संदर्भ - 8 मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
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संदर्भ – 8 मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

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Sep 3, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Sep 2003 00:00:00

कन्या भ्रूण-हत्या राष्ट्रघाती कार्य है

बड़े जोर-शोर से दुनियाभर में 8 मार्च का दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन महिला दिवस मना लेने से न महिलाओं की स्थिति में तनिक भी सुधार आता है, न ही उनके प्रति अपराधों के आंकड़े में कोई कमी आती हैं। बस आठ-दस योजनाओं की घोषणाएं होती है और रस्म पूरी हो जाती है। समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं। राष्ट्र सेविका समिति किस ढंग से महिला समस्याओं को सुलझाने के लिए कार्य कर रही है, उसके लक्ष्य और योजनाएं क्या हैं? ऐसे ही कुछ प्रश्नों पर पाञ्चजन्य ने राष्ट्र सेविका समिति की सह प्रमुखसंचालिका पद पर हाल ही में चुनी गयीं श्रीमती प्रमिला ताई मेढ़े से चर्चा की। यहां प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश-

द विनीता गुप्ता

आप राष्ट्र सेविका समिति के सम्पर्क में कैसे आईं?

वंदनीया मौसी जी (राष्ट्र सेविका समिति की आद्य संचालिका लक्ष्मी बाई केलकर) और हमारे परिवार के बीच बहुत स्नेहपूर्ण संबंध थे। वंदनीया मौसी जी के प्रभाव के कारण। 9-10 साल की उम्र से ही मैं समिति में जाने लगी थी। मौसी जी का व्यवहार, उनका स्नेह बहुत आकर्षित करता था।

राष्ट्र सेविका समिति के कार्य को आपने चरणबद्ध रूप से बढ़ते हुए देखा है? आप आज जब पीछे मुड़कर देखती हैं, तो इस यात्रा में समिति को अब कहां खड़ा पाती हैं?

समय-समय पर मुद्दे बदलते रहे हैं। शुरू-शुरू में शाखाओं की स्थापना पर जोर दिया जाता था। धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों में भी समिति कार्य करने लगी। प्राकृतिक आपदाओं या राष्ट्रीय आपदाओं के समय समिति ने सेवा कार्यों में योगदान किया।

समिति का लक्ष्य है, महिलाओं में राष्ट्रीय भावनाओं का निर्माण करना, उन्हें जागरूक करना। हमारी पद्धति किसी प्रकार की तड़क-भड़क और प्रचार या कोरे हंगामे वाले आंदोलन की नहीं रही है। हम खामोश रहकर कार्य करते रहते हैं। समिति के अनेक सेवाकार्य हैं, समिति निर्धन और वनवासी क्षेत्र की बालिकाओं के लिए छात्रावास चलाती है। इन छात्रावासों में रहने वाली छात्राओं में जागरूकता आयी है, उन्होंने मतान्तरण के विरुद्ध अभियान में सक्रिय भूमिका भी निभायी है।

समाज में दहेज, कन्या भ्रूण हत्या जैसी अनेक कुरीतियां हैं। क्या समिति ने इनके विरुद्ध कोई अभियान चलाया है?

दृ ऐसा कोई राष्ट्रव्यापी अभियान तो नहीं चलाया, लेकिन अपनी शाखाओं और सेविकाओं के बीच ये प्रश्न हमने रखे हैं। हमारी कई सेविकाओं ने दहेज के विरुद्ध कदम उठाते हुए बिना दहेज विवाह का प्रण किया। हमें अपना मन मजबूत करना होगा। समझना होगा कि आखिर लड़के की मां भी हम हैं और लड़की की मां भी हम हैं। समिति के कार्यों से समाज में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है। जहसं तक अभियान की बात है तो मुझे नहीं लगता कि किसी अभियान से कोई परिवर्तन आएगा। इतने सारे अभियान शुरू होते हैं, लेकिन उनका परिणाम क्या होता है? अभियान क्षणिक एवं तात्कालिक उपाय हो सकता है, उससे लोगों तक मुद्दा पहुंचता अवश्य है, लेकिन उससे क्या कुछ हासिल हो पाता है, यह विचारणीय प्रश्न है।

क्या आपको नहीं लगता कि महिलाओं की समस्याएं तब तक नहीं सुलझेंगी, जब तक पुरुष उन पर नहीं सोचेंगे?

दृ महिलाओं की समस्याएं सिर्फ महिलाओं की समस्याएं नहीं हैं। जिस प्रकार महिला समाज की घटक है, उसी प्रकार पुरुष भी एक घटक है। अब दहेज की समस्या को ही लें, यह केवल युवतियों की ही समस्या नहीं युवकों की भी है। दहेज लेने वाले के मन में युवती के मन में कभी भी सम्मान का भाव नहीं आता और अंतत: पारिवारिक वातावरण प्रभावित होता है। समाज की इन समस्याओं को स्त्री-विरोधी या पुरुष-विरोधी मानसिकता से नहीं सुलझाया जा सकता। स्त्री की समस्या से सिर्फ स्त्री ही नहीं अपितु सम्पूर्ण सामाजिक जीवन उससे प्रभावित होता है।

थ् पिछले दिनों महिलाओं से छेड़खानी, बलात्कार आदि घटनाओं में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है। ऐसी घटनाएं रोकी जा सकें, इसके लिए क्या समिति ने कोई प्रयास किया है?

दृ अभी पांडिचेरी में समिति की बैठक हुई थी जिसमें इस विषय पर एक प्रस्ताव पारित हुआ। यदि हम इन घटनाओं के आंकड़ें देखें तो पाते हैं कि इनमें पीड़ित हिन्दू महिलाओं की संख्या ही ज्यादा है। अन्य मत-पंथों की महिलाएं अपवाद स्वरूप हैं। इससे पता चलता है कि हिन्दू इतना दुर्बल है कि अपने समाज की महिला का अपमान होते देखता रहता है। स्त्री का अपमान, समाज का अपमान है, यह भावना अब मरती जा रही है। सब ठंडे मन से इन चीजों को देखते-सुनते रहते हैं। सबको जागना होगा। महिलाओं को शारीरिक प्रशिक्षण देना और उन्हें मानसिक रूप से ऐसी किसी भी परिस्थिति का सामना करने की क्षमता पैदा करना उपयोगी होगा।

थ् कई बार तो इस तरह की घटनाओं के लिए स्वयं लड़कियों को ही दोषी ठहराया जाता है।

दृ कुछ मामलों में लड़कियां खुद ऐसी घटनाओं को आमंत्रित करती हैं, लेकिन हर जगह ऐसा नहीं है। समस्या यह है कि हमारे घरों में ही संवादहीनता की स्थिति है। उनके सामने आदर्श है तो फिल्म अभिनेत्र और विज्ञापन करने वाली माडल। आकाशीय चैनलों के हमले का प्रभाव भयानक है। सड़क पर लड़की सुरक्षित नहीं है, यह सोचकर हम लड़कियों का बाहर आना-जाना बंद कर दें, यह समस्या का समाधान नहीं है। यह तो उसकी क्षमता को कुद करने वाली बात होगी। कन्या भ्रूण हत्या का मामला भी इससे जुड़ा हुआ है। जब कन्याओं की संख्या कम होगी तो इस प्रकार की घटनाएं ज्यादा बढ़ेंगी और लड़कियां ज्यादा असुरक्षित हो जाएंगी। हिन्दू कन्याओं की संख्या कम होना हिन्दू समाज के लिए खतरे का सूचक है। इससे हिन्दू समाज की संख्या कम हो सकती है।

देश में इतने सारे महिला संगठन हैं और उनके आंदोलन हैं। समाज जागरण में उनकी क्या भूमिका है?

दृ स्त्री जीवन के बारे में ऐसे संगठनों की धारणा एकदम अलग है। वहां पुरुष-विरुद्ध मानसिकता प्रधान है। लेकिन यह सोच गलत है। इससे परिवार विखंडित होते हैं। हिन्दू परिवार-व्यवस्था को बचाना है तो परिवार केन्द्रित भारतीय संस्कृति बचानी होगी। न स्त्री अलग होकर समाज खड़ा कर सकती है, न पुरुष अकेला समाज रचना कर सकता है। दोनों मिलकर चलेंगे, तभी समाज बचेगा।

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