बांग्लादेश : मुजीबुर रहमान से वापस ली गई 'राष्ट्रपिता' की उपाधि, लोगों ने बताया राष्ट्र की आत्मा पर आघात
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बांग्लादेश : मुजीबुर रहमान से वापस ली गई ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि, लोगों ने बताया राष्ट्र की आत्मा पर आघात

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शेख मुजीबुर रहमान से ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि और करेंसी से तस्वीरें हटाईं, देश में राजनीतिक बहस तेज़।

by SHIVAM DIXIT
Jun 4, 2025, 11:08 pm IST
in विश्व
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ढाका । बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से राजनीतिक उथल-पुथल लगातार बनी हुई है। इसी कड़ी में एक बड़ा और प्रतीकात्मक फैसला लेते हुए देश की अंतरिम सरकार ने बांग्लादेश के संस्थापक और स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य नेतृत्वकर्ता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान से ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि वापस ले ली है।

अंतरिम सरकार ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिषद अधिनियम में संशोधन कर यह फैसला लिया है, जो बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले मुजीबुर रहमान की तस्वीरें नए करेंसी नोटों से भी हटा दी गई थीं।

‘बंगबंधु’ का नाम कानून और परिभाषा से हटाया गया

एक समाचार वेबसाइट bdnews24.com की रिपोर्ट के अनुसार- संशोधन के तहत ‘राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान’ शब्द और अधिनियम के वे सभी हिस्से जहां उनका नाम शामिल था, हटा दिए गए हैं। वहीं, डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, मुक्ति संग्राम की परिभाषा में भी बदलाव किया गया है।

बता दें कि पहले की परिभाषा में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि 1971 का युद्ध बंगबंधु के आह्वान पर लड़ा गया था। लेकिन संशोधित परिभाषा में अब उनका नाम शामिल नहीं है।

‘मुक्ति संग्राम के सहयोगी’ के रूप में नई श्रेणी

वहीँ ढाका ट्रिब्यून के अनुसार- अब तक बांग्लादेश की मुजीबनगर निर्वासित सरकार से जुड़े एमएनए (नेशनल असेंबली सदस्य) और एमपीए (प्रांतीय असेंबली सदस्य), जिन्हें पहले ‘स्वतंत्रता सेनानी’ का दर्जा प्राप्त था, अब उन्हें ‘मुक्ति संग्राम के सहयोगी’ की नई श्रेणी में डाला गया है।

नए संशोधन के अनुसार स्वतंत्रता सेनानी कौन..?

संशोधित कानून के अनुसार, वे सभी नागरिक जिन्होंने 26 मार्च से 16 दिसंबर 1971 के बीच देश के भीतर या भारत में प्रशिक्षण लिया, युद्ध की तैयारी की, और पाकिस्तानी सेना व उनके सहयोगियों के खिलाफ हथियार उठाए, और उस समय सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम आयु के भीतर थे— उन्हें ही स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा मिलेगा।

यह भी स्पष्ट किया गया है कि जिन लोगों ने पाकिस्तानी सैन्य बलों का साथ दिया था— जैसे कि रजाकार, अल-बद्र, अल-शम्स, तत्कालीन मुस्लिम लीग, जमात-ए-इस्लामी, नेजाम-ए-इस्लाम और शांति समिति के सदस्य— उन्हें इस सूची में शामिल नहीं किया जाएगा।

शेख मुजीबुर रहमान : क्यों दी गई थी उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि..?

शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें स्नेहपूर्वक ‘बंगबंधु’ कहा जाता है, बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता और देश के पहले राष्ट्रपति थे। 17 मार्च 1920 को बंगाल (अब बांग्लादेश) के तुंगीपारा में जन्मे मुजीब आवामी लीग के संस्थापक और अध्यक्ष थे। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों के अधिकारों के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया।

1970 के आम चुनाव में उनकी पार्टी ने भारी जीत दर्ज की थी, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान ने सत्ता हस्तांतरण से इनकार कर दिया। इसके बाद, 1971 में उन्होंने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिससे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम शुरू हुआ और भारत की सहायता से पाकिस्तान से आज़ादी मिली।

उनका 7 मार्च 1971 का ऐतिहासिक भाषण और उनके नेतृत्व में चले आंदोलन ने बांग्लादेश को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित किया, जिसके चलते उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि दी गई थी।

राष्ट्र की आत्मा पर आघात

इस निर्णय को लेकर बांग्लादेश में गहरी राजनीतिक बहस छिड़ गई है। लोग इसे इतिहास के साथ छेड़छाड़ और राष्ट्र की आत्मा पर आघात बता रहा है।

बता दें कि शेख मुजीबुर रहमान से ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि हटाना सिर्फ एक राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि बांग्लादेश की पहचान, उसके स्वतंत्रता आंदोलन और नेतृत्व की विरासत पर सवाल उठाने जैसा माना जा रहा है।

SHIVAM DIXIT

शिवम् दीक्षित एक अनुभवी भारतीय पत्रकार, मीडिया एवं सोशल मीडिया विशेषज्ञ, राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार विजेता, और डिजिटल रणनीतिकार हैं, जिन्होंने 2015 में पत्रकारिता की शुरुआत मनसुख टाइम्स (साप्ताहिक समाचार पत्र) से की। इसके बाद वे संचार टाइम्स, समाचार प्लस, दैनिक निवाण टाइम्स, और दैनिक हिंट में विभिन्न भूमिकाओं में कार्य किया, जिसमें रिपोर्टिंग, डिजिटल संपादन और सोशल मीडिया प्रबंधन शामिल हैं।

उन्होंने न्यूज़ नेटवर्क ऑफ इंडिया (NNI) में रिपोर्टर कोऑर्डिनेटर के रूप में काम किया, जहां इंडियाज़ पेपर परियोजना का नेतृत्व करते हुए 500 वेबसाइटों का प्रबंधन किया और इस परियोजना को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान दिलाया।

वर्तमान में, शिवम् राष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य (1948 में स्थापित) में उपसंपादक के रूप में कार्यरत हैं।

शिवम् की पत्रकारिता में राष्ट्रीयता, सामाजिक मुद्दों और तथ्यपरक रिपोर्टिंग पर जोर रहा है। उनकी कई रिपोर्ट्स, जैसे नूंह (मेवात) हिंसा, हल्द्वानी वनभूलपुरा हिंसा, जम्मू-कश्मीर पर "बदलता कश्मीर", "नए भारत का नया कश्मीर", "370 के बाद कश्मीर", "टेररिज्म से टूरिज्म", और अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले के बदलाव जैसे "कितनी बदली अयोध्या", "अयोध्या का विकास", और "अयोध्या का अर्थ चक्र", कई राष्ट्रीय मंचों पर सराही गई हैं।

उनकी उपलब्धियों में देवऋषि नारद पत्रकार सम्मान (2023) शामिल है, जिसे उन्होंने जहांगीरपुरी हिंसा के मुख्य आरोपी अंसार खान की साजिश को उजागर करने के लिए प्राप्त किया।

शिवम् की लेखन शैली प्रभावशाली और पाठकों को सोचने पर मजबूर करने वाली है, और वे डिजिटल, प्रिंट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय रहे हैं। उनकी यात्रा भड़ास4मीडिया, लाइव हिन्दुस्तान, एनडीटीवी, और सामाचार4मीडिया जैसे मंचों पर चर्चा का विषय रही है, जो उनकी पत्रकारिता और डिजिटल रणनीति के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

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