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दोनों चलें!पर निर्णायक कसौटी तो आतंकवाद का खात्मा औरकश्मीरी हिन्दुओं की निर्भय घाटी वापसी ही मानी जाएगी।–विशेष प्रतिनिधिजम्मू कश्मीर में जहां एक ओर शान्ति वार्ता की कोशिशें चल रही हैं, वहीं दूसरी ओर आतंकवादियों की घुसपैठ और गतिविधियां रोकने के लिए सेना की कार्रवाई भी जोर पकड़ रही है। गत 20, 21 और 22 अप्रैल को सेना ने इसमें अच्छी सफलता भी प्राप्त की। इन तीन दिनों में उसने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सीमा से लगे पुंछ और राजौरी क्षेत्रों में 33 से अधिक आतंकवादी मार गिराए। इनमें ग्यारह आतंकवादी कृष्णा घाटी क्षेत्र में मारे गए। एक अन्य मुठभेड़ में राजौरी जिले में सेना के साथ लश्कर-ए-तोएबा के चार आतंकवादी मारे गए। मारे गए आतंकवादियों में 23 विदेशी आतंकवादी हैं। इनमें से अधिकांश पाकिस्तानी या अफगानी हैं। इनके पास से भारी मात्रा में हथियार, विस्फोटक पदार्थ और अफगानी मुद्रा मिली हैं जो उनके अफगानी होने की ओर ईशारा करती हैं। सूत्रों के अनुसार सुरक्षा बलों और पुलिस द्वारा पुंछ और राजौरी में एक अभियान में मारे गए आतंकवादियों की यह सबसे बड़ी संख्या है।आतंकवाद के विरुद्ध ऐसी ठोस कार्रवाइयों के साथ भारत ने पाकिस्तान से सशर्त वार्ता का भी प्रस्ताव किया है। गत 18 अप्रैल को श्रीनगर में प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी ने पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कहा कि यदि पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद और घुसपैठ को बंद करता है तो वार्ता की जा सकती है। इसके उत्तर में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री मो. जफरुल्लाह खान जमाली ने उन्हें पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया। साथ ही पाकिस्तान ने वार्ता की पहल के लिए दोनों देशों के बीच पुन: क्रिकेट खेल प्रारंभ किए जाने का भी प्रस्ताव किया। परंतु श्री वाजपेयी ने अपनी नीति स्पष्ट करते हुए पुन: कहा है कि पाकिस्तान सीमापार से आतंकवाद को रोके तभी वार्ता होगी, इससे पूर्व पाकिस्तान जाने पर विचार नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कश्मीर सरकार की मलहम लगाने की नीति ठीक है लेकिन घाटी को अशान्त करने वालों को छोड़ा भी नहीं जाएगा। उल्लेखनीय है कि गत 16 वर्षों में यह पहली बार है जब किसी प्रधानमंत्री ने घाटी में जनसभा को सम्बोधित किया है।17
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