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स्व के शंखनाद और पूर्णाहुति के पुरोधा : कालजयी महारथी मंगल पांडे

मंगल पांडे, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम नायक, जिन्होंने बरतानिया सरकार के खिलाफ शंखनाद किया। उनके बलिदान, इतिहास लेखन में उपेक्षा और बॉलीवुड द्वारा छवि धूमिल करने के प्रयासों की कहानी।

by डॉ. आनंद सिंह राणा
Jul 19, 2025, 11:20 am IST
in विश्लेषण
Managal pandey

प्रतीकात्मक तस्वीर

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सन् 1857 के महान् स्वतंत्रता संग्राम के वीरोचित इतिहास के प्रथम पृष्ठ को खोलते ही एक ऐसे महानायक कि छवि उभरती है, जिसने बरतानिया सरकार के विरुद्ध सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद किया था और सेना न्यायालय में विचारण के दौरान दिलेरी के साथ सिंहनाद करते हुए कहा था, “मैं अंग्रेजों को भारत का भाग्य विधाता नहीं मानता,देश को स्वतंत्र कराना यदि अपराध है, तो मैं हर दंड भुगतने तैयार हूँ।” इस बलिदानी प्रथम नायक को हम महारथी मंगल पांडे के नाम से जानते हैं।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास लेखन का सबसे दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह रहा कि बरतानिया सरकार के विरुद्ध जितने भी सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम हुए, उनको विद्रोह, गदर, लूट, डकैती और आतंकवाद की संज्ञा दे दी गई और बरतानिया सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शासन में सहभागिता कर रही कांग्रेस ने भी तथाकथित स्वाधीनता संग्राम लड़ते हुए यही विचार रखा। स्वाधीनता के उपरांत भी न्याय नहीं हुआ।

मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों ने स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को दबाया

कांग्रेस सरकार में लगातार 11 वर्ष मौलाना अब्दुल कलाम आजाद भारत के शिक्षा मंत्री रहे, तदुपरान्त सन 1977 तक नूरुल हसन को मिलाकर 4 शिक्षा मंत्री मुस्लिम ही हुए और इन्होंने इतिहास के पन्नों को और विषाक्त कराया। अब देखिए न इन पाश्चात्य, वामपंथी और परजीवी इतिहासकारों ने सन् 1857 के महान् स्वतंत्रता संग्राम को प्रकारान्तर से विद्रोह, सैनिक विद्रोह, गदर जैसे अन्यान्य तरीके घटिया मत प्रस्तुत करते हुए, उसकी छवि धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। परन्तु वीर सावरकर अकेले ही इन पर भारी पड़ गए, क्योंकि उनका मत स्थापित हो गया कि सन् 1857 की घटना स्वतंत्रता संग्राम था।

कांग्रेस ने वामपंथियों और तथाकथित सेक्युलर इतिहासकारों की जमात भारत के सभी विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में बैठा दी गई, फलस्वरूप इन्होंने भी बरतानिया सरकार और कांग्रेस के इतिहास को बुलंद करते हुए सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के इतिहास को क्षत-विक्षत किया।

वामपंथी-छद्म सेक्युलर बॉलीवुड ने भारतीय इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा

वहीं दूसरी ओर बॉलीवुड उद्योग में वामपंथियों, तथाकथित सेक्युलर, मुस्लिम और ईसाई फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेताओं ने सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर जितनी भी फिल्में बनाईं, उन सब में छवि धूमिल करने का कुत्सित प्रयास किया गया है। मसलन बतौर तथाकथित नायक आमिर खान ने महा महारथी श्रीयुत मंगल पांडे पर जो फिल्म बनाई, उसमें मंगल पांडे के विवाह का झूठा दृश्य और उनके संबंध तवायफ के साथ स्थापित करने का प्रयास किया गया जो कि घोर आपत्तिजनक है।

इस तरह से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ करने की कोशिश की गई परंतु मंगल पांडे के परिवार से संबद्ध सदस्य रघुनाथ पांडे ने इस पर आपत्ति दर्ज की, तदुपरांत न्यायाधीश महोदय ने भी इस फिल्म को देखकर कहा कि इसमें ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है, तो इसे एक नाटकीय रुप दे दिया गया, तथापि जनसाधारण के विरोध से यह काल्पनिक फिल्म फ्लॉप हो गई।

मंगल पांडे को नशेड़ी सिद्ध करने की साजिश

बरतानिया सरकार के साथ तथाकथित सेक्यूलर और वामपंथी इतिहासकारों ने यह बताने का कुत्सित प्रयास किया है कि 29 मार्च सन् 1857 को बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने भांग आदि का नशा किया था, इसलिए उसने नशे की पिनक में अंग्रेज अधिकारियों पर हमला कर दिया। परंतु यह किसी भी दृष्टि से सही नहीं हो सकता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति नशे की हालत में इतनी देर तक व्यवस्थित रुप से युद्ध नहीं कर सकता है जितना कि महारथी मंगल पांडे ने किया है। अतः मंगल पांडे के बारे में सही इतिहास सबके सामने आना ही चाहिए।

जीवनी

महारथी मंगल पाण्डेय का जन्म 19 जुलाई सन् 1827 भारत में उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। ब्राह्मण होने के कारण मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में भर्ती किये गए, जिसमें ज्यादा संख्या में ब्राह्मणों की भर्ती की जाती थी। उस समय 34 वीं रेजीमेंट के अफसर और सिपाहियों की संख्या इस प्रकार थी : ब्राह्मण-335,क्षत्रिय- 237, निम्न वर्ग के हिंदू- 231, ईसाई -12 मुसलमान- 74।

बैरकपुर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के उत्तर 24 परगना ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। यह कोलकाता महानगर क्षेत्र का भाग है और हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित नगर है।

19वीं सदी में बैरकपुर में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध दो सशस्त्र संघर्ष हुए। इनमें से पहला सन् 1824 का बैरकपुर संघर्ष था, जिसका नेतृत्व सिपाही बिंदी तिवारी ने किया था, इस संग्राम में, 47वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री ने भाग लिया था। परंतु सन् 1857 में, बैरकपुर एक ऐसी घटना का स्थल बना जिसे सन् 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रारंभ करने का श्रेय प्राप्त हुआ। एक महान् भारतीय सैनिक, मंगल पांडे ने बैरकपुर में अपने ब्रिटिश कमांडरों पर हमला किया। बाद में उनका कोर्ट-मार्शल कर फांसी पर लटका दिया गया। उनके कार्यों की स्मृति में हुगली नदी की शांति में ‘शहीद मंगल पांडे उद्यान’ नामक एक पार्क खोला गया है।

स्वतंत्रता संग्राम की यात्रा

अब सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की ओर चलते हैं। सन् 1857 के आरंभ में बरतानिया सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम का वातावरण निर्मित हो रहा था, इस समय एन्फील्ड बंदूक के चर्बी वाले कारतूसों की चर्चा बहुत गर्म हो रही थी। कारतूसों को शीत से बचाने के लिए गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया गया था। इस पर हिन्दू और मुसलमान सैनिक दोनों सरकार को नफरत की दृष्टि से देखने लगे थे। सबसे पहले दमदम और बैरकपुर की हिंदुस्तानी सेनाओं में बरतानिया सरकार के विरुद्ध असंतोष की लहर दौड़ने लगी थी।

दमदम में चर्बी वाले कारतूसों की बात प्रकट होने के कुछ दिन बाद ही बैरकपुर में तारका स्टेशन जला दिया गया, इसके बाद हर रात को अंग्रेजों के बंगलों पर आग बरसाई जाने लगी और तीर भी छोड़े जाने लगे। बैरकपुर से बहुत दूर रानीगंज में भी इसी प्रकार के अग्निकांड होने लगे थे। यहाँ दूसरी रेजीमेंट की एक शाखा यह काम करती थी। इसके बाद हर रात्रि को देसी सिपाहियों की सभाएं होने लगीं।

वक्ता लोग स्व के भाव उत्तेजक भाषा में अंग्रेजों को अत्याचारी और नापाक सिद्ध करने लगे और यह कहने लगे कि अंग्रेज सरकार सबका धर्म नाश करने, सबको जाति भ्रष्ट करने और ईसाई बनाने के लिए जाल रच रही है। केवल सभाओं तक यह मामला ना रहा, उनके हस्ताक्षरों की चिट्ठियां कलकत्ते और बैरकपुर के डाकखानों से भिन्न-भिन्न फौजी छावनियों को जाने लगीं। इस प्रकार हर एक छावनी और सेना में चर्बी मिले कारतूसों की बात पहुंच गई। हर एक सेना के सिपाही इससे शंकित त्रस्त और उत्तेजित हुए। सर्वप्रथम 34 वीं नेटिव इन्फेंट्री और फिर 19 वीं नेटिव इन्फेंट्री की सेना में उत्तेजना फैलने लगी।

29 मार्च सन् 1857 को बैरकपुर के सिपाहियों में बड़ी सनसनी फैली थी। तीसरे पहर यह खबर फैली कि कलकत्ते में कई अंग्रेज सैनिकों की टुकड़ियां जहाज से उतरी हैं और वह शीघ्र ही बैरकपुर आएंगी। यह दिन रविवार का था। अंग्रेज अफसर छुट्टी में अपना समय आनंद से बिता रहे थे। देशी सिपाहियों के दल में मंगल पांडे नामक एक नौजवान था, जो परम धार्मिक और सात्विक महापुरुष था।

हर-हर महादेव के साथ बजा आजादी का बिगुल

बरतानिया सरकार के क्रिया – कलापों से विक्षुब्ध यह हट्टा – कट्टा बलिष्ठ ब्राह्मण मंगल पांडे धर्म नाश की आशंका से बहुत ही दुखी रहने लगा! 7 वर्ष से वह अत्यंत वीरता और राजभक्ति पूर्वक काम करता रहा परंतु 29 मार्च को जब ब्रिटिश सेना के आने की खबर छावनी में पहुंची तो उसे समय सब सिपाही बड़े ही चिंतित और उत्तेजित थे, इसी बीच मंगल पांडे हर-हर महादेव का नाद करते हुए हथियारों से सुसज्जित होकर अपनी बैरक से बाहर निकला और उसने बिगुल बजाने वाले को कहा कि बिगुल बजाकर सभी सैनिकों को एकत्र करो।

तदुपरांत फिर मंगल पांडे हाथ में बंदूक लिए चारों ओर घूमने लगा कुछ दूर पर एक अंग्रेज अफसर खड़ा था मंगल ने पिस्तौल से उस पर फायर खोल दिया वह अफसर घायलावस्था में घोड़े से गिर गया। इसी समय एक हवलदार ने मंगल के संघर्ष की सूचना एडजुटेण्ट लेफ्टिनेंट बाग़ को दी।

समाचार मिलते ही फौजी पोशाक और हथियारों से सुसज्जित होकर हाथ में भरी पिस्तौल लिए घोड़े पर बैठ कर लेफ्टिनेंट बाग मैदान में पहुंच गया। आते ही उसने कहा “वह कहां है? वह कहां है?” वहीं एक तोप थी, इसी तोप की आड़ से मंगल पांडे ने बाग पर निशाना लगाया परंतु एक गद्दार सैनिक शेख पल्टू ने मंगल पांडे को धक्का दे दिया, गोली बाग को न लगकर उसके घोड़े को गोली लगी। घोड़े के साथ बाग भी गिर गया और अविलंब खड़े होकर मंगल पर पिस्तौल से फायर किया परंतु निशाना खाली गया।

इसके बाद क्रोध में भरा हुआ बाग तलवार लिए मंगल पर दौड़ा एक अंग्रेज अफसर इस समय तलवार लिए उसकी सहायता के लिए आ पहुँचा। दोनों अंग्रेज अफसर मंगल पांडे पर टूट पड़े, महारथी मंगल पांडे भी वीरता पूर्वक तलवारों का जवाब तलवार से देने के लिए तैयार था, तीनों की तलवार हवा में घूमने लगी चारों ओर लगभग 400 सिपाही खड़े युद्ध देख रहे थे।

शेख पल्टू मुसलमान ने की गद्दारी

महारथी मंगल ने बड़ी वीरता और फुर्ती से दोनों के वार को बचाते हुए अपने विपक्षी एक अंग्रेज अफसर बाग को घायल कर अधमरा कर दिया तथा दूसरे अंग्रेज अफसर को भी भूमिसात कर दिया तब उस अंग्रेज के प्राण बचाने के लिए गद्दार शेख पल्टू नामक एक मुसलमान आगे आया, जैसे ही मंगल ने अंग्रेज़ अफसर को जान से मारने के लिए ताकत से तलवार चलाई वैंसे ही शेख पल्टू ने पीछे आकर मंगल की बांह पकड़ ली, पल्टू का बांया हाथ कट कर लहूलुहान हो गया पर उसने मंगल को ना छोड़ा इस प्रकार इस अंग्रेज अफसर की प्राण बचे पर उसे भी कई घाव लगे थे। दोनों अंग्रेज अधिकारी संतरियों की सहायता से भाग निकले।

शेख पल्टू अब तक मंगल पांडे को पकड़े था, तब अन्य देशी सिपाहियों ने उसे जाकर कहा कि तुम मंगल को छोड़ दो नहीं तो हम लोग तुम्हें मार डालेंगे। मंगल पांडे छूट गया और मस्ती के साथ वहीं गश्त लगाने लगा। सूचना प्राप्त होते ही कर्नल ह्वीलर ने वहां पहुंचकर देखा कि सिपाही मंगल पांडे बंदूक लेकर आगे और पीछे दृढ़ता के साथ टहल रहा है। ह्वीलर ने क्वार्टर गार्ड जमादार ईश्वरी पांडे को आदेश दिया कि वह मंगल पांडे को काबू करे। जमादार ईश्वर ईश्वरी पांडे ने बेमन से गार्डों को आगे बढ़ने को कहा। गार्ड भी छह से लेकर आठ कदम तक उस दिशा में चलकर पुनः रुक गई। उनके रुकने का मतलब ह्वीलर समझ गया।

उसने 9 अप्रैल 1857 को कैनिंग के नाम जो पत्र लिखा था, उसमें उसने कहा कि “नेटिव इन्फेंट्री के अफसरों ने आकर मुझे बताया था कि उनमें से कोई भी आदमी आगे नहीं जाएगा। मैंने महसूस किया कि इस मामले में जरा भी आगे बढ़ना बेकार है।” इस प्रकार कर्नल ह्वीलर, मंगल पांडे के दृढ़, साहसपूर्ण और संकल्पबद्ध रूप को देखकर इस तरह आतंकित और भयग्रस्त हो गया कि उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। सेना की गड़बड़ का समाचार जनरल हेयर्स व ह्यूरसन तक पहुंचा। सेनापति हेयर्स अपने दोनों नौजवान पुत्रों सहित परेड के मैदान में पहुंच गया।

हेयर्स ने देखा कि मंगल पांडे पागलों की तरह सेना में घूमता हुआ देश और धर्म रक्षा का उपदेश दे रहा है। सैनिक किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े हैं और मंगल पांडे अकेला बरतानिया सरकार को चुनौती दे रहा है। परंतु हैयर्स के धमकाने पर शेख पल्टू जैसे डरपोक और गद्दार सैनिक हैयर्स के साथ चले गए। जिसके कारण महारथी मंगल पांडे का मनोबल टूट गया और उन्होंने अंग्रेज अफसर को घायल कर स्वयं अपनी बंदूक से प्राणोत्सर्ग का प्रयास किया। परंतु सफल न हो सके। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम नायक मंगल घायल होकर गिर गए।

कोर्ट मार्शल के बाद फांसी की सजा

6 अप्रैल सन् 1857 को मंगल पांडे पर मुकदमा हुआ और कोर्ट मार्शल के साथ फांसी की सजा सुना दी गई। मंगल पांडे के घाव गहरे थे परंतु अब उन्हें आराम करने की चिंता नहीं थी!! इस दशा में भी धीर-वीर मंगल पांडे ने सहनशक्ति का पूर्ण परिचय दिया। उन्होंने कोई उफ या आह न की और ना किसी तरह का खेद प्रकट किया। 8 अप्रैल सन् 1857 को सारी सेना के सामने वीरवर मंगल पांडे, सिपाही नंबर 1446, को फांसी दे दी गयी। 10 अप्रैल सन् 1857 को एक जमादार ईश्वरी पांडे पर भी मुकदमा प्रारम्भ हुआ। इस जमादार का यह अपराध था कि इसने अंग्रेज अफसरों को घायल होते देखकर भी मंगल को गिरफ्तार करने का आदेश नहीं दिया। 21 अप्रैल को जमादार ईश्वरी पांडे को भी फांसी दे दी गई। परंतु मंगल पांडे को पकड़ने वाले गद्दार शेख पल्टू को सिपाही से हवलदार बना दिया गया। महा महारथी मंगल पांडे के बलिदान से सिपाहियों में बड़ी सनसनी फैल गई थी। कायरों के दिल दहल गए थे, लेकिन वीरों की आत्माएं आंदोलित होने लगीं।

1857 में ही आजाद हो जाता भारत

मंगल पांडे के गिरे हुए रक्त ने सारे भारत में सशस्त्र संग्राम का बीजारोपण कर दिया परिणामस्वरुप फिर उस संग्राम ने ऐसा विशाल रुप धारण किया कि एक बार अंग्रेजों के पैर भारत से खिसकते हुए दिखाई दिए थे। सच तो यह है कि यदि बरतानिया सरकार का साथ भारत की देशी रियासतों और शेख पल्टू जैसे गद्दारों ने न दिया होता तो भारत सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ही स्वतंत्र हो जाता।

अब जबकि मोदी सरकार के भगीरथ प्रयासों से लम्पट, क्रूर और महाधूर्त अकबर तथा मुगलों के इतिहास के काले अध्याय को एन.सी.ई.आर.टी. ने आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर, वास्तविक हिन्दू नायकों को स्थान देकर न्याय किया है, तो आशा है कि सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम नायक वीरवर मंगल पांडे को भी इतिहास में समुचित स्थान मिलेगा।

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के स्वयं के विचार हैं। आवश्यक नहीं कि पाञ्चजन्य उनसे सहमत हो।

Topics: वीर सावरकरbritish governmentMangal Pandey1857 स्वतंत्रता संग्राममंगल पांडेचर्बी वाले कारतूसGreased Cartridges1857 freedom struggleबरतानिया सरकारबैरकपुरveer savarkarBarrackpore
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