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आख्यान

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Jan 4, 2001, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jan 2001 00:00:00

–नरेन्द्र कोहली शस्त्रागार

महाभारत का कहना है कि द्रौपदी से विवाह के पश्चात् महर्षि नारद के परामर्श पर पांडवों ने यह नियम बनाया था कि द्रौपदी अपने प्रत्येक पति के साथ एक वर्ष रहेगी। उस काल में यदि कोई अन्य भाई, उसे अपने नियत के साथ देख भी लेगा तो वह बारह वर्षों का वनवास करेगा। पहला वर्ष था। वह युधिष्ठिर के साथ सहवास काल था।

एक ब्राह्मण सहायता और न्याय की पुकार करता हुआ, पांडवों के महल में आया। उसका गोधन चोरी हो गया था। चोर उसकी गौएं हांके लिए जा रहे थे। अर्जुन उसकी सहायता के लिए तैयार हो गया। उसका धनुष बाण उस कक्ष में था, जिसमें इस समय द्रौपदी और युधिष्ठिर एक साथ थे। किन्तु वह प्रतीक्षा नहीं कर सकता था। बाध्य होकर अर्जुन उस कक्ष में गया। अपने आयुध लेकर वह ब्राह्मण के साथ चला गया और उसकी गौवें छुड़ा लाया। किन्तु उसने युधिष्ठिर और द्रौपदी को एक कक्ष के एकांत में एक साथ देख लिया था, इसलिए वह बारह वर्षों के वनवास के लिए चला गया। युधिष्ठिर ने उसे बहुतेरा समझाया कि उसने उनका एकांत भंग नहीं किया था। युधिष्ठिर ने किसी प्रकार की असुविधा का अनुभव नहीं किया था, इसलिए उसका वनवास एकदम आवश्यक नहीं था। किन्तु फिर भी अर्जुन वनवास के लिए चला गया।

इस प्रसंग को लेकर मेरे मन में सदा से अनेक प्रश्न उठते रहे हैं। अर्जुन के आयुध युधिष्ठिर के शयन कक्ष में क्यों थे? क्या उनके पास एक ही कमरा था, जिसमें इस समय युधिष्ठिर और द्रौपदी एक साथ थे। शेष भाइयों के पास अपने कमरे नहीं थे क्या? और यदि उनके पास अपने कमरे थे तो अर्जुन ने अपने आयुध युधिष्ठिर के शयनकक्ष में क्यों रखे थे?

पांडव उस समय इंद्रप्रस्थ के राजा थे। उस समय इंद्रप्रस्थ कितना भी अविकसित क्यों न रहा हो, यह संभव नहीं है कि उन पांचों भाइयों के पास अपना एक-एक कमरा भी नहीं हो। ऐसी स्थिति में अर्जुन ने अपने आयुध युधिष्ठिर के शयन कक्ष में क्यों रखे? यदि वह युधिष्ठिर का शयनकक्ष नहीं था और अर्जुन ने अपने आयुध अपने शयनकक्ष में रखे थे तो युधिष्ठिर और द्रौपदी उसके शयनकक्ष में क्यों थे?

इससे भी महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या पांडव अपने आयुध अपने-अपने शयनकक्ष में रखकर सोते थे? क्या उनके पास कोई शस्त्रागार नहीं था, जहां उनके सारे शस्त्र रखे जाते होंगे? उन पांचों भाइयों के पास अपने शस्त्र थे। कुछ लौकिक थे, कुछ दिव्य थे और कुछ देवास्त्र थे। तो क्या उनके लिए कोई शस्त्रागार नहीं बनाया गया होगा?

मेरी कल्पना यह कहती है कि ऐसा संभव ही नहीं है कि कहीं शासकों का अपना शस्त्रागार न रहा हो। उस समय उनके पास सेना भी थी। सेना का भी तो शस्त्रागार रहा होगा, जहां से सैनिकों को शस्त्रों की आपूर्ति की जाती रही होगी। ऐसे में यह आवश्यक है कि पांडवों के शस्त्र चाहे साधारण सैनिकों के शस्त्रागारों में न रखे जाते हों, किन्तु उनके अपने प्रासाद अथवा अपने दुर्ग में वह शस्त्रागार होगा, जिसमें वे शस्त्र थे। अर्जुन उस रात उस शस्त्रागार में ही अपने आयुध लेने गया होगा।

इतना तो निश्चित है कि वह रात का समय था और वह कक्ष युधिष्ठिर का शयनागार नहीं था तो फिर युधिष्ठिर और द्रौपदी वहां क्या रहे थे? यदि वह उनका शयनागार होता तो युधिष्ठिर का यह कहना कोई अर्थ नहीं रखता कि उन्हें तनिक भी असुविधा नहीं हुई और अर्जुन ने वहां आकर कोई अपराध नहीं किया है।

निश्चित रूप से अपने आयुध लेने के लिए शस्त्रागार में जाना कोई अपराध नहीं है। उससे तो अधिक आश्चर्य की बात यह है कि रात को उस समय द्रौपदी और युधिष्ठिर शस्त्रागार में क्या कर रहे थे?

यदि वह शस्त्रागार था तो निश्चित रूप से उनमें शस्त्र सम्बंधी कहीं कोई चर्चा हुई होगी। संभवत: किसी नए और चमत्कारी शस्त्र को दिखाने के लिए युधिष्ठिर द्रौपदी को वहां ले गए होंगे। ऐसे में अर्जुन का वहां जाना और उन दोनों को एकांत में एक साथ देखना वस्तुत: कोई अपराध नहीं था। तो फिर अर्जुन वनवास के लिए क्यों चला गया?

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