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कुछ लेकर-कुछ देकर सीमा विवाद हल हो सकता है
भारत के तिब्बत संबंधी बयान से दलाई लामा कमजोर हुए
-मा जियाली,भारत संबंधी चीन नीति के विशेषज्ञ
चीन के वरिष्ठ और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण समाज विज्ञानी प्रो0 मा जियाली भारत-चीन विशिष्ट व्यक्ति दल के भी सदस्य हैं। भारत चीन संबंधों पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि पड़ोसी देश होने के बावजूद भारत के प्रधानमंत्री का दस साल बाद चीन आना बहुत बड़ी दूरी को दर्शाता है। उन्होंने कहा-
1-शिखर स्तर पर एक-दूसरे के साथ अधिक मिलना-जुलना शुरू होना चाहिए।
2- अभी तक भारत ने चीन के बारे में गोल-मोल ढंग से ही अपनी बातें कहीं। पर अब संयुक्त घोषणापत्र में श्री वाजपेयी ने तिब्बत के बारे में जो स्पष्ट कहा है, वह बहुत बड़ी बात है तथा चीन इस वक्तव्य से बहुत खुश है।
3- पाकिस्तान और चीन के बीच जो अस्थाई संधि हुई है, उसके एक अनुच्छेद में स्पष्ट लिखा हुआ है कि पाकिस्तान ने चीन को जो भूभाग उपहार में दिया है, उसके बारे में आखिरी फैसला वह मान्य होगा जो भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के समाधान के रूप में प्राप्त होगा। इसलिए पाकिस्तान से चीन को मिले भूभाग के संबंध में भारत को विशेष चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। निकट भविष्य में ही सिक्किम के बारे में मान्यता की बात भी चीन तय कर लेगा जो कि भारत के अनुकूल ही होगी। अभी तो व्यापारिक संधि के माध्यम से एक प्रारंभिक यथार्थ मूलक शुरुआत हुई है। वैसे भी चीन सिक्किम के प्रश्न को तिब्बत से भिन्न मानता है। चीन का मानना है कि तिब्बत प्रारंभ से ही चीन का हिस्सा रहा है जबकि सिक्किम का 1975 में ही भारत में विलय हुआ था। इसलिए सिक्किम पर अंतिम निर्णय के लिए उचित वातावरण बनाए जाने की जरूरत है जो श्री वाजपेयी की यात्रा से बना है। वैसे भी आंखें साफ-साफ देख रही हैं कि भारत और चीन के बीच व्यापार संबंध में छांगू को व्यापार चौकी बनाया गया है जो सिक्किम प्रदेश में है। जब चीन छांगू को भारत और चीन के मध्य व्यापार मार्ग के लिए मान्य कर रहा है तो स्पष्ट है कि वह सिक्किम को भारत के हिस्से के रूप में मान रहा है।
जब प्रो0 मा जियाली से पूछा गया कि चीन ने वियतनाम और रूस के साथ जो सीमा विवाद सुलझाए हैं, उनके समय चीन ने कौन-सी नीति अपनाई थी तो उन्होंने ने कहा कि आपसी समझ-बूझ और कुछ ले-देकर, सामंजस्य की नीति ही चीन ने अपनाई। उस नीति के अन्तर्गत वह भारत के साथ भी सीमा विवाद हल करना चाहता है। यह मूलत: तीन सिद्धांतों पर निर्भर है। 1- इतिहास का सम्मान कीजिए। 2- वास्तविक स्थिति का सम्मान कीजिए। 3- जनता की भावना का सम्मान कीजिए।
पाकिस्तान को चीन द्वारा शस्त्र और प्रक्षेपास्त्र दिए जाने के संबंध में अपने शब्दों को सावधानीपूर्वक चुनते हुए प्रो0 मा जियाली ने कहा कि अतीत में पाकिस्तान के साथ जिस प्रकार के संबंध थे, उसकी तुलना में वर्तमान में चीन भारत की संवेदनाओं और चिंताओं के प्रति अधिक संवेदनशील हुआ है। वह भारत के साथ सहयोग- संबंध बढ़ाने के लिए काफी उत्सुक है और पाकिस्तान के बारे में अब वह ऐसी कोई नीति नहीं अपनाना चाहेगा जिससे भारत की संवेदनाओं को चोट पहुंचे। दलाई लामा के बारे में प्रो0 मा जियाली ने कहा कि तिब्बत पर भारत ने जो संयुक्त घोषणापत्र में लिखकर दिया है, उससे चीन के साथ बातचीत में दलाई लामा की लेन-देन की स्थिति कमजोर हो जाएगी।
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