असम में अवैध रूप से घुसपैठ कर रह रहे करीब 30,000 बांग्लादेशी अचानक गायब हो गए हैं। ये वही लोग हैं जिन्हें विदेशी न्यायाधिकरणों द्वारा विदेशी घोषित किया जा चुका है। राज्य सरकार का कहना है कि ये लोग निर्वासन के डर से अलग-अलग स्थानों पर जाकर छिप गए हैं। अब असम सरकार ने इन्हें पकड़ने के लिए राज्यव्यापी अभियान छेड़ दिया है।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया, एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) अपडेट प्रक्रिया के दौरान अस्थाई रूप से घुसपैठियों की पहचान रोक दी गई थी। इसी बीच जिनकी पहचान विदेशी के तौर पर हुई थी, उनमें से हजारों फरार हो गए। ये सभी वही लोग हैं जिन्हें न्यायाधिकरण ने विदेशी घोषित कर दिया था, लेकिन उन्होंने उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में कोई अपील नहीं की। ऐसे लोग अब भारत में रहने का अधिकार खो चुके हैं। राज्य से अवैध विदेशियों की पहचान करके उन्हें बाहर निकालने के लिए अप्रवासी अधिनियम 1950 को सख्ती से लागू किया जाएगा। बता दें कि यह कानून जिला अधिकारी को आदेश देता है कि वे अवैध विदेशियों को अवैध घोषित करें और उनको देश से बाहर निकालें।
अभियान में तेजी
बीते हफ्तों में राज्य सरकार की तरफ से इस दिशा में गंभीर और निर्णायक कदम उठाए गए हैं। राज्य भर में जिला प्रशासन, पुलिस और सीमा सुरक्षा बल के सहयोग से एक समन्वित अभियान चलाया जा रहा है। विशेष रूप से धुबरी, गोलपाड़ा, करीमगंज, बरपेटा, मोरीगांव, बोंगाईगांव, और नगांव जिलों में निगरानी बढ़ा दी गई है। इस बीच, सिलचर के पास मेघालय सीमा क्षेत्र में 35 बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा गया था। सभी को पूछताछ के बाद तत्काल बांग्लादेश भेज दिया गया। हाल ही में मटिया के विदेशी हिरासत शिविर में बंद 102 रोहिंग्याओं को भी बांग्लादेश निर्वासित किया गया। इसेे अब तक की सबसे बड़ी निर्वासन कार्रवाई माना जा रहा है।
दो श्रेणियों में किया वर्गीकृत
अवैध अप्रवासियों को दो श्रेणियों में बांटा गया है। पहली, वे जो हाल ही में भारत में घुसे हैं। दूसरी, वे जिन्हें न्यायाधिकरण ने पहले ही विदेशी घोषित कर दिया है। मुख्यमंत्री का कहना है, ‘‘उन विदेशी घोषित लोगों ने यदि न्यायिक अपील नहीं की है तो उन्हें तुरंत देश से बाहर किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने भी फरवरी 2024 में इसी आशय का आदेश दिया है।’’
उच्च न्यायालय ने मांगी जानकारी
गत 30 मई को गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने असम सरकार से दो भाइयों, अबू बकर सिद्दीक और अकबर अली का पता बताने को कहा। दोनों को 2017 में विदेशी घोषित किया गया था और वे 2020 से सशर्त जमानत पर थे। उनके परिवार का दावा है कि 24 मई को पुलिस दोनों को उठा ले गई और उसके बाद से उनका कोई अता-पता नहीं है। भतीजे तोराप अली ने याचिका में आशंका जताई कि उन्हें गुपचुप बांग्लादेश भेज दिया गया है।
न्यायपालिका के आदेश का पालन
सरमा सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि जिन मामलों में न्यायिक अपील लंबित है या जहां उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश दिया है, वहां निर्वासन की कार्रवाई नहीं की जाएगी। राज्य सरकार न्यायपालिका का पूरा सम्मान करते हुए केवल उन्हीं पर कार्रवाई कर रही है जिन्होंने न तो कोई अपील की है और न ही उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगी है।
2 जून को सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध बांग्लादेशियों के निर्वासन को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता ‘ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएमएसयू)’ को गुवाहाटी हाईकोर्ट जाने को कहा गया। इससे पहले 4 फरवरी को न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने असम सरकार से 63 घोषित विदेशियों को देश से निष्कासित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार ने तब जवाब में कहा था कि वह बांग्लादेशी नागरिकता की पुष्टि
की प्रतीक्षा कर रही है। बाद में इसकी पुष्टि हो गई कि वे सभी बांग्लादेशी हैं।
असम में घुसपैठ का मसला केवल राज्य का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और जनसंख्या संतुलन से जुड़ा मामला है यदि एक राज्य में इस पर कठोर कदम उठाए जाते हैं, तो उसका असर अन्य सीमावर्ती राज्यों-जैसे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मेघालय पर भी पड़ेगा। केंद्र सरकार की ओर से भी संकेत मिले हैं कि यदि असम का मॉडल सफल रहता है तो इसे अन्य राज्यों में भी अपनाया जा सकता है। फिलहाल, राज्य सरकार के इस अभियान के आने वाले महीनों में और तेज़ होने की संभावना है। अधिकारियों का मानना है कि छिपे हुए अवैध बांग्लादेशियों की तलाश में तकनीकी सहायता, जैसे-चेहरे पहचानने के तंत्र, ड्रोन्स और डेटा एनालिटिक्स का भी उपयोग किया जाएगा
लंबे समय से लंबित मांग
असम में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान और निर्वासन की मांग कोई नई नहीं है। 1979 से 1985 तक चले असम आंदोलन का मूल बिंदु यही था। इसके बाद 1985 में ‘असम समझौते’ पर हस्ताक्षर हुए, जिसके अनुसार 24 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशी अवैध माने जाएंगे।
तब से यह मुद्दा लगातार उठा है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव और न्यायिक प्रक्रियाओं की जटिलता के कारण अमल में कठिनाई रही है। अब जब राज्य सरकार ने तेजी दिखाई है तो विरोध के स्वर भी मुखर हो गए हैं। कांग्रेस, एआईयूडीएफ और अल्पसंख्यक छात्र संगठनों-जैसे एएएमएसयू और एबीएमएसयू-ने राज्य सरकार के इस कदम का विरोध किया है। कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी की है। सिब्बल ने यह तर्क दिया कि यह मानवीय अधिकारों का उल्लंघन है और बांग्लादेश भेजे जा रहे लोगों को पर्याप्त कानूनी सहायता नहीं मिल रही।
मानवतावाद की आड़
सरकार की कार्रवाई के विरुद्ध तथाकथित मानवाधिकार संगठन और वामपंथी समूह भी सामने आ गए हैं। इन संगठनों का तर्क है कि निर्वासन अमानवीय है। लेकिन सरकार की दलील है कि यह राष्ट्र की संप्रभुता और सुरक्षा से जुड़ा विषय है। ‘‘घुसपैठियों के कारण राज्य के संसाधनों पर दबाव है, स्थानीय बेरोजगारी और अपराध दर में वृद्धि हुई है।’’राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ‘‘यह मात्र कानून का पालन है, न कि किसी विशेष समुदाय के खिलाफ कार्रवाई। जिन लोगों को न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित किया गया है और जिन्होंने कोई कानूनी अपील नहीं की है, उन्हें देश में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’’
अब आगे क्या?
असम में घुसपैठ का मसला केवल राज्य का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और जनसंख्या संतुलन से जुड़ा मामला है यदि एक राज्य में इस पर कठोर कदम उठाए जाते हैं, तो उसका असर अन्य सीमावर्ती राज्यों-जैसे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मेघालय पर भी पड़ेगा। केंद्र सरकार की ओर से भी संकेत मिले हैं कि यदि असम का मॉडल सफल रहता है तो इसे अन्य राज्यों में भी अपनाया जा सकता है। फिलहाल, राज्य सरकार के इस अभियान के आने वाले महीनों में और तेज़ होने की संभावना है। अधिकारियों का मानना है कि छिपे हुए अवैध बांग्लादेशियों की तलाश में तकनीकी सहायता, जैसे-चेहरे पहचानने के तंत्र, ड्रोन्स और डेटा एनालिटिक्स का भी उपयोग किया जाएगा
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