अमरीका में चुनाव
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अमरीका में चुनाव

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Mar 12, 2000, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Mar 2000 00:00:00

लोकतंत्र की उलझन

— विजय कुमार

अमरीका में लोकतंत्र की राष्ट्रपति प्रणाली प्रचलित है, इस कारण वहां सत्ता-संचालन का केन्द्र बिन्दु राष्ट्रपति होता है। उसका तथा संसद का कार्यकाल चार वर्ष का होता है तथा लगातार दो कार्यकालों (आठ वर्ष) से अधिक कोई राष्ट्रपति नहीं रह सकता। राष्ट्रपति अपने चुनाव के बाद किसी सीनेटर को उपराष्ट्रपति मनोनीत करता है, उसका कार्यकाल भी चार वर्ष का होता है। यदि किसी कारण से राष्ट्रपति की कुर्सी चार साल से पूर्व खाली हो जाए तो उपराष्ट्रपति ही राष्ट्रपति बन जाता है तथा वह शेष कार्यकाल को पूरा करता है।

राष्ट्रपति चुनाव की तिथि भी वहां निश्चित है। हर चार साल बाद नवम्बर के प्रथम सोमवार से अगले दिन मंगलवार यह चुनाव होता है। अमरीका में चुनावी चंदे के बारे में भी काफी पारदर्शिता है। सभी आयकरदाताओं से कम से कम तीन डालर की राशि सरकारी चुनाव कोष में देने का आग्रह किया जाता है, अधिकांश लोग यह देते भी हैं। परन्तु कोई व्यक्ति एक वर्ष में 25,000 डालर से अधिक राशि चुनाव के नाम पर खर्च नहीं कर सकता। इस सारी राशि का हिसाब भी उसे सरकार को देना होता है। अमरीका में चुनाव आयोग जैसी कोई संस्था नहीं है। वहां का संविधान भी संभवत: दुनिया का सबसे छोटा लिखित संविधान है। गत 200 वर्षों से वहां चुनावों में कोई विशेष विवाद खड़ा नहीं हुआ। पर इस बार विवादों एवं अव्यवस्था के कारण वहां भी चुनाव आयोग के गठन की मांग उठने लगी है।

अमरीका में प्राय: द्विदलीय व्यवस्था ही प्रचलित है, यद्यपि कुछ और दल भी रहते हैं पर मुख्य दल दो ही हैं। अल गोर डेमोक्रेटिक दल के तथा जार्ज वॉकर बुश रिपब्लिकन दल के प्रत्याशी हैं। वहां प्रत्याशी चयन के लिए दलों के अन्दर ही बड़ा भारी अभियान और फिर मतदान होता है। संयुक्त राज्य अमरीका अनेक देशों का एक समूह है जिन्होंने राजनीतिक, आर्थिक तथा सुरक्षा सम्बंधी कारणों से स्वयं को एक समूह के रूप में संगठित कर लिया। परन्तु मन से ये देश कभी एक नहीं हो पाए। सबने अपने-अपने देशों के संविधान, न्यायालय तथा चुनाव प्रणालियों को अमरीका में समाहित नहीं किया। स्पष्ट है कि अमरीका अनेक देशों से मिलकर एक राज्य तो बन गया पर एक राष्ट्र की कल्पना से वह कोसों दूर है।

अमरीका में 18 वर्ष तथा उससे अधिक आयु का हर व्यक्ति मत दे सकता है, परन्तु उसे चुनाव से एक माह पूर्व अपने नाम का पंजीकरण तथा उस समय अपनी पसन्द का दल भी बताना होता है। किन्तु इस बार चुनाव में 18 वर्ष से अधिक आयु के केवल 43 प्रतिशत लोगों ने स्वयं को पंजीकृत कराया तथा मत डालने मात्र 30 प्रतिशत लोग ही गए।

भारत के संसदीय लोकतंत्र में निम्न सदन (लोकसभा) में जिस दल अथवा दलसमूह का बहुमत होता है उसका नेता प्रधानमंत्री बनता है। पर अमरीका में ऐसा व्यक्ति भी राष्ट्रपति बन सकता है जिसे निम्न सदन (प्रतिनिधि सभा) का बहुमत प्राप्त न हो। इस बार के चुनाव में उच्च सदन (सीनेट) तथा निम्न सदन दोनों में रिपब्लिकन उम्मीदवारों का बहुमत हो रहा है, यदि डेमोक्रेटिक-अल गोर चुनाव जीतते हैं तो बहुमत न होने के कारण उन्हें काम करने में काफी परेशानी होगी। परिवारवाद की बीमारी भी अब वहां पांव जमा रही है। डेमोक्रेट उम्मीदवार जार्ज वॉकर बुश के पिता भी अमरीका के राष्ट्रपति रह चुके हैं तथा वर्तमान राष्ट्रपति Ïक्लटन की पत्नी हिलेरी ने न्यूयार्क से सीनेट का चुनाव जीत लिया है। चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि हिलेरी Ïक्लटन 2004 या फिर 2008 के चुनावों में राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी होगीं।

अमरीका जैसे तथाकथित आधुनिक और विकसित देश में आज भी सामान्य विधि से ही चुनाव होता है। हां, मतपत्र पर मोहर नहीं अपितु मशीन से छेद बनाना होता है, पर इसमें भी काफी गड़बड़ होती है। फ्लोरिडा राज्य में, जहां पुनर्मतगणना हो रही है, वहां दो बक्से ही नहीं पहुंचे। बाद में उनमें से एक चर्च में बने चुनाव केन्द्र में ही पड़ा मिला। हाथ से होने वाली गिनती में बुश की बढ़त लगातार कम होने पर उसने आरोप लगाया है कि चुनाव कर्मचारी सरकार के दबाव में हैं तथा जानबूझकर हेराफेरी कर रहे हैं। बहुत बड़ी संख्या में मत निरस्त भी हुए हैं, चूंकि लोगों ने दो जगह छेद बना दिए थे। और भी कुछ कारण होंगे पर अकेले फ्लोरिडा राज्य में ही 19,000 मतों के निरस्त होने की चर्चा है। कुछ लोग मशीनों के खराब होने का भी आरोप लगा रहे हैं।

अमरीकी चुनाव की दो सबसे बड़ी विडम्बनाओं की चर्चा अभी बाकी है, इन्होंने ही इसे सारी दुनिया में हास्यास्पद बना दिया है। अमरीका में 50 राज्य अथवा देश हैं, जिनसे 538 प्रतिनिधि चुने जाते हैं जो आगे चलकर राष्ट्रपति को चुनते हैं। जनसंख्या की भिन्नता के कारण अलग-अलग राज्यों में इनकी संख्या भी अलग-अलग है, जो स्वाभाविक ही है। कैलिफोर्निया में 54, टैक्सास में 32 तथा फ्लोरिडा में 25 प्रतिनिधि चुने जाते हैं, जबकि 3-4 प्रतिनिधि चुनने वाले छोटे-छोटे राज्य तो अनेक हैं। परन्तु सबसे अजीब बात, जिस पर इस समय सबसे ज्यादा विवाद छिड़ा है, वह यह है कि जिस राज्य में जो प्रत्याशी जीतेगा, उसके सारे प्रतिनिधियों के मत उसके खाते में जुड़ जाएंगे। उदाहरण के लिए कैलिफोर्निया में यदि बुश को 2,00,000 तथा गोर को 2,00,001 मत मिले तो वहां के सभी 54 प्रतिनिधियों के मत अल गोर के हिस्से में चले जाएंगे। इसी कारण वहां सब प्रत्याशी बड़े राज्यों पर अपना ध्यान लगाये रहते हैं, जबकि छोटे राज्य उपेक्षित ही रह जाते हैं। राष्ट्रपति चुने जाने के लिए कम से कम 271 प्रतिनिधियों का समर्थन जरूरी है। यदि इस संख्या तक कोई भी प्रत्याशी नहीं पहुंच पाता तो फिर पहले दो में से किसी एक का चुनाव प्रतिनिधि सभा अपनी पहली बैठक में करती है।

एक और अजीब बात यह है कि वहां जो 50 राज्य मिलकर राष्ट्रपति अथवा संसद का चुनाव करते हैं, उन सबके अलग-अलग चुनाव कानून एवं न्यायालय हैं। उदाहरण के लिए फ्लोरिडा राज्य, जहां के मतों पर ही राष्ट्रपति का चुनाव अटका है, वहां का नियम है कि यदि पहले दो प्रत्याशियों के बीच 1/2 प्रतिशत से कम मतों का अन्तर है तो मतगणना दुबारा अवश्य होगी तथा चुनाव के दस दिन बाद तक परिणाम रोके रखा जाएगा, जिससे यदि कोई न्यायालय में जाना चाहे तो जा सके। ऐसे ही हर राज्य के अपने कानून हैं।

अमरीका के चुनाव में मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है, उसी के माध्यम से सब प्रत्याशी अपने दल के विचारों एवं नीतियों को जनता तक पहुंचाते हैं। एक दूरदर्शन वाहिनी (चैनल) ने फ्लोरिडा राज्य के मतों का रुझान बुश के पक्ष में जाता देखकर वहां के 25 प्रतिनिधि मत उनके खाते में जोड़ दिए तथा इस प्रकार आए 271 के चमत्कारिक योग को सारे वि·श्व में प्रसारित कर दिया। भ्रम इतना ज्यादा था कि स्वयं अल गोर तथा दुनिया के कई देशों ने जार्ज बुश को बधाई दे डाली। पर थोड़ी देर बाद ही स्थिति बदल गई, जो अब तक अस्पष्ट है। मीडिया की इस भूमिका पर भी अमरीकी समाचार-संस्थाओं तथा बुद्धिजीवियों में इस समय नाराजगी है।

बहरहाल, परिणाम चाहे जो हो, अल गोर तथा जार्ज वॉकर बुश की किस्मत इस समय पुनर्मतगणना तथा वकीलों के कानूनी दांव-पेंच में उलझी है। जिन राज्यों में इन दोनों की जीत-हार का अन्तर काफी कम है, वहां से भी पुनर्मतगणना की मांग उठने लगी है। समाचार-पत्र इससे सम्बन्धित कार्टून, सम्पादकीय तथा अग्रलेखों से भरे हैं। इस सारे घटनाक्रम में अमरीका का आम नागरिक, भले ही उसने मत डाला हो या नहीं, अपने आप को आहत एवं छला गया अनुभव कर रहा है।

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