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गुरुचरने ने मां को लिखा
बेबे!1
राती2 तेरी बड़ी याद आई।
दिन भर में एक गिलास पानी के बाद,
सारी रात
पिंड3 की नहर की छा याद आती रही।
सरों4 के खेत की पीली रोशनी में
हमने जंग के काले बीज कब बोये थे?
बेबे!
तू कहती थी,
बर्फ की चोटियों के बीच,
शंकर का घर है,
हमने ई·श्वर को लोहे की दूरबीन से
आंका–झांका है।
बार-बार, एक खत कारगिल से! गयी रात,
तेरे हाथों की मीठी रोटी
और अलाव की गर्मी की गंध,
यहां तक आ पहुंचती है।
जंग काली होती है बेबे!
बड़ी काली।
बड़े-बड़े मनों की रोशनी बुझा देता है,
एक-एक दिन का अंधेरा।
पर तू फिकर न कर,
रोशनी बहुत पास है,
और पिंड वाले साथ हैं,
और सबसे बड़ा साथ है,
वाहे गुरु
जो दुश्मन के झूठ के नहीं हमारे सच के साथ है।
1. मां, 2. रात, 3. गांव, 4. सरसों
दडा. ज्योतिकिरण शुक्ल
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