नोबेल शांति पुरस्कार विजेता शिरीन एबादी ने ईरान के ग्रीन मूवमेंट के नेता मीर होसैन मूसवी के जनमत संग्रह के आह्वान पर सवाल उठाए हैं। मूसवी ने हाल ही में देश के राजनीतिक ढांचे को बदलने के लिए जनमत संग्रह की मांग की थी, लेकिन एबादी का कहना है कि मौजूदा संविधान में ऐसा कोई बदलाव संभव नहीं है। उन्होंने साफ कहा, “किसी भी जनमत संग्रह की पहली शर्त है कि इस्लामिक गणराज्य की सत्ता को हटाया जाए।” एबादी का मानना है कि ईरान का संविधान धार्मिक नेतृत्व, इस्लामी कानून और इस्लामी पहचान जैसे मूल सिद्धांतों को बदलने की इजाजत नहीं देता। उनके लिए, यह ढांचा एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष सरकार की स्थापना के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा है।
एबादी ने मूसवी के प्रस्ताव को अव्यवहारिक बताते हुए कहा कि मौजूदा संविधान के तहत कोई भी जनमत संग्रह लोकतंत्र की ओर नहीं ले जा सकता। उन्होंने चेतावनी दी कि सत्ताधारी व्यवस्था की मंजूरी से होने वाला कोई भी जनमत संग्रह उनके शासन को और मजबूत करने का हथियार बन सकता है। उनके शब्दों में, “कोई भी सरकार अपने संविधान के खिलाफ जनमत संग्रह नहीं कर सकती, क्योंकि यह उसकी अपनी वैधता के खिलाफ होगा।”
मूसवी का आह्वान: एक नया संविधान और नागरिकों का अधिकार
मीर होसैन मूसवी, जो 2009 से नजरबंद हैं, ने हाल ही में एक बयान में कहा कि इस्लामिक गणराज्य का मौजूदा ढांचा सभी ईरानियों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। उन्होंने इजरायल के साथ हाल की 12 दिनों की जंग का जिक्र करते हुए कहा कि देश के अस्तित्व की एकमात्र गारंटी हर नागरिक के आत्म-निर्णय के अधिकार का सम्मान है। मूसवी ने एक संवैधानिक सभा के गठन की मांग की, जो जनमत संग्रह के जरिए नए संविधान का मसौदा तैयार करे। उनके इस बयान को 800 से ज्यादा नागरिक और राजनीतिक हस्तियों का समर्थन मिला, जिन्होंने राजनीतिक कैदियों की रिहाई और लोकतंत्र व मानवाधिकारों पर आधारित नए संविधान की मांग की।
ग्रीन मूवमेंट का इतिहास: 2009 का आंदोलन
मूसवी और मेहदी कर्रूबी 2009 के विवादित राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार थे। चुनाव परिणामों को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिन्हें ग्रीन मूवमेंट के नाम से जाना गया। महीनों तक चले इन प्रदर्शनों में लोगों ने निष्पक्ष चुनाव और लोकतांत्रिक सुधारों की मांग की। हालांकि, सरकार ने इन प्रदर्शनों को कुचल दिया और मूसवी, उनकी पत्नी ज़हरा रहनवर्द और कर्रूबी को राजद्रोह के आरोप में नजरबंद कर दिया गया। ये तीनों आज भी नजरबंद हैं, लेकिन मूसवी का ताजा बयान उनके समर्थकों में नई उम्मीद जगा रहा है।
एबादी की चेतावनी: भावनाओं से ज्यादा रणनीति जरूरी
एबादी ने मूसवी के समर्थन में आए 800 से ज्यादा हस्ताक्षरों को भावनात्मक करार दिया। उनका कहना है कि यह समर्थन मूसवी के राजनीतिक आकर्षण से प्रेरित है, न कि किसी ठोस रणनीति से। उन्होंने 2018 के अपने एक बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने 14 अन्य असंतुष्टों के साथ मिलकर इस्लामिक गणराज्य से पूरी तरह अलग होने की वकालत की थी। एबादी का सुझाव है कि संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में जनमत संग्रह हो, जो देश को इस्लामिक गणराज्य से बाहर निकालने की प्रक्रिया को संभाले।
जनमत संग्रह: सत्ता का हथियार?
एबादी ने चेतावनी दी कि अगर सत्ताधारी व्यवस्था जनमत संग्रह की अनुमति देती है, तो यह उनकी सत्ता को और पक्का करने का तरीका हो सकता है। उनके मुताबिक, सरकार अपने संविधान के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएगी, और ऐसा कोई जनमत संग्रह सिर्फ दिखावा होगा। यह बहस ईरान के भविष्य को लेकर गहरे मतभेदों को दर्शाती है, जहां एक तरफ सुधार की मांग है, तो दूसरी तरफ व्यवस्था बदलने की जरूरत पर जोर।
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