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चीन विश्व के तमाम शक्तिशाली देशों के साथ भारत के बढ़ते संबंधों पर चिंतित है। पाकिस्तान के पाले में बैठा चीन दक्षिण एशिया में थानेदार की भूमिका बनाए रखना चाहता है, लेकिन भारत उसे कड़ी टक्कर दे रहा है
सुधेन्दु ओझा
पूरे भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्र के राष्ट्रों में राजनयिक गतिविधियां चरम पर हैं। पुराने समीकरण ध्वस्त हो रहे हैं, नए समीकरण उभर रहे हैं। इन्हीं के मध्य चीन इस असमंजस में है कि वह भारत के प्रति कौन-सा रास्ता अपनाए। दोनों देशों के मध्य विकसित व्यापार और विश्व परिदृश्य में उनकी सुदृढ़ होती अर्थव्यवस्था उनके बीच संघर्ष को रोकने वाला कारक मानी जा रही है, किन्तु चीन के लगातार पाकिस्तान के आतंकियों के समर्थन, डोकलाम पर विस्तारवादी नीति, उसे हड़पने की साजिश और हिन्द-प्रशांत सागर क्षेत्र में विएतनाम को लेकर उसका रुख भारतीय रक्षा-विशेषज्ञों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।
अमेरिका, रूस, चीन, अफगानिस्तान, ईरान, सऊदी अरब, इस्रायल, भारत, श्रीलंका, मालदीव, विएतनाम, कोरिया और फिलीपींस तक में नए समीकरणों को लेकर एक अजब सुगबुगाहट है।
चीन के साथ भारत की सीमा पर हालात संवेदनशील हैं और इनके गहराने की आशंका है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कई सारी बातें हो रही हैं। आप नहीं जान सकते कि इनमें से किस बात को लेकर मामला गंभीर हो सकता है।
—सुभाष भामरे, रक्षा राज्यमंत्री,भारत
भारत-चीन: नई संभावनाएं
भारतीय प्रगति और उसकी अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए चीन ने सदैव पाकिस्तान का सहारा लिया है। डोकलाम तथा भारत के साथ अपनी लंबी सीमा पर दबाव बनाने के प्रयास में चीन अपनी सैन्य ताकत के प्रदर्शन को जायज ठहराता रहा है। चीन के सरकारी मीडिया की हाल की एक रिपोर्ट में एक सैन्य विशेषज्ञ के हवाले से कहा गया है कि चीन अपनी पश्चिमी कमान की हवाई रक्षा व्यवस्था को उन्नत बना रहा है ताकि ‘भारत से किसी तरह के खतरे का सामना किया जा सके।’ चीनी सेना यानी पीएलए की वेबसाइट पर बताया गया है कि भारत के साथ लगी सीमा पर तैनात लड़ाकू विमान पीएलए की पश्चिमी कमान के तहत वायुसेना की एक विमानन ब्रिगेड से संबद्ध हैं। चीन ने हाल में अपने खुफिया लड़ाकू विमान जे-20 को सेना में शामिल किया है। काफी ऊंचाई पर स्थित तिब्बती पठार सहित 3,488 किलोमीटर तक वास्तविक नियंत्रण रेखा का फैलाव है। चीनी सैन्य विशेषज्ञ एवं टिप्पणीकार सोंग झोंगपिंग ने ग्लोबल टाइम्स को बताया है कि पर्वतीय इलाके के हवाई क्षेत्र पर नियंत्रण मजबूत करना चीन के लिए अहम है। सोंग ने कहा, ‘‘नई पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को मजबूत करना या पश्चिमी थिएटर कमान में ज्यादा आधुनिक लड़ाकू विमानों को तैनात करना पीएलए के लिए अत्यावश्यक रहा है।’’
संभवत: भारत द्वारा फ्रांस से राफेल विमानों की खरीद की ओर इशारा करते हुए सोंग ने कहा, ‘‘भारत की ओर से नए लड़ाकू विमानों के आयात के मद्देनजर चीन पश्चिमी थिएटर कमान में अपने लड़ाकू विमानों को मजबूत करना जारी रखेगा।’’
नरम-गरम नीति
2013 में राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से ही शी जिनपिंग चीन में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने में सफल रहे हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने संविधान में संशोधन कर उन्हें आजीवन चीनी प्रमुख बने रहने का अधिकार दे दिया है। अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों में युद्ध या फिर संघर्ष आखिरी विकल्प होता है। शी इसे बखूबी समझते हैं। यही कारण है कि उनके विदेश मंत्री वांग यी ने एक कार्यक्रम में वक्तव्य दिया है कि ‘‘चीनी ड्रैगन और भारतीय हाथी परस्पर शत्रु नहीं हैं बल्कि प्रगति की राह में परस्पर एक-दूसरे का हाथ थामे नृत्य करते हुए नई ऊंचाइयों को छू
सकते हैं।’’
दरअसल, हर मंच पर अमेरिका द्वारा भारत को तरजीह दिए जाने से चीन की परेशानी में खासी वृद्धि हुई है। भारत के कई हिन्द-चीन राष्ट्रों से व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। चीन की भारत विरोधी नीति भारत के लिए इन राष्ट्रों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने का कारक बन सकती है। इस संदर्भ में भारत-विएतनाम संबंध की मिसाल दी जा सकती है। वियतनाम को भारत से सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति की खबरों पर चीन की चिंताओं को रेखांकित करते हुए ग्लोबल टाइम्स में एक लेख में कहा गया है, ‘‘यदि भारत सरकार रणनीतिक समझौते या बीजिंग के खिलाफ प्रतिशोध की भावना से वियतनाम के साथ असल में अपने सैन्य संबंधों को मजबूत करती है तो इससे क्षेत्र में गड़बड़ी पैदा होगी और चीन हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा रहेगा।’’ ग्लोबल टाइम्स ने यह बात इन खबरों का हवाला देते हुए कही कि नई दिल्ली का यह कदम चीन द्वारा भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का सदस्य बनने से रोकने तथा जैशे मोहम्मद के आतंकी मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित कराने में चीन द्वारा अडंÞगा लगाए जाने के जवाब में है। चीन भविष्य में इस स्थिति से भी बचने का रास्ता बनाए रखना चाहता है।
अमेरिका की चुनौती
माना जाता है कि रूस अफगानिस्तान में तालिबान के माध्यम से अपना प्रभाव फिर तलाशने की कोशिश में है। वह यह भी नहीं चाहता कि अमेरिकी फौजें अनिश्चितकाल के लिए अफगानिस्तान में टिकी रहें। सऊदी अरब ने यमन के विरुद्ध जो युद्ध छेड़ा हुआ है उसमें पाकिस्तान को उसने पूरी तरह शामिल कर लिया है। पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष राहील शरीफ नाटो की तर्ज पर बनी सऊदी अरब की ‘इस्लामी सेना’ की अगुआई कर रहे हैं।
चीन को घेरने की योजना
अमेरिका, जापान और आॅस्ट्रेलिया के साथ भारत की बहुपक्षीय बैठक के तत्काल बाद फ्रांस ने हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के साथ रिश्तों को मजबूत करने के संकेत दिए हैं। भारत में फ्रांस के राजदूत ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच होने वाली आगामी उच्च स्तरीय बैठक में इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा होगी। मनीला में हुए आसियान सम्मेलन के अलावा भारतीय अधिकारियों की अमेरिका, जापान और आॅस्ट्रेलियाई अधिकारियों के साथ चार-पक्षीय बैठक हुई थी। इस बैठक को क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे को रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। फ्रांसीसी राजदूत अलेक्जेंडर जिग्लर की टिप्पणी को इसी के तहत देखा जा रहा है। उधर, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन भारत यात्रा पर आए हुए हैं। इस यात्रा में भारत फ्रांस के साथ रिश्तों को और मधुर बनाने की बात हुई है।
भारत फिलहाल मुंबई के मझगाव डॉकयार्ड लिमिटेड में छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है। ये 2005 में फ्रांस के साथ किए गए 23,562 करोड़ रुपए के एक सौदे के तहत बनाई जा रही हैं। वहीं, 2015 में 7.7 अरब यूरो (59,000 करोड़ रुपए) के जिन 36 राफेल जेट विमानों की खरीद का समझौता हुआ था, उनकी पहली खेप फ्रांस 2019 तक भारत को देगा।
इन सौदों से भारत-फ्रांस की रणनीतिक भागीदारी मजबूत होगी। भारत के पड़ोस मालदीव में आए संकट के बाद चीन की नौसेना की उपस्थिति को निष्क्रिय करने के लिए इस तरह की पहल आवश्यक है।
भारत-वियतनाम नजदीकी और चीन
हाल ही में विएतनाम के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान भारत और वियतनाम के बीच हुए परमाणु सहयोग समझौता बहुत अहमियत रखता है। वहीं संयुक्त बयान में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सम्मान पर जोर देने की बात कह कर दोनों देशों ने चीन को कुछ संदेश देने का भी प्रयास किया है। भारत और वियतनाम ने राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक और ऊर्जा से जुड़े पहलुओं पर समझौते किए हैं। साथ ही उन्होंने कुछ सिद्धांतों को भी रेखांकित किया है। वियतनाम के पास दक्षिण चीन सागर में हालात गंभीर हैं, लेकिन फिलहाल उथल-पुथल कम दिख रही है। यहां चीन ने कृत्रिम द्वीप भी बनाया है, जिसे लेकर वियतनाम आपत्ति उठाता रहा है। ऐसे में यह एक संकेत है कि भारत और वियतनाम अपने-अपने दायरे में रहते हुए अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों को अहमियत देते हैं। लेकिन देखना यह होगा कि आगामी जून-जुलाई में जब दस आसियान देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक होगी, तो वे देश भी इन सिद्धांतों को समर्थन देने के लिए तैयार होंगे या नहीं।
भारत का हित
हर द्विपक्षीय रिश्ता अपने आप में अहम होता है, भले ही देश बड़ा हो या छोटा। वैसे भी भारत इस समय एशिया महाद्वीप में अपनी विश्वसनीयता बढ़ाना चाहता है, इसलिए हर द्विपक्षीय रिश्ते को अहमियत दे रहा है। भारत और वियतनाम के बीच द्विपक्षीय संबंध ऐतिहासिक हैं। आज उत्तर और दक्षिण वियतनाम फिर से एक ही देश बन गया है और कम्युनिस्ट पार्टी वहां सत्ता में है। वियतनाम की राजनीति भी बदली है और उसने चीन के साथ अपने संबंधों को काफी बेहतर बनाया है।
अमरीका को चुनौती
चीन और रूस जिस तरीके से लगातार अपनी सैन्य ताकत में इजाफा कर रहे हैं, वह सीधे तौर पर अमेरिका और उसके सहयोगियों के सैन्य वर्चस्व के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है। एक प्रमुख थिंक टैंक की वार्षिक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी ताकतों को पहले जो रणनीतिक फायदा मिला करता था, वे अब उसके भरोसे नहीं रह सकतीं।
इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट-मिलिटरी बैलेंस, 2018 में चेतावनी दी गई है कि इन महाशक्तियों के बीच युद्ध की आशंका निश्चित तो नहीं, लेकिन रूस और चीन किसी भी संघर्ष की आशंका से निपटने के लिए व्यवस्थित रूप से तैयारियों में जुटे हुए हैं। रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि चीन का नेतृत्व किस तरह शक्तिशाली हथियारों का जखीरा बढ़ा रहा है। यही कारण है कि अमेरिकी प्रतिरक्षा नीति में भारत की भूमिका आवश्यकता से अधिक बढ़ गई है, इस स्थिति को रूस और चीन भली-भांति समझते हैं। रूस और चीन की पाकिस्तान को लेकर नीतियों को भारत में इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।
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