पाञ्चजन्य

Published by
Archive Manager

दिंनाक: 01 Jun 2002 00:00:00

50 वर्ष पहले थ् वर्ष 7, अंक 23 थ् पौष कृष्ण 8, सं. 2010 वि., 28 दिसम्बर,1953 थ् मूल्य 3 आनेथ् सम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्रथ् प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊक्या पं. नेहरू कम्युनिस्ट हो रहे हैं?(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)नई दिल्ली। क्या पं. नेहरू कम्युनिस्ट बन रहे हैं! यह एक ऐसी चर्चा है जो इस समय राजधानी के अनेक क्षेत्रों में सुनाई देती है। और इसका कारण है पाकिस्तान- अमरीकी सैनिक संधि के प्रस्तावित समाचारों पर पं. नेहरू की प्रतिक्रिया और उनकी अब तक की तटस्थता की नीति में परिवर्तन का आभास। गत रविवार को प्रस्तावित पाकिस्तान-अमरीका सैनिक संधि के विरुद्ध कांग्रेस महासमिति के आदेशानुसार दिल्ली में जो प्रदर्शन कराया गया, वह भी इसका प्रतीक है। कांग्रेस महासमिति ने यह आदेश गुप्त रूप से दिया था। शायद उसका यह विचार था कि इस विरोधी आंदोलन के साथ प्रकट रूप से कांग्रेस कोई सहयोग न दे पर अधीन कांग्रेस कमेटियां आदेश को गुप्त न रख सकीं और फिर कांग्रेस को ही खुलकर सामने आना पड़ा।राष्ट्रभाषा हिन्दी के विरुद्ध षड्यंत्रवि·श्वस्त सूत्र से प्राप्त समाचार के अनुसार हिन्दी को राष्ट्रभाषा पद से उतारने का षड्यंत्र हो रहा है और यह उन्हीं लोगों के द्वारा जिन्होंने अपनी शक्ति भर सतत् हिन्दी का विरोध किया था पर अंत में जनमत की आवाज के सामने उन्हें झुकना पड़ा। पता चला है कि शिक्षा मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव श्री हुमायूं कबीर ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री रविशंकर शुक्ल को हाल ही में जो एक पत्र लिखा है उससे इस षड्यंत्र की कलई खुल गई है।राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे मेंभारत की नवार्जित स्वतंत्रता के लिए कुछ गंभीर खतरे दिखाई दे रहे हैं। एक ओर पाकिस्तान-अमरीकी सैनिक गठबंधन तथा पाकिस्तान में अमरीकी सैनिक अड्डों की आशंका से जहां हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को भीषण संकट पैदा हो रहा है, वहीं दूसरी ओर गोवा में पुर्तगाली साम्राज्यवादी भी सहस्रों सैनिक भेजकर हमारी स्वतंत्रता को चुनौती दे रहे हैं। परन्तु संतोष यही है कि इन खतरों की गंभीरता की ओर भारत सरकार तथा भारतीय जनता दोनों का ध्यान गया है। यद्यपि उनके निवारणार्थ कोई ठोस योजना तथा कार्रवाई अभी हमारे सामने नहीं आयी है।किन्तु हम एक ऐसे महाभीषण खतरे की ओर इन पंक्तियों द्वारा जनता तथा सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, जिसकी एक प्रकार से अब तक अक्षम्य उपेक्षा ही की गई है। यह खतरा है भारत की उत्तरी सीमा पर माओ-मालेन्कोव, साम्राज्यवाद से। तिब्बत जब से माओ-साम्राज्य का अंग बना लिया गया है तबसे भारत की उत्तरी सीमा पर विशेष रूप से संकट उत्पन्न हो गया है।यह बड़ी विचित्र बात है कि एक ओर नेहरू सरकार चीन के साथ मैत्री की चर्चाएं करती है और उससे सद्भावना-मण्डलों का आदान-प्रदान करती है तो दूसरी ओर उसकी साम्राज्यवादी योजनाओं को जानते-समझते हुए भी उनका खुलकर विरोध नहीं करती। यह नीति तो कालान्तर में आत्मघातक ही सिद्ध हो सकती है।नेहरू सरकार को चाहिए कि जिस प्रकार आज वह पाकिस्तान-अमरीकी गठबन्धन का सार्वजनिक विरोध कर रही है और उसके विरुद्ध प्रबल जनमत जाग्रत कर रही है, उसी प्रकार साम्राज्यवादी माओ-मालेन्कोव गठबंधन का भी वह खुलकर भंडाफोड़ करे। (सम्पादकीय)मलाबार में लीगी गुण्डों द्वारा संघ की शाखा पर आक्रमण(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)मलाबार से प्राप्त समाचार के अनुसार गत सप्ताह वहां के मुस्लिम लीगियों ने पट्टाभी नगर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक शाखा पर अचानक आक्रमण कर दिया। आक्रमण के पश्चात् उभय पक्ष में कुछ देर तक काफी संघर्ष हुआ जिसके परिणामस्वरूप अनेक लीगी गुण्डों को अच्छी शिक्षा मिली। इसमें कई लोग घायल भी हुए। पुलिस ने तुरन्त घटनास्थल पर पहुंचकर स्थिति पर काबू कर लिया। संघर्ष के तुरन्त पश्चात् पट्टाभी नगर में धारा 144 लगा दी गई। अभी तक 18 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए हैं, जिनमें दस मुस्लिम लीगी हैं।13

Share
Leave a Comment
Published by
Archive Manager