजीकृत रोगी सिर्फ 31 हजार थे।

तभी इस रोग की परीक्षा विधियां के बारे में भी प्रश्न उठा। किसी व्यक्ति के शरीर में एच.आई.वी. के लक्षणों का पता लगाने के लिए दो जांच विधि प्रचलित थीं। एक को एलिसा और दूसरी को वेस्टेन बोल्ट कहा जाता है। क्या ये जांच विधियां अचूक हैं? क्या भविष्य के लिए आंकड़ों का निर्धारण संभव है? कई रोग विशेषज्ञों का कहना था कि ये जांच विधियां अचूक नहीं हैं और वे किसी निरोग को भी रोगी घोषित कर सकती हैं। ऐसे अनेक उदाहरण भारत में ही मिले। हरियाणा के एक बस चालक रणवीर सिंह की मृत्यु तपेदिक से हो गई। उसकी पत्नी कौशल्या उस समय गर्भवती थी। डाक्टरों ने उसे एच.आई.वी. का रोगी घोषित करके उसे गर्भपात के लिए बाध्य कर दिया। किन्तु गर्भपात के बाद पता चला कि उसे एच.आई.वी. का रोग नहीं लगा था। उसने दूसरा विवाह किया। उस विवाह से उसने चौथी कन्या को जन्म दिया जो पूरी तरह स्वस्थ है और अब एच.आई.वी./एड्स के प्रचार में लगे स्वयंसेवी संगठनों के विरोध में जुट गई है।

यहां प्रश्न उठता है कि अमरीका और अन्य समृद्ध देशों का एच.आई.वी./एड्स के उन्मूलन पर ही इतना जोर क्यों है? तपेदिक, मलेरिया, निमोनिया, गठिया, ह्मदयाघात, मधुमेह, आंत्रशोध, कुपोषण जैसे रोग जो बहुत अधिक व्यापक हैं और अधिकांश भारतवासी इन्हीं रोगों की चपेट में हैं, उनके उन्मूलन को वे प्राथमिकता क्यों नहीं देते? 2002 में सोनी संगवान ने हिन्दुस्तान टाइम्स (2-12-2002) में आंकड़े दिये कि एड्स नियंत्रण कार्यक्रम पर पिछले तीन चार वर्षों में लगभग 5000 करोड़ रुपए खर्च हुए जबकि केवल 300 करोड़ रुपए वार्षिक खर्च में प्रत्येक नवजात शिशु को हेपेटाइटिस बी. का टीका लगाया जा सकता है।

बाजार पाने की होड़

सच तो यह है कि पश्चिमी देशों, विशेषकर अमरीका की बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कम्पनियों ने एच.आई.वी./एड्स की बीमारी का एशिया व अफ्रीका के देशों में अधिकाधिक प्रचार करने में अपना निहित स्वार्थ उत्पन्न कर लिया है। वे दवाएं बहुत महंगे मूल्य पर बेचती हैं। उनका पेटेन्ट करा लेती हैं। जबकि वही दवा भारत की सिप्ला एवं रेनबेक्सी जैसी कम्पनियां बहुत कम मूल्य पर देने को तैयार हैं। इनके द्वारा निर्मित दवाओं को प्रख्यात चिकित्सकों एवं शोध संस्थाओं ने प्रामाणिक माना है। अभी 3 जुलाई, 2004 के टाइम्स आफ इंडिया में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार सिप्ला इंडिया द्वारा निर्मित ट्रायोम्यून नामक गोली का परीक्षण कैमरून में एड्स रोगियों पर पूर्णतया सफल सिद्ध हुआ। विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी महंगी दवाइयों को थोक में बेचने के लिए स्वयंसेवी संगठनों द्वारा एड्स की भयावहता और व्यापकता का प्रचार करके सरकारों पर दबाव बनाती हैं। ये कंपनियां भारत के छह राज्यों- आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मणिपुर एवं नागालैंड में खासा व्यापार कर चुकी हैं और अब प. बंगाल व उत्तर भारत के हिन्दी भाषी क्षेत्र को लक्ष्य बना रही है। रक्त में एच.आई.वी. संक्रमण की जांच करने वाली किट ये कंपनियां 4,000 से 40,000 रुपए तक बेचती हैं जबकि भारतीय कंपनियों द्वारा निर्मित किट केवल 50 रुपए में उपलब्ध हो सकती है। राष्ट्रीय सहारा (8 जुलाई, 2004) में प्रकाशित हुआ है कि न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार तंजानिया में एच.आई.वी. वायरस से पीड़ित 1080 गर्भवती महिलाओं को पांच साल तक प्रतिदिन मल्टी विटामिन गोलियां खिलाने से एड्स के वायरस एच.आई.वी. का प्रभाव पचास फीसदी तक कम पाया गया। नेचर पत्रिका ने छापा कि विकासशील देशों में महंगी दवाइयों के बजाय प्रारंभिक अवस्था से मल्टी विटामिन गोलियों से ही काम चल सकता है। किन्तु बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनियां अपनी महंगी दवाइयां थोपने को आतुर हैं।

बाजार पाने की होड़ ने फ्रांस और अमरीका के बीच भारी मतभेद पैदा कर दिया है जिसका प्रगटीकरण अभी थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में 11 से 16 जुलाई तक आयोजित पन्द्रहवें एड्स नियंत्रण विश्व सम्मेलन में हुआ। फ्रांस के राष्ट्रपति शिराक ने अपने संदेश में अमरीका की बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनियों पर विकासशील देशों को ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया। उन्होंने तपेदिक एवं मलेरिया जैसी महामारियों के उन्मूलन को प्राथमिकता देने का आग्रह किया। 2002 से विश्व व्यापार संगठन के जैविक एवं बौद्धिक संपदा सम्बंधी प्रावधान लागू हो जाने पर तो विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार को तोड़ना असंभव हो जायेगा। इसी सम्मेलन में अफ्रीकी देश युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसवेनी ने कहा कि एड्स बीमारी का प्रमुख कारण अमर्यादित यौनाचार है। अत: उसे रोकने का सफल उपाय है कि मनुष्य अपनी काम वासना पर संयम रखे। पति और पत्नी के बीच एक-दूसरे के प्रति वफादारी हो। गर्भ निरोधक कंडोम का केवल विशेष स्थितियों में ही, वह भी कम से कम प्रयोग हो। युगांडा ने आत्मसंयम एवं पारस्परिक निष्ठा को महत्व देकर ही अपने देश में एड्स नियंत्रण में भारी सफलता प्राप्त की है। एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की सफलता में युगांडा इस समय सभी अफ्रीकी देशों से आगे निकल गया है। युगांडा के इस प्रयोग की सफलता से प्रोत्साहित होकर अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने भी उनके मार्ग को अपनाने का निश्चय किया है। राष्ट्रपति की एड्स निराकरण आपातकालीन योजना शीर्षक से 100 पृष्ठों का एक दस्तावेज तैयार कराया गया है जिसमें ए.बी.सी. कार्यक्रम पर आग्रह किया गया। इसमें ए का अर्थ है एब्स्टीनेंस (यौनाचार से परहेज), बी का अर्थ है “बीर्इंग फेथफुल” (परस्पर विश्वास की भावना), और सी का अर्थ है “कंडोम”। परंतु एड्स के नाम पर बने संगठन इस कार्यक्रम का जमकर विरोध कर रहे थे। उनका पूरा जोर कंडोम का प्रचार करने पर है। कंडोम के प्रचार का अर्थ है किशोरों को स्वच्छन्द यौनाचार के रास्ते पर धकेलना। विवाह जैसी पवित्र संस्था को समाप्त करना।

विदेशी धन से पोषित स्वयंसेवी संस्थाएं कंडोम का प्रचार करने में जुट गई हैं। भारत में पिछले स्वास्थ्य मंत्रियों- शत्रुघ्न सिन्हा और सुषमा स्वराज ने पश्चिम के इस कुचक्र को समझकर उसका विरोध किया और यौनाचार को बढ़ावा देने के बजाय आत्म संयम और इन्द्रिय जय के सनातन भारतीय आदर्श को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का आग्रह किया। भारत में आन्ध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्र बाबू नायडू ने एड्स नियंत्रण कार्यक्रम में अत्यधिक रुचि ली।

वीभत्स और हास्यास्पद

यह अभियान कितना वीभत्स और हास्यास्पद स्थिति तक पहुंच गया है, इसका एक रोचक वर्णन 1 जुलाई, 2004 के राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित हुआ। इसे उसी के शब्दों में पढ़ना उचित रहेगा।

नई दिल्ली 30 जून।

“”…और मेजबान के आह्वान से पढ़े-लिखों की सभा सन्न रह गई। झिझक, हिचकिचाहट, शर्म… हर तरह की बेड़ियां उनके पांवों में आ बंधी। बात भी वाकई कुछ ऐसी ही थी। केन्द्रीय स्वास्थ्यमंत्री डा. अम्बूमणि रामदास “कंडोम: यही है सही” अभियान की शुरुआत के लिए आज यहां एक पांच सितारा होटल में मौजूद थे और वहां उपस्थित थे मीडिया के अलावा कई सरकारी और गैरसरकारी संगठनों, उद्योग क्षेत्र के हर उम्र के स्त्री-पुरुष। और उसी दौरान आयोजकों में से किसी व्यक्ति ने ऐलान किया-“मेज पर विभिन्न प्रकार के कंडोम रखे हैं। आप उठा सकते हैं।”

“”सब एकर-दूसरे का मुंह देखने लगे। मेज पर गोया कंडोम नहीं बल्कि समाज की तमाम रूढ़ियों को डंसने वाले नाग रखे हों। जिन्हें कोई छूने को तैयार नहीं था। और ऐसे में एक युवती आगे बढ़ी। उसने बिना हिचक मेज पर पड़े कंडोम के तीन-चार पैकेट उठाये और अपने पर्स में रख लिये। उस युवती की हिम्मत से प्रेरणा लेकर दो-तीन और महिलायें मेज की ओर बढ़ीं। झिझक चकनाचूर हो गयी थी और “यही है सही” अभियान अपने नन्हे-नन्हे कदम हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ रहा था।””

यदि ऐसे वातावरण में दिल्ली की पाश कालोनियों में आयेदिन कार्ल गल्र्स अड्डे पकड़े जाने के समाचार आयें तो क्या आश्चर्य। कैसी विडम्बना है कि एक ओर इन्टरनेट फिल्मों व उत्तेजक विज्ञापनों के द्वारा समाज को स्वच्छन्द यौनाचार के रास्ते पर धकेला जाए, दूसरी ओर एड्स नियंत्रण के नाम पर आत्मसंयम के सनातन आदर्श को नैतिकता नहीं विज्ञान का नारा देकर ठुकराया… जाय। यह तो कामाग्नि में घी डालने के समान आत्मघाती उपाय है।

(23-7-2004)

38

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies