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तमिलनाडु के एक गांव में पादरी थॉमस ‘लाइट आॅफ द ब्लाइंड’ संस्था की आड़ में मानव अंग और हड्डियां बेचता था। ‘हॉस्पाइस’ के नाम पर चल रहे ईसाई मिशनरी के इस वीभत्स कांड को उजागर किया सतर्क ग्रामीणों ने
संदीप जोशी
ऐसा लगता है कि पैसे की कमी झेल रहे ईसाई मिशनरी संस्थान अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए गैरकानूनी कार्यों में लिप्त हैं। उल्लेखनीय है कि सत्ता संभालने के कुछ ही समय बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने संदिग्ध गैरसरकारी संगठनों की गतिविधियों पर नकेल कसी थी। इन संगठनों को विदेशों से करोड़ों रुपयों का अनुदान मिलता था जिन्हें वे देश को नुकसान पहुंचाने वाले कार्यों में खर्च करते थे। अभी हाल नोएडा के वीभत्स निठारी कांड जैसा ही एक मामला सामने आया है तमिलनाडु में चेन्नई से 75 किमी. दूर कांचीपुरम जिले के सलवक्कम में एक ईसाई गैरसरकारी संगठन का। स्थानीय पुलिस के हाथ अचानक ही एक नकली एम्बुलेंस लगने पर यह खौफनाक मामला सामने आया।
घटनाक्रम के अनुसार, 2 फरवरी को शाम 3 बजे के आसपास सलवक्कम-एदयम्पुथूर मार्ग पर एक एम्बुलेंस धीरे-धीरे रेंग रही थी कि अचानक उसमें बैठी अन्नाम्मल नामक वृद्धा ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। अन्नाम्मल को उनकी इच्छा के खिलाफ उनके घर से कहीं ले जाया जा रहा था। अन्नाम्मल तिरुवल्लूर और एक अन्य यात्री सेल्वराज डिंडीगुल के रहने वाले थे। उनकी आवाज सुनकर पास के पलेश्वरम गांव के लोग उन्हें बचाने के लिए आगे आए। इसके बाद छानबीन में सामने आया कि गाड़ी में सब्जियों के बीच एक कपड़े में एक मृत शरीर को छिपाया गया था। यह देख गांव वालों ने उस गैर-सरकारी संगठन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की और सलवक्कम पुलिस ने गाड़ी अपने कब्जे में ले ली।
इसके बाद, 20 फरवरी को पुलिस ने राजेश नामक युवक को गिरफ्तार किया। राजेश उस गाड़ी का चालक था जिसमें दो वृद्धों और एक मृत शरीर को ले जाया जा रहा था।
पड़ताल से पता चला कि 2011 में आऱ वी़ थॉमस नामक पादरी द्वारा शुरू की गई गैर-सरकारी संस्था ‘लाइट आॅफ द ब्लाइंड’ एक ‘चेरिटेबल’ संस्था सेंट जोसफ हॉस्पाइस से संबद्ध है, जो कहने को तो स्वयंसेवी संगठन है, परंतु असल में वहां वृद्धों और बेघर लोगों का अपहरण कर उन्हें भूखा रखा जाता था और उनके मरने के बाद उनके शरीर के अंगों और हड्डियों को बेचने का काम होता था। उनमें से कुछ लोगों द्वारा विरोध किए जाने पर उन्हें प्रताड़ित भी किया जाता था। शिकायत किए जाने के बावजूद पुलिस ने कभी कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि कई बार खुद शिकायतकर्ताओं को ही पुलिस का कोपभाजन बनना पड़ा था। इसी सिलसिले मेंं पुलिस ने एक स्थानीय व्यक्ति करुणाकरण को भी कब्जे में ले लिया जिसने गाड़ी में मृत शरीर छुपे होने की औपचारिक शिकायत पुलिस से की थी।
स्थानीय ग्रामीणों का यह भी कहना है कि सेंट जोसफ हॉस्पाइस में दम तोड़ने वालों को दफनाया भी नहीं जाता था। उनकी हड्डियोंं को रख लिया जाता था। इसके अलावा, इमारत से निकलने वाला गंदा पानी क्षेत्र की झील को भी प्रदूषित कर रहा था जिसका सीधा असर कृषि पर पड़ रहा था। झील के पास जाने पर अजीब किस्म की गंध आती थी। इसके बाद की कार्रवाई में गैर-सरकारी संगठन द्वारा चलाए जा रहे वीभत्स मानव अंग व्यापार का पर्दाफाश हुआ। मीडिया में आई खबरों के बाद राज्य की सरकारी मशीनरी हरकत में आई और आनन-फानन में विभिन्न विभागों के 60 अधिकारियों को कांचीपुरम जिले के पलेश्वरम गांव रवाना किया गया। गांव के किनारे बने सेंट जोसफ हॉस्पाइस की सुरक्षा किसी बुर्ज सरीखी होती थी जहां किसी बाहरी व्यक्ति को फटकने तक नहीं दिया जाता था, परंतु सरकारी अधिकारियों पहुंचने के बाद जिला कलेक्टर ने समूचे क्षेत्र में मौजूद ऐसे अन्य आश्रयस्थलों की तलाशी के आदेश जारी किए। हैरानी की बात है कि इस गैर-सरकारी संगठन द्वारा ‘हड्डियों के व्यापार’ से जुड़ी अफवाहें क्षेत्र में काफी समय से सुनने में आ रही हैं। गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव एच़ राजा कुछ समय पहले राज्य में चल रही मानव अंगों की तस्करी के बारे में बयान दे चुके हैं, परंतु तब भी राज्य सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। उनके अनुसार, राज्य का मीडिया हिंदू-विरोधी है। इतना ही नहीं, क्षेत्र के ग्रामीणजन भी ईसाई वृद्धाश्रम के बारे में पहले भी शिकायतें दर्ज करा चुके हैं, लेकिन प्रशासन अनदेखी करता रहा।
गांव वालों के अनुसार इस गैर-सरकारी संगठन के आश्रयस्थल में वृद्धों के लिए रहने, खाने-पीने और मेडिकल सुविधाएं निशुल्क मिलती थीं। इन सुविधाओं का लाभ बेघर लोग, अनाथ और मानसिक तौर पर विक्षिप्त लोग उठाते थे। उनकी इस मजबूरी का लाभ उठाकर ‘लाइट आॅफ द ब्लाइंड’ तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और उत्तरी राज्यों के लोगों को अपना शिकार बनाता था। आश्रित वृद्धों को लगातार कई दिनों तक भूखा रखा जाता था। भुखमरी से मरने के बाद निजी अस्पतालों को उनका दिल, गुर्दा, यकृत और आंखें अवैध तौर पर बेची जाती थीं।
मौत का तहखाना
पलेश्वरम गांव के निकट बने इस वृद्धाश्रम की ऊंची चारदीवारी के अंदर निर्मित कई स्तरीय तहखानों में चल रहीं गैरकानूनी गतिविधियों के बारे में स्थानीय ग्रामीणजन बहुत समय से बात करते रहे थे। साक्ष्यों की कमी के कारण पहले इन तहखानों से जुड़ी खबरें केवल अफवाहों के तौर पर यहां सुनाई पड़ती थीं। परंतु इस ईसाई आश्रयस्थल की पोल खुलने के बाद जो सच सामने आया उसमें पता चला कि 50 कमरों वाले इस आश्रयस्थल में दम तोड़ने वाले वृद्धों की अस्थियां यहां बने कोल्ड स्टोरेज में रखी जाती थीं। एक अनुमान के अनुसार, इस गैर-सरकारी संगठन द्वारा करीब 3000 मृत शरीरों को बेतरतीब तरीके से क्षेत्र में दफनाया गया था। बिना किसी बाहरी देखरेख के मृत शरीरों को निपटाने का काम ज्यादा मुश्किल नहीं होता था। हालांकि, संस्था के सर्वेसर्वा पादरी थामस के अनुसार तहखानों में मृत शरीरों को रखना नई विधि नहीं है, बल्कि यह प्रचलित रोमान विधि है, जिसके कारण प्रदूषण नहीं फैलता। उनके अनुसार, अब तक उनका संगठन 1500 अनाश्रित मृतकों का ‘आदर सहित’ अंतिम संस्कार कर चुका है। इसके बावजूद, स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि रात-बेरात आश्रयस्थल की चारदीवारी के अंदर से रोने की आवाजें आती थीं। उन्होंने कई वृद्धों को वहां से जान बचाकर भागते हुए भी देखा है। गांववासी क्षेत्र में कई लावारिस मौतों के गवाह रहे हैं, परंतु उनमें से अधिकांश के लिए कभी मृत्यु प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं किए गए। सच यह है कि ईसाई मिशनरियों द्वारा बेघर वृद्धजनों के साथ इस क्रूर व्यवहार के बावजूद अभी तक प्रशासन ज्यादा कुछ कहने को तैयार नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि सात वर्षों से चल रहे इस आश्रयस्थल का लाइसेंस पिछले वर्ष सितंबर में समाप्त हो चुका है। हाल की गिनती के अनुसार यहां रहने वाले वृद्धोंं की संख्या 370 और यहां काम करने वालों की संख्या 30 थी।
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