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यही वक्त है सही वक्त
रक्त में कलम डुबोकर लिखने का
अपने समग्र अस्तित्व
और अस्मिता के साथ दिखने का!
क्रान्ति आगे चलती है बेशक
लेकिन लेखनी की नोक उसका पाथेय है
करुणा/केवल मार्गदर्शक करुणा
आज मेरे कवि का गेय है।
यही वक्त है
जब रक्त-वमन करते लोगों की आंखों में
भविष्य केवल मृत्युमात्र रह जाता है
यही वक्त है:
जब कुछ न करने का बहाना लेकर
देश का नागरिक-
इतिहास में उपहास का पात्र बन जाता है!
लड़खड़ाता है शिल्प,
तेज मुहावरे, तीखे तेवर:
सही वक्त पर सन्नद्ध हों, तो-
तो बच सकता है डूबता जहाज।
जहाज को बचाओ-
कि समन्दर में नाचती अनगिन लहरें,
पेंच खाते भंवर
क्षितिज पर छायी कालिमा सांझ की:
सब तुम्हारा बेसब्री से
इन्तजार कर रहे हैं….
जहाज को बचाओ,
कि जमीन पर झूमती जवान फसलें
किलकते बच्चे, बिखरती इंसानियत
परदेश ले जाए जाते मासूम
तुलसी बबूल
उत्तर आधुनिकता के मायावी जाल
भूमंडलीकरण के नाम पर रचे जाते षड्यंत्र
अपनी मुक्ति-हेतु
तुम्हारी बाट देख रहे हैं!
पलायन आत्महत्या है, पाप है
जूझो/बहसों में पहेलियां मत बूझो
यही वक्त है/सही वक्त
जब उफनते रक्त की आवाज में डूबकर
उभरा जाता है
नींव का पहला पत्थर
कर्मठ हाथों धरा जाता है
यह हाथ तुम्हारा हो, मेरा हो
सबका हो? डूबते जहाज को
बचाने के लिए, सन्नद्ध, कृतसंकल्प!!
— डा. देवव्रत जोशी
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