-दिल्ली में भाजपा सरकार के 100 दिन पूरे हुए हैं। इस अल्प काल में ही यमुना सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, महिला सुरक्षा व सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण, कानून-व्यवस्था तथा बुनियादी ढांचा विकास जैसे क्षेत्रों में इस सरकार ने ठोस कदम उठाए हैं। इन कार्यों की गति कैसी है और सरकार के सामने कौन-सी चुनौतियां हैं, ऐसे ही कुछ प्रश्नों को लेकर पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर और सलाहकार संपादक तृप्ति श्रीवास्तव ने दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उस वार्ता के संपादित अंश—
पिछली आआपा सरकार में एक तरफ प्रचार था और दूसरी तरफ दिल्ली के भीतर एक गुबार था। इन दोनों का अंतर साफ करते हुए आपने कमान संभाली है। आरंभ कैसा है, अड़चन क्या हैं? आगे का रोडमैप क्या है?
आपने बिल्कुल ठीक कहा कि प्रचार की सरकार थी। जनता के दिल में गुबार था। सच में पिछले 10-12 साल में होर्डिंग, बैनर पर तो सरकार दिखाई देती थी, परंतु जनता को वह नहीं मिला, जो उसे मिलना चाहिए था। देश की राजधानी दिल्ली में जो सुविधाएं, ढांचागत होनी चाहिए थीं, उनका विकास नहीं हुआ। दुर्भाग्य की बात है कि दिल्ली में 40 से 50 प्रतिशत लोगों को ही नल का पानी मिलता है, बाकी टैंकर पर निर्भर हैं। उसमें भी टैंकर माफिया सक्रिय थे। इसी तरह लोग इसी प्रदूषण से परेशान थे। यमुना की सफाई नहीं हो रही थी। लोग सड़कों में गड्ढों से दुखी थे। सीवर लाइन जाम रहती थी। लोग इन छोटी-छोटी चीजों में फंस कर रह गए थे। अब उनका वनवास समाप्त हुआ है। अब डबल इंजन सरकार मिलकर काम कर रही है, तो दिल्ली के लोगों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वह उन्हें मिलेंगी।

आप डबल इंजन की बात कह रही हैं, लेकिन पूर्ववर्ती सरकार तो कहती थी कि केंद्र सरकार साथ नहीं देती। इसलिए विकास नहीं हो पा रहा है। इस मामले में आपके 100 दिन का अनुभव कैसा है?
पिछली सरकार सफेद झूठ बोलती थी। केंद्र के सहयोग के बिना दिल्ली आगे बढ़ ही नहीं सकती है। कल्पना कीजिए, मेट्रो के बिना दिल्ली कैसी होती? आज दिल्ली का पूरा ट्रैफिक मेट्रो अपने कंधों पर ढो रही है। मेट्रो किसने बनाई? केंद्र सरकार ने। मेट्रो के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार को 50-50 प्रतिशत पैसा देना होता है। क्या दिल्ली की तत्कालीन सरकार ने अपने हिस्से का पैसा दिया? एक रुपया भी नहीं दिया। आज दिल्ली में केंद्र सरकार के कारण ढांचागत सुविधाएं बढ़ी हैं, हाईवे बने हैं। इन सबके कारण दिल्ली में एक नई गति आई है। क्या केंद्र के सहयोग के बिना यह संभव था? आज यदि केंद्रीय विद्यालय यहां नहीं होते तो क्या बच्चे शिक्षा पूरी कर सकते थे? इसी तरह, दिल्ली में एम्स सहित कुछ अस्पताल केंद्र सरकार के हैं। यदि ये अस्पताल नहीं होते तो दिल्ली स्वास्थ्य क्षेत्र की अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर पाती क्या?
यमुना सफाई के लिए केंद्र सरकार ने पूर्ववर्ती सरकार को 8,000 करोड़ रुपये दिए। आज कूड़े के पहाड़ों के निस्तारण के लिए अमृत-1 योजना के माध्यम से करोड़ों रुपये का बजट दिया गया है। जी-20 सम्मेलन के समय भी दिल्ली को हर चीज मिली। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के रूप में हर वर्ष पांच साल तक दिल्ली सरकार को 500 करोड़ रुपये मिले। दिल्ली को हर तरह की मदद दी गई। दिल्ली ने देखा कि कैसे कोविड के समय में आम आदमी पार्टी की सरकार ने केंद्र से गुहार लगाई और केंद्र ने आगे बढ़कर दिल्ली वालों की जान बचाई। इसके बावजूद पिछली सरकार ने कहा कि उसे केंद्र का सहयोग नहीं मिला। सच तो यह है कि वे केंद्र के सहयोग के बिना एक कदम भी चलने की स्थिति में नहीं थे।
नगर निगम में भी भाजपा है। यानी दिल्ली में ट्रिपल इंजन की सरकार है। ऐसे में लोगों की अपेक्षा बढ़ी है। इससे आपकी जिम्मेदारी कितनी बढ़ गई है?
आज लोकतंत्र का इतना सुंदर स्वरूप दिल्ली में निखर कर आया है। अब केंद्र, राज्य और नगर निगम तीनों मिल कर काम करते हैं। कोई नहीं कहता कि यह काम मेरा नहीं है, यह काम आपका है। दिल्ली को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी जितनी नगर निगम की है, उतनी ही दिल्ली सरकार की है। इसमें केंद्र से भी उतना ही सहयोग मिलता है। आज आप देखिए, दिल्ली बेहतर और साफ-सुथरी दिखती है। आज हम काम करने के लिए अधिकारियों को एक मंच पर बुला सकते हैं, चाहे वे नगर निगम के हों, दिल्ली सरकार के अधिकारी या दिल्ली पुलिस के अधिकारी। हम सब मिलकर योजनाएं बनाते हैं और काम करते हैं, तो दिल्ली वाले सुकून की सांस लेते हैं। वे यह महसूस करते हैं कि मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल इकट्ठे बैठकर चर्चा भी करते हैं और दिल्ली को बेहतर कल देने की भी बात करते हैं। पहले इसी दिल्ली में मुख्यमंत्री के आवास पर शीर्ष अधिकारियों को बुलाकर उनकी पिटाई करने तक की खबरें आती थीं। अब यह चित्र तो निश्चित ही राहत देता होगा।
अगर आप केवल और केवल झगड़ा करने में लगे रहते हैं। काम करने की मंशा नहीं होती, तो इसका हर चीज पर असर होता है। आज दिल्ली ने गति पकड़ी है, काम हो रहे हैं। आज दिल्ली के 111 गांवों में आईजीएल की पाइपलाइन बिछ चुकी है। इसके माध्यम से घरों में गैस पहुंचेगी। यह केंद्र सरकार ने किया और दिल्ली सरकार ने सुविधाएं दीं। पाइपलाइन पीडब्ल्यूडी या नगर निगम की सड़कों से होकर गईं। पिछली सरकारों में ऐसा नहीं होता था। पिछली सरकार केंद्र सरकार की योजनाओं को रोकने में लगी रहती थी। इससे जनता का नुकसान होता था। आयुष्मान योजना, पीएमश्री स्कूल, अटल टिंकरिंग लैब जैसी योजनाओं को लागू नहीं होने दिया गया। उनको लगता था कि यह तो हमारे करने लायक काम ही नहीं है। इसको हटा दिया जाए, छोड़ दिया जाए। नतीजा, वर्षों तक दिल्ली की जनता उपेक्षित रही। आज पूरे देश में दिल्ली सबसे ज्यादा पिछड़ी हुई है। यहां सबसे अधिक प्रदूषण है। सफाई की दृष्टि से कई छोटे-छोटे शहरों में भी अच्छे कार्य हुए, परंतु दिल्ली पिछड़ गई, क्योंकि राज्य की सत्ता में दूसरे लोग बैठे थे। उन्होंने निगम को उसके हिस्से का पैसा नहीं दिया। पहली बार दिल्ली में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और निगम मिलकर काम करने की स्थिति में हैं। मैं समझती हूं कि यह दिल्ली की बेहतरी के लिए अच्छे संकेत हैं।
आपने बताया कि पिछली सरकार में लड़ने वाले और लड़ाने वाले थे। मगर बाहर तो वे ‘शिक्षा मॉडल’ के माध्यम से स्वयं को पढ़ने और पढ़ाने वाले बताते थे। उनका वह मॉडल कैसा था और आपका मॉडल क्या है?
देखिए, पढ़ने और पढ़ाने वाले लोगों की चतुराई तो इसी में थी कि उनकी जितनी योजनाएं थीं, सब में भ्रष्टाचार हुआ है। इतनी ज्यादा ‘पढ़ी-लिखी’ सरकार थी कि उन्हें पता था कि बचने के रास्ते क्या हैं। केजरीवाल एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने पास एक भी विभाग नहीं रखा ताकि काम न करना पड़े। किसी फाइल पर हस्ताक्षर न करना पड़े। न हस्ताक्षर होंगे, न कोई पकड़ा जाएगा। इसके बावजूद उनका भ्रष्टाचार पकड़ में आ गया। दिल्ली जल बोर्ड का चेयरमैन दिल्ली का मुख्यमंत्री होता था, परंतु मुख्यमंत्री ने एक मंत्री को चेयरमैन बना दिया और खुद पंजाब, गोवा, उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करने लगे। दिल्ली सरकार के विज्ञापन पूरे देश के अखबारों में छपते थे। इसमें दिल्ली के लोगों का पैसा खर्च किया जाता था। योजना 10 लाख की होती थी और उसके प्रचार में 10 करोड़ रुपये खर्च होते थे। उन्होंने प्रदूषण के लिए कुछ नहीं किया। एकमात्र यही सरकार रही होगी जो सत्ता में थी तो भी उसके कर्ताधर्ता धरने पर बैठते थे। जल मंत्री खुद धरने पर बैठे थे। वास्तव में उनके डीएनए में ही विपक्ष था। अब जनता ने उनको सही जगह पहुंचाया है।
काम करने के लिए 10 साल का समय बहुत था, परंतु उन्होंने नहीं किया। उन्होंने न प्रदूषण कम करने के लिए काम किया और न ही यमुना की सफाई के लिए। ढांचागत सुविधाओं को भी नहीं बढ़ाया। सुनिए, उनका ‘शिक्षा मॉडल’ कैसा था। उन्होंने विद्यालयों में हजारों कमरे बनाने का दावा किया, लेकिन टॉयलेट और स्टोर रूम को भी कमरे के रूप में गिना गया। और कमरा कैसा? 45 लाख रुपये का एक कमरा। अब बताइए कौन-सा ऐसा घर, ऐसी सरकारी बिल्डिंग होगी, जहां 45-45 लाख रुपये का एक-एक कमरा हो! वे लोग इतने अहंकार और इतनी जिद में रहे कि नई शिक्षा नीति को भी नहीं अपनाया। अपना शिक्षा बोर्ड बना दिया। दिल्ली छोटा राज्य है। कौन-सी नेशनल, इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी उसको अपना प्लेटफॉर्म देगी? ऐसे से पाठ्यक्रम भी उन्होंने बना दिया। अलग-अलग तरीके की कक्षाएं होतीं। एक दिन में सात पीरियड होते हैं। फिर जब नौवीं और 11वीं के बच्चे पढ़ाई में पिछड़ने लगे तो उन्हें मजबूर कर दिया गया कि वे ओपन स्कूल में जाकर पढ़ेें और उनके लिए केवल क्रीम स्टूडेंट छोड़ दें। ऐसा इसलिए किया ताकि 12वीं के परिणाम पर असर न हो।
क्या ओपन स्कूल में भेजे गए बच्चों के अभिभावक आपसे मिले?
हजारों बार मिले। उन्होंने हमेशा कहा कि वास्तव में जिन बच्चों को सहायता की जरूरत है, उन्हें वह नहीं दी गई। उन बच्चों का भविष्य गर्त में धकेल दिया गया, जिनको थोड़े से सहारे की जरूरत थी। मतलब जिस दिल्ली मॉडल को पूरी दुनिया में प्रचारित किया गया था, वास्तव में वह लाखों बच्चों के साथ छल करने वाला साबित हुआ है! हमने 1300 बच्चों को छात्रवृत्ति दी है। मेधावी बच्चों को शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति दी जाती है। उनके समय में यह फाइल पड़ी रही, क्योंकि सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा और ढांचागत सुविधाओं के विस्तार के लिए गंभीर नहीं थी।
निजी विद्यालयों में मनमानी फीस वसूली जाती है, उसे लेकर अभिभावक बहुत परेशान हैं। इसके लिए आपकी सरकार क्या कर रही है?
दिल्ली में अभी ‘फी रेगुलेशन’ के लिए कोई एक्ट ही नहीं है। दिल्ली के स्कूल 1973 के एक्ट को मानते हैं, जिसमें फीस के बारे में बस इतना लिखा है कि स्कूल अपनी फीस बढ़ाए तो शिक्षा निदेशक को सूचित करे। पिछली सरकार ने कभी इसके लिए सख्त नियम लाने की कोशिश नहीं की। पहली बार हम लोगों ने इस स्थिति को समझने का प्रयास किया और फिर रेगुलेशन एक्ट लेकर आए।
पुरानी सरकार के मोहल्ला क्लीनिक को आपने आरोग्य मंदिर नाम दिया है। ये आरोग्य मंदिर मोहल्ला क्लीनिक से अलग कैसे हैं? उनमें क्या सुविधाएं होंगी?
मोहल्ला क्लीनिक क्या थे? मोहल्ला क्लीनिक सड़क किनारे, नालों के ऊपर अतिक्रमण कर बनाए गए छोटे केबिन थे, जहां पर आपने दिखाया कि एक डॉक्टर है, एक सहयोगी है, दवाई रखी है। आप पैसे देते थे डॉक्टर को। कितने रोगी आ रहे हैं? उसका रिकॉर्ड क्या है? कोई रिकॉर्ड ही नहीं होता था। डॉक्टर चाहे तो कह दे कि मैंने आज 2,000 रोगियों को देखा है। कोई पूछे कि अगर आप एक रोगी को एक मिनट भी देते हैं तो दिनभर में 2,000 रोगी कैसे देख सकते हैं? न दवाई, न डॉक्टर, न इलाज।
आरोग्य मंदिर छोटे अस्पताल का रूप है या कहें, एक बड़ी डिस्पेंसरी का रूप है, जहां पर बचाव, उपचार, जांच, दवा, डॉक्टर और नर्स भी है। यहां तक कि डे केयर भी है। आरोग्य मंदिर स्थाई भवन में होगा। इसके लिए कोई अस्थाई जुगाड़ नहीं है। जहां पर बेहतरीन डॉक्टर रखे जाएंगे और दिल्ली की जनता को बेहतर इलाज मिलेगा। पूरी दिल्ली में लगभग 1150 आरोग्य मंदिर बनने हैं और इसकी समयसीमा हमने मार्च 2026 रखी है। लोगों को छोटी-मोटी बीमारी के लिए दूर के बड़े-बड़े अस्पतालों में नहीं जाना पड़ेगा।
दिल्ली की बसों में महिलाओं के लिए यात्रा तो फ्री है, पर उसके लिए टिकट काटे जा रहे थे। ऐसा क्यों?
यह बहुत बड़ा भ्रष्टाचार था। प्रश्न है कि यात्रा सुविधा मुफ्त है तो टिकट क्यों काटना? मैंने विधानसभा में कहा भी था कि हम महिलाओं को कार्ड देंगे या महिलाओं का डिजिटल टिकटिंग कर देंगे, ताकि रोज-रोज टिकट न काटनी पड़े। आप चाहे कितनी ही बार आवाजाही करें। कार्ड स्वाइप करेंगे तो पता चलेगा कि एक महिला ने कितनी बार दिन में बस का उपयोग किया। इसको गिनकर बस वाले को भुगतान किया जा सकता है।
पिछली सरकार दिल्ली को पेरिस बनाना चाहती थी। आप दिल्ली को पेरिस बनाएंगी या दिल्ली को दिल्ली जैसा बनाएंगी। कैसी दिल्ली बनाना चाहती हैं?
दिल्ली को पेरिस बनने की जरूरत नहीं है। दिल्ली, दिल्ली ही रहे। दिल्ली दिल वालों की है। देश की राजधानी है। हर राज्य के लोग यहां रहते हैं। एक तरह से ‘मिनी इंडिया’ है। देश का दिल है दिल्ली। यह उसी रूप में विकसित हो और यहां वे सारी सुविधाएं लोगों को मिलें, जो देश की राजधानी में होनी चाहिए। एक ऐसा शहर जो विश्वस्तरीय हो, जिसमें सारी सुविधाएं हों, हरियाली हो। इस तरह का माहौल हो कि दिल्ली वालों का दिल खुश रहे। मैं ऐसी दिल्ली बनाना चाहती हूं।
एक तरफ रियायत और सुविधा की राजनीति है। दूसरी तरफ प्रशासन से जुड़े हुए खर्चे भी हैं। तीसरा, लोकलुभावन लालच वाली राजनीति भी है। दिल्ली में हमने लालच वाली राजनीति को भी बढ़ते हुए देखा है। यह फ्री की राजनीति कितने कदम चल सकती है?
मैं भी यह मानती हूं कि जनता को कुछ मुफ्त नहीं चाहिए। उसे सुविधाएं चाहिए। कौन फ्री पानी मांग रहा है? लोग चाहते हैं साफ पानी मिले। यदि आप फ्री में पानी देने के एवज में उन्हें गंदा पानी दें तो कौन पीना चाहता है। आज दिक्कत यही है कि पिछली सरकार ने कोई जल स्रोत खड़ा नहीं किया। आधी दिल्ली को तो नल का पानी ही नहीं मिलता है। आज भी लोग बोरिंग का पानी पीते हैं। झुग्गीवासी भी बिसलरी का कैन लाने के लिए मजबूर हैं, तो बताइए कि दिल्ली सस्ती पड़ी कि महंगी? आपको शिक्षा अच्छी मिले, स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें। मुझे नहीं लगता कि इसके अलावा दिल्ली कुछ और चाहती है। दिल्ली समझदार है। दिल्ली को समझ में आ रहा है कि अब जो उन्होंने निर्णय किया है, वह बेहतर कल के लिए है।
आपसे पहले के मुख्यमंत्री कागजों पर तारीखें लिख-लिखकर दिया करते थे कि इस तारीख तक यमुना साफ हो जाएगी। आप कब तक यमुना को साफ करने वाली हैं?
उनकी मंशा यमुना को साफ करने की थी ही नहीं। यमुना की सफाई कोई एक दिन का प्रोजेक्ट नहीं है। यमुना की स्थिति सुधारने के लिए यमुना को समझना बहुत जरूरी है। दिल्ली में यमुना का बहाव क्षेत्र 22 किलोमीटर है। देखना पड़ेगा कि उसकी हालत क्या है? क्या वह सांस ले पा रही है? आज यमुना में लगभग 200 नाले गिरते हैं। पिछली सरकार ने एक भी नाले को बंद करने के लिए काम नहीं किया। आज जब हम वास्तव में यमुना को साफ करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं तो हमें दिखता है कि हमारे लिए कितना काम है। यमुना में स्वच्छ पानी तो है ही नहीं। जितना दिल्ली को पानी मिलता है, हम लोग पीने में उपयोग कर लेते हैं। यमुना जी में एक बूंद स्वच्छ पानी नहीं है। उसमें केवल नालों का पानी आ रहा है। नाली का पानी यदि यमुना जी में जा रहा है तो आपको उसको रिवाइव करने के लिए उसका बीओडी लेवल ठीक करना पड़ेगा। इसकेे लिए नालों की सफाई करनी होगी। उनकी गाद हटानी होगी।
गाद तो नालों से नहीं हटाई गई, वरना ऐसा नहीं होता कि दिल्ली में कनाट प्लेस जैसी जगह, मिंटो रोड पर आदमी सड़क पर डूब के मर जाए।
आज की स्थिति यह है कि हमने इन 100 दिन में ही 20 लाख मीट्रिक टन गाद नालों से निकाली है। दिल्ली में कहीं भी जाइए, आपको नालों के ऊपर डिसिल्टिंग की मशीनें लगी दिखाई देंगी। हमें बोलने की जरूरत नहीं है। जनता देख रही है। उन्होंने कभी गाद निकालने की ओर ध्यान ही नहीं दिया। ओवर फ्लो हो गया, दिल्ली बह गई बाढ़ में। परंतु आज हमने 100 दिनों में इतनी तैयारी कर दी कि कितनी भी बारिश हो जाए, दिल्ली में बाढ़ नहीं आ सकती।
अतिक्रमण के खिलाफ सरकार क्या कदम उठा रही है?
दिल्ली की कुछ समस्याएं तो हैं। दिल्ली एकमात्र ऐसा शहर है, जहां नालों से लेकर सड़कों तक हर जगह अतिक्रमण है। लेकिन इसमें दूसरा पक्ष भी है। वह है अदालत। अतिक्रमण से जुड़े 90 प्रतिशत मामलों में न्यायालय संबद्ध रहता है। अदालत की अवमानना तो नहीं कर सकते, पर लोगों को असुविधा न हो, उस पर ध्यान दिया जाएगा। हमने झुग्गियों के लिए 700 करोड़ का बजट रखा है, ताकि नाली, खड़ंजा, फुटपाथ, शौचालय, स्नानघर, शिशु वाटिका, बस्ती विकास केंद्र आदि बना सकें। दिल्ली में पहली बार कोई सरकार झुग्गी की चिंता कर रही है। आज से पहले झुग्गी के लिए कोई बजट ही नहीं रखा गया।
क्या यह झुग्गी बस्तियों को अधिसूचित करने जैसा नहीं है? क्या सरकार इसे स्थायी बसावट मान रही है?
जब तक उनके लिए बेहतर व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक वे जहां भी रहें, सुविधाओं के साथ रहें। हमारा मानना है कि उन्हें बेहतर बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए। उसी दिशा में हम काम कर रहे हैं।
दिल्ली में बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं की घुसपैठ को लेकर सवाल उठते रहे हैं। क्या इनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी?
यहां घुसपैठिए जितने अधिक होंगे, दिल्ली वालों का हक उतना ही मारा जाएगा। यहां के संसाधनों पर दिल्लीवासियों का हक है, जो कहीं और जा रहा है। इसलिए दिल्ली की सुरक्षा और दिल्ली के लोगों को सुविधाएं देने के लिए घुसपैठ को रोकना जरूरी है।
दिल्ली में प्रदूषण गंभीर समस्या बन गई है, जिससे हर व्यक्ति परेशान है। स्थित यह है कि पिछले लगभग 8-10 वर्ष से स्कूलों में ‘पॉल्यूशन हॉलिडे’ होने लगे हैं। इसके लिए आपकी सरकार क्या कर रही है?
पर्यावरण हमारी प्राथमिकता में है। 100 दिनों में इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं, जो जरूरी थे। पिछली सरकारों ने इस दिशा में कोई काम ही नहीं किया। उन्होंने सोचा कि केवल ऑड-इवन से प्रदूषण खत्म हो जाएगा। हमने बहुमंजिला इमारतों से लेकर सड़कों तक पर स्प्रिंकलर मशीनें, एंटी स्मोक गन, सफाई के अलावा पौधारोपण पर ध्यान दिया ताकि प्रदूषण से छुटकारा मिले। इस पर काम चल रहा है। दीपावली के समय प्रदूषण बढ़ जाता है। लोगों को लगता है कि पटाखों से प्रदूषण बढ़ता है, लेकिन आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के अनुसार इसका कारण पटाखे नहीं हैं। प्रदूषण के और भी कारक हैं, इसके निवारण के लिए हम काम कर रहे हैं।
सनातन संस्कृति के संरक्षण के लिए कोई योजना है?
देखिए, हम चाहते हैं कि दिल्ली में सब शांति और सद्भावना के साथ जीवन गुजारें। हमने अन्य राज्यों के दिवस को उत्सव के रूप में मनाना शुरू किया, पहली बार दिल्ली में हिंदू नववर्ष मनाया गया। हम चाहते हैं कि ऐसी परंपरा शुरू हो, जिसके माध्यम से हम संस्कृति और गौरवशाली इतिहास की ओर बढ़ें। दिल्ली इस ओर बढ़ भी रही है। आने वाला कल बेहतर होगा। दिल्ली बेहतर और विकसित होगी।
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