|
जो पू. गुरुजी को संघ में लाएडा. हेडगेवार ने संघ की स्थापना तो सन् 1925 में की, परन्तु देश सेवा का काम वे किशोर अवस्था से ही कर रहे थे। बचपन से ही उन पर लोकमान्य तिलक का प्रभाव था और वे उनके अनुयायियों के सम्पर्क में भी थे। ऐसे लोगों में डा. मुंजे, वि·श्वानाथ राव केलकर, बाबासाहब परांजपे प्रमुख थे। ये लोग स्वातंत्र्य वीर सावरकर के भी प्रशंसक थे। डा. हेडगेवार ने भी वीर सावरकर तथा उनके बन्धु बाबाराव सावरकर से सम्पर्क बनाए रखा था। तिलक तथा स्व. सावरकर के प्रति निष्ठा रखने वाला एक परिवार उमरेड में था। वह परिवार उस क्षेत्र के एक धनी जमींदार श्री बापूजी दाणी का था। श्री प्रभाकर बलवन्त उपाख्य भैयाजी दाणी इन्हीं के सुपुत्र थे। 1925 में जब संघ की स्थापना हुई, लगभग उसी समय श्री भैयाजी दाणी महाविद्यालयीन शिक्षा के लिए नागपुर आए। उस समय उनका निवास डा. साहब के ज्येष्ठ मित्र श्री बाबा साहब परांजपे के यहां था। डा. हेडगेवार प्राय: श्री परांजपे के घर जाया करते थे। इस कारण भैयाजी दाणी डा. साहब के सम्पर्क में आए और देखते-देखते उनके ध्येयवादी जीवन से प्रभावित हुए तथा संघ के प्रारम्भिक काल में ही उन्होंने संघ में प्रवेश किया।बनारस हिंदू विश्वविद्यालयनागपुर में संघ का काम बढ़ रहा था। नई-नई शाखाएं शुरू हो रही थीं। उस समय भैयाजी दाणी और बाला साहब देवरस डा. साहब के दो हाथों की तरह थे। संघ का केवल नागपुर में ही नहीं, बल्कि देश के अन्य भागों में भी विस्तार हो, इस उद्देश्य से डा. साहब ने अनेक होनहार विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के निमित्त देश के अन्य प्रान्तों में भेजा। भैयाजी दाणी को बनारस भेजा गया। उन्होंने बनारस हिन्दू वि·श्वविद्यालय में प्रवेश लिया। शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ संघ कार्य का विस्तार करने के उद्देश्य से, विद्यापीठ के होशियार विद्यार्थी तथा प्राध्यापकों को संघ के सम्पर्क में लाकर संघ का स्वयंसेवक बनाने के काम में भैयाजी दाणी सबसे आगे थे। इन्हीं दिनों अर्थात् 1930-33 में नागपुर के एक प्राध्यापक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर भी बनारस वि·श्वविद्यालय में थे। श्री गोलवलकर की प्रखर बौद्धिकता, संवाद कौशल तथा प्रभावी व्यक्तित्व देख कर भैयाजी दाणी ने उन्हें संघ के सम्पर्क में लाने का निश्चय किया। अनेक बहुविध प्रयत्नों के बाद वे इस काम में सफल हुए। बनारस में पढ़ाई समाप्त कर भैयाजी नागपुर वापस आए। संयोग से श्री गोलवलकर उपाख्य गुरूजी भी उसी समय नागपुर आए। वे डा. साहब के निकटवर्ती बन गए और बाद में तो वे सरसंघचालक हुए। परन्तु भैयाजी दाणी तथा गुरुजी के बीच नेता व अनुयायी का नाता न होकर एक-दूसरे के पूरक का था।प्रथम गृहस्थ प्रचारकबनारस हिन्दू वि·श्वविद्यालय में परीक्षा की तैयारी चल रही थी और उधर भैयाजी का विवाह हो गया। वह विवाह बंधन में अवश्य बंध गए, परन्तु सांसारिक बन्धनों में नहीं फंसे थे। उनका संघ कार्य, विभिन्न स्थानों के दौरे आदि चलते ही रहे। संघ का विस्तार बड़े व्यापक स्तर पर हो, इसलिए 1942 में पू. गुरुजी ने प्रचारक योजना शुरू की। उनके आह्वान को सैकड़ों युवकों का समर्थन मिला और वे प्रचारक के नाते कार्य करने के लिए अपने घरों से बाहर निकले। इनमें भैयाजी दाणी भी एक थे। इस प्रकार वे संघ के पहले गृहस्थ प्रचारक थे। अनवरत काम करते रहने से उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और वह बीमार रहने लगे। उन्हें नागपुर वापस लाया गया और तब वे संघ के पहले सरकार्यवाह बने।1948 की अग्नि परीक्षा1945 से 1947 के कालखंड में संघ का कार्य बड़े वेग से बढ़ रहा था। सैकड़ों शाखाएं व हजारों स्वयंसेवक संघ की छत्रछाया में आ गए थे। संघ का नाम चारों ओर फैल गया था। परन्तु उसी समय महात्मा गांधी की हत्या को निमित्त बनाकर पंडित नेहरू की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें जन-आक्रोश का सामना करना पड़ा। भैयाजी दाणी का उमरेड का घर, बाग आदि सब ध्वस्त कर दिया गया, सब कुछ अग्नि में स्वाहा हो गया। 1950 से 1960 तक का दशक संघ के इतिहास में कठिन परीक्षा का काल था। प्रतिबंध तथा जन- आक्रोश के कारण संघ का कार्य 10 साल पीछे धकेल दिया गया। अनेक कार्यकर्ता हिम्मत हार गए थे, थक गए थे। किन्तु पू. गुरुजी के साथ-साथ श्री भैयाजी दाणी ने उनकी हिम्मत बढ़ाकर उन्हें फिर से दृढ़तापूर्वक खड़ा किया।कार्यभूमि पर वीर मृत्युयह सब करते समय संघ के विस्तार का काम भी हुआ। इसमें मुख्य जनसंघ की स्थापना का काम था, जिसमें हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं के रोष का भी सामना करना पड़ा। परन्तु यह सहन करते हुए सरकार्यवाह के नाते भैयाजी दाणी ने जनसंघ को प्रोत्साहन देने का काम किया। उस समय उनके द्वारा लगाया हुआ जनसंघ का छोटा-सा पौधा आज एक विशाल वृक्ष हो गया है। गोहत्या बंदी के लिए संघ ने बहुत बड़ा आंदोलन किया था। जिसका नेतृत्व भैयाजी दाणी ही कर रहे थे। संघ को अपना जीवन सर्वस्व अर्पण करने वाला यह महान कार्यकर्ता संघ शिक्षा वर्ग के लिए इंदौर गया था। उस समय ह्मदय विकार के आघात से उनका निधन हो गया। युद्धभूमि में जिस प्रकार एक योद्धा को वीरगति प्राप्त होती है, वैसी ही गति भैयाजी दाणी को प्राप्त हुई।द वि.ना. देवधरअनुवाद-पु.के. चितल7
टिप्पणियाँ