|
नागिन का बदलाबात अंग्रेजों के समय की है। अफगान मीर गुल काबुल से अपने व्यापार के सिलसिले में दिल्ली आया। वह पहाड़गंज में ठहरा था। एक दिन मुहल्ले की एक गली में शोर मचा कि एक मकान के सामने नागों का एक जोड़ा बैठा है। उसे देखने भीड़ लग गई थी। मीर गुल ने सुना तो वह भी अपना मोटा सा डंडा लिए वहां आ गया। उसने आव देखा न ताव नाग के जोड़े पर डंडा चला दिया, जिसके वार से नाग तो वहीं मर गया, पर नागिन भाग गई। मरे हुए नाग को दूर एक चट्टान पर फेंक दिया गया। उसी रात कई लोगों ने देखा, एक नागिन मरे हुए नाग के पास है और शायद रो रही है। लोगों की आहट पाकर नागिन वहां से सरक कर पेड़ों में छिप गई। मीर गुल दिल्ली में महीना भर रहा- फिर एक दिन वह आगरा जाने के लिए रेल में सवार हुआ। रास्ते में मीर गुल दीर्घशंका निवारण के लिए रेल के शौचालय में गया, लेकिन बहुत देर होने पर भी वह उसमें से बाहर न निकला। हां, कई यात्रियों ने शौचालय के भीतर किसी की चीख सुनी थी। शौचालय का दरवाजा तोड़कर तभी खोला जा सका, जब अगले स्टेशन पर रेल रूकी। तब देखा कि मीर गुल वहीं गिरा पड़ा था और उसका पूरा शरीर नीला-काला पड़ गया था- एक पांव से कुछ खून भी रिस रहा था। वह मर चुका था। जानकार लोगों ने कहा कि इसे किसी बड़े भयंकर काले सांप ने काटा है। बात सच थी। असल में दिल्ली के पहाड़गंज में जिस नाग को मीर गुल ने मारा था- उसकी नागिन ने एक महीना बाद मीर गुल का पीछा करते हुए रेल के शौचालय में उसे डस लिया था और फिर फर्श में बने छेद से नीचे छलांग लगा दी थी। वह कब स्टेशन तक पीछा करके रेल में कहां से घुसी-यह मीर गुल जान न पाया और उसके डसने के तुरन्त बाद ही मर गया। लोगों ने कहा, नाग-नागिन अपने दुश्मन से बदला लेना कभी नहीं भूलते। यह घटना अखबारों में भी छपी थी। इस घटना के बाद वह नागिन फिर कभी दिखाई नहीं दी।- मानस त्रिपाठी14
टिप्पणियाँ