बद्रीनाथ वर्मा
देश के कुछ गांव आज भी ऐसे हैं जहां संस्कृत भाषा ही बोलचाल की मुख्य भाषा है। इस बात पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन ये बिल्कुल सच है। इन गांवों के लोगों ने संस्कृत को केवल एक भाषा न मानकर आंदोलन की तरह बचाने का काम किया है। जिन गांवों में आज भी संस्कृत बोली जाती है उन्हीं में से एक है कर्नाटक का मत्तूरू गांव। कर्नाटक की भाषा कन्नड़ है, लेकिन तकरीबन साढ़े नौ हजार की आबादी वाले मत्तूरु गांव के लोगों की मातृभाषा संस्कृत है। ये आपस में संस्कृत में ही बात करते हैं।
वर्ष 1981 में शुरू हुआ संस्कृत में संभाषण
मत्तूरु गांव में संस्कृत बोलने की शुरुआत साल 1981 में हुई, जब गांव में संस्कृत भारती संस्था की स्थापना की गई। इस संस्था ने ‘संस्कृत संभाषण आंदोलन’ शुरू किया। तय हुआ कि सब लोग संस्कृत को मातृभाषा मानेंगे और अपने व्यवहार में शामिल करेंगे। इसके बाद केवल दो साल में ही यानी 1982 में गांव को देशभर में ‘संस्कृत ग्राम’ के नाते जाना जाने लगा। गांव के बच्चों की संस्कृत भाषा में नींव मजबूत करने के लिए गांव में ‘शारदा शाला’ की शुरुआत की गई। इस स्कूल में बच्चों को संस्कृत के साथ योग और वेदों की शिक्षा दी जाती है। सभी लोग परंपरागत परिधान पहनते हैं और चोटी रखते हैं। गांव में संस्कृत और वेद की शिक्षा लेने के लिए अब तो विदेशों तक से लोग आते हैं।
संस्कृत सीखने के लिए 20 दिन
अगर कोई संस्कृत सीखना चाहता है तो यहां 20 दिनों का एक कोर्स चलता है। इसके लिए कोई फीस भी नहीं ली जाती। गांव के लोग संस्कृत सीखकर देशभर में बड़े पदों पर तैनात हैं। ऐसा नहीं है कि गांव के लोगों को केवल संस्कृत भाषा का ज्ञान है। इस गांव में रहने वाले लोग फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोल सकते हैं और कर्नाटक की स्थानीय भाषा को भी जानते हैं। इस गांव की एक और खूबी है कि न तो यहां जातिभेद है और न ही कोई अन्य विवाद। सब लोग एक-दूसरे का भरपूर सहयोग करते हैं।
हर व्यक्ति बोलता है संस्कृत
कर्नाटक के ही होसा हल्ली व मट्टूर गांव की भी बोलचाल की भाषा संस्कृत है। शिमोगा जिले के इन दोनों गांवों का हरेक व्यक्ति संस्कृत बोलता है। होसाहल्ली गांव के स्कूल में करीब पांच हजार लोगों को संस्कृत की शिक्षा दी जाती है। इनका उद्देश्य है इस अनमोल भाषा को खत्म होने से बचाना। यही कहानी मट्टूर की भी है। इस गांव को होसा हल्ली का जुड़वा गांव भी कहा जाता है। टुंगा नदी के किनारे बसे मट्टूर गांव ने भी होसा हल्ली की तरह ही संस्कृत को बोलचाल की भाषा बनाकर अपनी खास पहचान बनाई हुई है। कहा जाता है कि 16वीं सदी में राजा कृष्ण देव राय ने होसा हल्ली और मट्टूर को संस्कृत को समृद्ध बनाए रखने और इसके प्रचार-प्रसार का केंद्र बनाया था।
दीवारें श्लोकों से सजी हैं
संस्कृत को बोलचाल की भाषा बनाने वाले गांव केवल कर्नाटक में ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा में भी है। मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर लगभग एक हजार की आबादी वाले झिरी गांव की दीवारें संस्कृत के श्लोकों से सजी हैं। पुरानी पीढ़ी अगली पीढ़ी को संस्कृत सिखाती है। शादियों में महिलाएं जो विवाह गीत गाती हैं वह भी संस्कृत में ही होते हैं। गांव में महिलाएं, किसान और मजदूर भी एक-दूसरे से संस्कृत में बात करते हैं। यहां संस्कृत सिखाने की शुरुआत 2002 में समाजसेविका विमला तिवारी ने की थी। धीरे-धीरे गांव के लोगों में दुनिया की प्राचीन भाषा के प्रति रुझान बढ़ने लगा और आज पूरा गांव संस्कृत बोलता है।
बच्चे भी लेते हैं संस्कृत में रुचि
प्रदेश के ही एक और गांव बघुवार की भी पहली भाषा संस्कृत ही है। करेली तहसील अंतर्गत यह गांव नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। राजस्थान के बांसवाड़ा जिले का गनोड़ा में भी संस्कृत संभाषण आम बात है। आज से तकरीबन दो दशक पहले तक यहां के लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा में ही बातें करते थे। स्कूलों और कॉलेजों के करिकुलम में संस्कृत को शामिल किए जाने के बाद बच्चों के साथ बड़े भी संस्कृत में रुचि लेने लगे। आज इस गांव के लोग संस्कृत बोलते हैं। ओडिशा के गुर्दा जिले में स्थित सासन संस्कृत कवि जयदेव का जन्म स्थल है। इस गांव की आबादी कुछ 300 के आसपास है। इस गांव में भी लोगों की मुख्य भाषा संस्कृत है और हर व्यक्ति इसी भाषा में बातचीत करता है।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिकाओं से संबद्ध हैं।)
टिप्पणियाँ