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जम्मू-कश्मीर

by
Jan 6, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Jan 2003 00:00:00

जांस्करवासियों की गुहारहमें मिले बराबरी का दर्जाजम्मू-कश्मीर में कारगिल जिले के अनुमण्डल जांस्कर के लोगों में अपने क्षेत्र के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर गंभीर चिंता व्याप्त है। 50 वर्ष हो गए पर न तो इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास की ओर पर्याप्त ध्यान दिया गया, न ही पर्याप्त राजनीतिक अधिकार दिए गए हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर की मुफ्ती सरकार ने कारगिल के लिए स्वायत्तशासी पर्वतीय विकास परिषद् का दर्जा मंजूर किया है। परन्तु इस परिषद् में पार्षदों के निर्धारण में कहीं कोई खामी रह गई है। इसी चिंता को प्रकट करने के लिए पिछले दिनों लामा छोस्पेल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमण्डल ने मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद, उप मुख्यमंत्री मंगत राम शर्मा, विधि, योजना और लद्दाख मामलों के मंत्री मुजफ्फर बेग, मुख्य सचिव डा. एस.एस. बालोरिया, लद्दाख मामलों के मुख्य सचिव विजय बकाया से भेंट की। जांस्कर के प्रतिनिधियों ने उनसे परिषद् में पार्षदों को सीट वितरण में जांस्कर अनुमण्डल की आवश्यकताओं पर गौर करने का अनुरोध किया।जानकारी के अनुसार कारगिल जिला प्रशासन ने जांस्कर अनुमण्डल के लिए 3 पार्षदों की अनुशंसा की है और इसके पीछे आबादी को आधार बनाया गया है जबकि क्षेत्र के पिछड़ेपन, क्षेत्रफल, भौगोलिकता व अन्य पहलुओं पर गौर नहीं किया गया है। उल्लेखनीय है कि लेह में लद्दाख स्वायत्तशासी पर्वतीय विकास परिषद् के गठन के समय सभी बिन्दुओं पर विचार किया गया था। उदाहरण के लिए चूंकि लेह शहर विकसित है और मात्र 27,000 की आबादी है पर उसके लिए 2 पार्षद नियत किए गए। लेकिन मरखा, वानला और कोरजोक घाटियों, जिनकी आबादी क्रमश: 750, 850 और 1500 है, को अलग क्षेत्र माना गया और 10,000 आबादी वाली नूब्रा घाटी को 5 सीटें दी गईं। हालांकि नूब्राा घाटी लेह जिले के अंतर्गत ही आती है और जिला मुख्यालय लेह से सड़क मार्ग से मात्र 3 घंटे की दूरी पर है।जांस्कर बौद्ध संघ के अध्यक्ष श्री सोनम नामग्याल अपनी मांगों के समर्थन में 6 बिन्दु गिनाते हैं- (1) कारगिल जिले के निर्माण के समय से ही यहां दो तहसीलें, कारगिल और जांस्कर, रही हैं और इस समय जांस्कर कारगिल जिले का एकमात्र अनुमण्डल है। अत: इसे बराबर का प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। (2) पूरे कारगिल जिले में जांस्कर घाटी 60 प्रतिशत भूमि में फैली है और वहां, जिले में प्रमुख अल्पसंख्यक समुदाय माने जाने वाले बौद्ध ही अधिकांशत: रहते हैं। (3) जांस्कर घाटी सांस्कृतिक, सामाजिक दृष्टि से बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय से एकदम अलग है। (4) जांस्कर अनुमण्डल भौगोलिक रूप से अलग-थलग है जहां पर्वतों, पहाड़ियों की बहुतायत है, जो साल में 7-8 महीने देश से कटा रहता है। (5) यह क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा है। (6) शीघ्र ही कारगिल जिला स्वायत्तशासी पर्वतीय विकास परिषद का गठन होने जा रहा है, अत: जांस्कर के लोगों को इसमें बराबरी का प्रतिनिधित्व मिलना ही चाहिए।जांस्कर के विभिन्न क्षेत्रों की परिस्थिति के अनुसार जांस्कर बौद्ध संघ ने पार्षदों की जो संख्या सुझाई है, वह इस प्रकार है-स्तोत, शाम, जंखोर, चांग्यनोस में एक-एक पार्षद; लुंग्नाक और पादुम मुख्यालय, जिसमें शिला पिपछा और सानी से अक्शा, क्षेत्र तक शामिल हैं, के लिए दो-दो पार्षद; पिछड़े वर्ग और बौद्ध अल्पसंख्यकों के लिए एक-एक पार्षद। श्री नामग्याल कहते हैं कि जांस्कार की भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विशिष्टता को देखते हुए इस अनुमण्डल के लिए कम से कम 10 सीटें निर्धारित की जानी चाहिए। श्री नामग्याल के अलावा जनप्रतिनिधि श्री स्टेनजिन जिगमेट, जांस्कर बौद्ध संघ के सक्रिय कार्यकर्ता श्री स्टेनजिन वांग्चुक और लद्दाख छात्र संघ के अध्यक्ष श्री स्टेनजिन छोस्ताक ने भी जांस्कर बौद्ध संघ की चिंताओं पर तुरन्त गौर किए जाने की मांग की है।11

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