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विदेशों में भारत का

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Dec 1, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Dec 2003 00:00:00

आर्थिक आधार भी हैं ये भारतवंशी–जगदीश चन्द्र शर्मासचिव, प्रवासी भारतीय विभाग, विदेश मंत्रालय तथा भारतवंशियों पर बनी उच्च स्तरीय समिति के सदस्य सचिवभारतवंशियों पर बनी उच्चस्तरीय समिति के सदस्य सचिव के रूप में इस सम्मेलन की योजना को साकार रूप देने में श्री जगदीश चन्द्र शर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सम्मेलन के मूल उद्देश्य, रूपरेखा, योजनाओं और कार्यक्रम के बारे में पाञ्चजन्य ने श्री शर्मा से बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उस बातचीत के मुख्य अंश-भारतवंशियों के इस सम्मेलन की पृष्ठभूमि में मूल संकल्पना क्या है?दुनियाभर में बसे भारतवंशी एक छत के नीचे इकट्ठे हों, उनमें आपस में सामूहिक भावना जागे, आपस में विचार-विमर्श हो, इसी मूल संकल्पना को लेकर इतिहास में पहली बार ऐसा सम्मेलन हो रहा है। भारत सरकार की ओर से यह पहला प्रयास है, जिसे वह भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (फिक्की) के सहयोग से साकार रूप देने जा रही है। इसमें साठ देशों से लगभग 1500 से अधिक भारतवंशियों के शामिल होने की संभावना है। इस सम्मेलन में विदेशों में बसे भारतवंशियों के अलावा भारत के विभिन्न संस्थानों के लगभग 700 प्रतिनिधियों के शामिल होने की भी संभावना है। अधिकांश का पंजीकरण भी हो चुका है।भारत के मुख्यत: किन क्षेत्रों से लोग इसमें शामिल होंगे?मुख्य रूप से व्यवसाय के क्षेत्र से। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य यह है कि भारतीयों से उनका सम्पर्क बढ़े। व्यापार की दृष्टि से विभिन्न व्यवसाय क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का शामिल होना लाभप्रद सिद्ध होगा। इसके अलावा संसद सदस्य, भारत सरकार के उच्च अधिकारी भी शामिल होंगे। सबके लिए पंजीकरण शुल्क है, भारतीयों के लिए 10,000 रुपए। छात्रों के लिए आधा शुल्क है। चूंकि इस आयोजन पर खर्चा बहुत ज्यादा आ रहा है, इसलिए हमारी कोशिश है कि भारत के करदाता पर इसका बोझ न पड़े।कुल कितना खर्चा आने का अनुमान है?दृ सरकार इस पर पांच करोड़ रुपया खर्च कर रही है। हम फिक्की को इसके आयोजन के लिए अनुदान दे रहे हैं। कुल दस करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। सरकार इस सम्मेलन के कुल खर्च का 50 प्रतिशत खर्च करेगी। इस पर प्रश्न उठाया जा रहा है आखिर इतना खर्च करके हासिल क्या होगा? इससे हमारे व्यावसायिक सम्बंध बढ़ेंगे। भारत में पूंजीनिवेश करने वाले भारतीय मूल के बड़े-बड़े लोग इस सम्मेलन में आ रहे हैं। इससे निश्चित रूप में भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि होगी। पचास देशों के व्यापारिक घरानों से सम्पर्क के लिए अगर किसी को अपने प्रतिनिधि भेजने पड़ें, तो सोचिए कितना खर्च होगा। यहां एक ही छत नीचे उनकी सबसे मुलाकात हो जाएगी। भारतीय मूल के लोग विदेशों में हमारे लिए बहुत बड़ा बाजार स्थापित करते हैं। विदेशों में भारत का बासमती चावल आखिर कैसे लोकप्रिय हुआ। भारतीय मूल के लोग बासमती चावल खाते हैं, उसकी खुशबू से और लोग भी आकर्षित हुए और माना जाने लगा कि वि·श्व में सबसे अच्छा चावल भारत का बासमती चावल ही है। और विदेशों में भारत के बासमती चावल की मांग बढ़ी। लंदन में भारत से आम और खाड़ी देशों में सब्जियां जाती हैं। इसीलिए क्योंकि हमारे लोग वहां बसे हैं। एक तो ये भारतवंशी खुद में एक बड़ा बाजार हैं, दूसरा उनके माध्यम से उस देश के लोगों को भारतीय वस्तुओं की जानकारी मिलती है।इस सम्मेलन की गतिविधियां विदेशों में भी लोग देख सकें, क्या इसके लिए कोई विशेष व्यवस्था है?दृ बीस देशों में लोग इस आयोजन को टेलीविजन पर सीधा देखेंगे। इससे भारत के बारे में लोगों को जानकारी होगी। यहां आकर भारतवंशी देख पाएंगे कि अब भारत वैसा नहीं रहा, जैसा वे या उनके दादा-परदादा छोड़ गए थे। इसने बहुत प्रगति कर ली है। वह प्रगति के पथ पर अग्रसर है। भारत के लोगों को भी पता चलेगा कि अपने देश के लोग विदेशों में इतने ऊंचे पदों पर है। प्रमुख हस्तियों में उनकी गणना होती है, किस प्रकार वे आज भी भारतीय संस्कृति को संजोये हुए हैं।क्या कभी इस प्रकार भारतवंशियों का भारत में या भारत से बाहर मिलना-जुलना हुआ? भारत से उनके रिश्तों की किस प्रकार व्याख्या करेंगे?दृ जैसे एक गाड़ी का पहिया होता है, उसके बीचों-बीच एक धुरी है, जिससे बाकी तीलियां जुड़ी हुई हैं। तो बस भारत एक धुरी है और भारतवंशी मजबूत तीलियां। सब एक धुरी से मजबूती से जुड़े रहें, हमारा यही प्रयास है। और हमारे इस प्रयास से लोग बहुत उत्साहित हैं। मारीशस के प्रधानमंत्री अपने छह मंत्रियों के साथ आ रहे हैं। सौ से अधिक लोग मारीशस से आ रहे हैं। तीन सौ से अधिक लोग अमरीका से आ रहे हैं। दुनिया का कोई कोना ऐसा नहीं बचा जहां से भारतवंशी इस सम्मेलन में न आ रहे हों। हर महाद्वीप से लोग आ रहे हैं। कनाडा, लैटिन अमरीका, कैरेबियाई देशों में त्रिनिदाद, टैबोगो से भारतवंशी आ रहे हैं। और वहीं फ्रांस के दो छोटे-छोटे उपनिवेश हैं, ग्वाडालूप और मार्टिनिक, पहली बार वहां से लोग आ रहे हैं। उनमें एक सांसद हैं और एक महापौर। इंग्लैण्ड, जर्मनी, पुर्तगाल और खाड़ी देशों से 100 के लगभग, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाव्वे, नाइजीरिया, युगांडा- सब जगह से भारतवंशी सम्मेलन में भाग लेने आ रहे हैं।क्या इस सम्मेलन से पूर्व भारतवंशियों को जोड़ने का ऐसा कोई प्रयास हुआ?स्वयंसेवी संस्थाओं, जैसे अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद्, गोपियो ने इस सम्बंध में प्रयास किए और कुछ हद तक सफलता भी पायी, लेकिन सरकारी स्तर पर यह पहला प्रयास है।15

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